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Semester 1: Principle of Micro Economics

  • Problem of scarcity and choice: scarcity, choice and opportunity cost; production possibility frontier

    Problem of scarcity and choice
    • Introduction to Scarcity

      संपदा की सीमितता को स्कार्सिटी कहा जाता है। यह एक आर्थिक समस्या है जो यह दर्शाती है कि मनुष्यों की इच्छाएँ अनंत हैं, जबकि संसाधन सीमित हैं। इस कारण, समाज को संसाधनों के उपयोग के बारे में चुनाव करना पड़ता है।

    • Understanding Choice

      चुनाव अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सही संसाधनों के चयन की अनुमति देता है। मनुष्य को यह तय करना होता है कि कौन सी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाए और कौन सी इच्छाओं को पूरा किया जाए।

    • Opportunity Cost

      ओपर्च्युनिटी कॉस्ट वे लागत है जो एक विकल्प चुनने पर दूसरे विकल्प को त्यागने से होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कॉलेज जाता है, तो उसके लिए काम करने का अवसर खो जाता है।

    • Production Possibility Frontier (PPF)

      उत्पादन संभावना सीमा (PPF) एक ग्राफ है जो एक अर्थव्यवस्था द्वारा अधिकतम उत्पादन को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि क्या किसी एक उत्पाद को अधिक बनाने के लिए दूसरे उत्पाद का उत्पादन कम किया जाना चाहिए।

    • Conclusion

      स्कार्सिटी के कारण चुनाव और अवसर की लागत अनिवार्य हैं। ये तत्व अर्थशास्त्र के मूल सिद्धांत हैं और किसी भी अर्थव्यवस्था की संपूर्ण समझ के लिए आवश्यक हैं।

  • The economics of Information: search costs, searching for lowest price, search and advertising; Asymmetric information: market for lemons and adverse selection; moral hazard

    The economics of Information
    • Search Costs

      सूचना की अर्थशास्त्र में खोज की लागत उस प्रयास या संसाधनों को दर्शाती है जो उपभोक्ता या निर्माता को उपयुक्त जानकारी की खोज में खर्च करने होते हैं। जैसे कि जब उपभोक्ता विभिन्न विक्रेताओं से कीमतों की तुलना करता है, तो उसे समय और संसाधनों की लागत उठानी होती है।

    • Searching for Lowest Price

      कम कीमत की खोज में उपभोक्ता अक्सर विभिन्न विकल्पों की तुलना करते हैं। यह प्रक्रिया उनके लिए अधिकतम लाभ प्राप्त करने में सहायक होती है। इस प्रक्रिया में, उपभोक्ता कई स्टोर या ऑनलाइन प्लेटफार्मों की जांच करते हैं, जिससे उन्हें सर्वोत्तम मूल्य का चयन करने का अवसर मिलता है।

    • Search and Advertising

      विज्ञापन का उद्देश्य उपभोक्ताओं को जानकारी प्रदान करना है ताकि वे विभिन्न उत्पादों या सेवाओं के बारे में सूचित निर्णय ले सकें। विज्ञापन करने वाली कंपनियां अपनी सेवाओं या उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करती हैं।

    • Asymmetric Information

      असमान जानकारी तब होती है जब एक पक्ष को दूसरे पक्ष की तुलना में अधिक जानकारी होती है। इससे बाजार में विषम स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

    • Market for Lemons

      बाजार में 'लेमन' का सिद्धांत यह दर्शाता है कि जब विक्रेताओं को अपने उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में अधिक जानकारी होती है, जबकि खरीदार के पास सीमित जानकारी होती है, तो बाजार में घटिया उत्पादों का प्रवाह बढ़ सकता है।

    • Adverse Selection

      विपरीत चयन उस स्थिति को दर्शाता है जब ग्राहक या विक्रेता को अपने चयन में उच्च गुणवत्ता या मूल्य के बदले कम गुणवत्ता का सामना करना पड़ता है। यह तब होता है जब एक पक्ष को जानकारी का लाभ होता है, जिससे बाजार में असंतुलन हो जाता है।

    • Moral Hazard

      नैतिक खतरा तब उत्पन्न होता है जब एक पार्टी को समझौते के परिणाम में जोखिम का सामना नहीं करना पड़ता है, जिससे वह उच्च जोखिम वाले व्यवहार को अपनाती है। यह आर्थिक गतिविधियों में विश्वास के संकट का निर्माण कर सकता है।

  • Demand and supply: law of demand, determinants of demand, shifts of demand versus movements along a demand curve, market demand, law of supply, determinants of supply, shifts of supply versus movements along a supply curve, market supply, market equilibrium

    Demand and Supply
    • Law of Demand

      मांग का नियम बताता है कि जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है, तो उसकी मांग घटती है और जब कीमत घटती है, तो मांग बढ़ती है। यह एक विलोम संबंध है।

    • Determinants of Demand

      मांग के निर्धारक में उपभोक्ताओं की आय, पसंद, विकल्प, जनसंख्या और उपभोक्ताओं की अपेक्षाएँ शामिल हैं। इन तत्वों का मांग पर सीधा प्रभाव होता है।

    • Shifts of Demand versus Movements along a Demand Curve

      मांग वक्र पर गति दर्शाती है कि कीमत में परिवर्तन के कारण मांग में क्या परिवर्तन होता है। दूसरी ओर, यदि कोई अन्य निर्धारक बदला जाए तो मांग का वक्र स्थानांतरित होता है।

    • Market Demand

      बाजार मांग एक निश्चित समय में बाजार में सभी उपभोक्ताओं द्वारा इच्छित वस्तुओं की कुल मात्रा है। यह मांग के सभी स्रोतों का योग है।

    • Law of Supply

      आपूर्ति का नियम बताता है कि जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है, तो उसकी आपूर्ति बढ़ती है और जब कीमत घटती है, तो आपूर्ति घटती है।

    • Determinants of Supply

      आपूर्ति के निर्धारक में उत्पादन की लागत, तकनीकी प्रगति, सरकारी नीतियाँ, और मौसम की स्थिति शामिल हैं।

    • Shifts of Supply versus Movements along a Supply Curve

      आपूर्ति वक्र पर गति कीमत में परिवर्तन के कारण होती है। किन्तु यदि कोई अन्य निर्धारक बदला जाए, तो आपूर्ति वक्र स्थानांतरित होता है।

    • Market Supply

      बाजार आपूर्ति सभी निर्माताओं द्वारा एक निश्चित समय में बाजार में उपलब्ध कराई जाने वाली वस्तुओं की कुल मात्रा है।

    • Market Equilibrium

      बाजार संतुलन तब बनता है जब मांग और आपूर्ति बराबर हो। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ कीमत स्थिर रहती है और न तो अधिशेष है और न ही कमी।

  • Applications of demand and supply: price rationing, price floors, consumer surplus, producer surplus

    Applications of Demand and Supply: Price Rationing, Price Floors, Consumer Surplus, Producer Surplus
    • Price Rationing

      कीमत का विभाजन तब होता है जब मांग आपूर्ति से अधिक होती है। यह उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में वृद्धि के रूप में प्रकट होता है। इससे संसाधनों का उचित वितरण होता है और उन लोगों को प्राथमिकता दी जाती है जो उत्पादों के लिए सबसे अधिक भुगतान करने को तैयार होते हैं।

    • Price Floors

      कीमत का न्यूनतम स्तर है जिसे सरकार या नियामक द्वारा स्थापित किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद की कीमत बहुत कम न हो जाए, जिससे उत्पादकों को लाभ मिल सके। उदाहरण के लिए, न्यूनतम मजदूरी कानून।

    • Consumer Surplus

      उपभोक्ता अधिशेष उस लाभ को दर्शाता है जो उपभोक्ताओं को उस कीमत पर मिलता है, जिस पर वे कोई उत्पाद खरीदते हैं, और वे उसके लिए अधिक भुगतान करने को कितना तैयार हैं। यह बाजार की दक्षता को मापने में मदद करता है।

    • Producer Surplus

      उत्पादक अधिशेष उस लाभ को दर्शाता है जो उत्पादकों को उत्पाद की बिक्री के समय मिलता है, जो कि उनके लिए न्यूनतम स्वीकार्य कीमत से अधिक है। यह दर्शाता है कि बाजार में उत्पादकों की आर्थिक स्थिति कैसी है।

  • Elasticity: price elasticity of demand, income elasticity of demand, cross elasticity of demand, arc and point elasticity, point elasticity and total expenditure, price elasticity of supply

    Elasticity
    • मूल्य लचीलापन

      मूल्य लचीलापन मांग की मात्रा में बदलाव को मूल्य में बदलाव के अनुपात से मापता है। जब मूल्य में वृद्धि होती है, तो मांग में कमी आती है। यदि मांग में परिवर्तन अधिक होता है, तो इसे लचीला कहा जाता है।

    • आय लचीलापन

      आय लचीलापन मांग की मात्रा में बदलाव को आय में बदलाव के अनुपात से मापता है। सकारात्मक आय लचीलापन संकेत करता है कि जब आय बढ़ती है, तो मांग भी बढ़ती है।

    • क्रॉस लचीलापन

      क्रॉस लचीलापन दो वस्तुओं के बीच संबंध को मापता है। यदि एक वस्तु की मांग दूसरी वस्तु के मूल्य में बदलाव पर निर्भर करती है, तो इसे क्रॉस लचीलापन कहते हैं।

    • आर्क और पॉइंट लचीलापन

      आर्क लचीलापन दो बिंदुओं के बीच मांग में बदलाव को मापता है, जबकि पॉइंट लचीलापन किसी विशेष बिंदु पर मांग की लचीलापन को दर्शाता है।

    • पॉइंट लचीलापन और कुल व्यय

      पॉइंट लचीलापन मूल्य में छोटे बदलाव के लिए मांग की प्रतिक्रिया को मापता है। कुल व्यय तब अधिक होता है जब मांग का लचीलापन एक से कम होता है।

    • मूल्य लचीलापन आपूर्ति

      मूल्य लचीलापन आपूर्ति में मूल्य में बदलाव के प्रति आपूर्ति की मात्रा में बदलाव को मापता है। यदि आपूर्ति की मात्रा तेजी से बदलती है, तो आपूर्ति लचीली है।

  • Consumer Theory: Budget constraint, concept of utility, diminishing marginal utility, Diamond-water paradox, income and substitution effects; consumer choice: indifference curves, Some applications of indifference curves

    Consumer Theory
    • Budget Constraint

      बजट की सीमा वह बिंदु होती है जहां उपभोक्ता अपनी आय और वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों के आधार पर अपने खर्चों को सीमित कर सकता है। इसे गणितीय रूप से निम्नलिखित समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है: I = P1X1 + P2X2, जहाँ I = आय, P1 और P2 = वस्तुओं 1 और 2 की कीमतें, और X1 और X2 = उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुएं।

    • Concept of Utility

      उपयोगिता एक थ्योरी है जो दिखाती है कि उपभोक्ता अपने आत्मिक संतोष के स्तर को कैसे अधिकतम करने की कोशिश करते हैं। उपयोगिता आमतौर पर दो प्रकार की होती है: कुल उपयोगिता (Total Utility) और सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility)।

    • Diminishing Marginal Utility

      यह सिद्धांत कहता है कि एक पर्यवेक्षण (Goods) की लगातार खपत से प्राप्त सीमांत उपयोगिता अंततः घटती है। यानी, जब एक ही वस्तु का अधिक सेवन किया जाता है, तो उसके द्वारा दिए जाने वाला संतोष कम होता जाता है।

    • Diamond-Water Paradox

      हीरा-जल पारादोक्स एक मामला है जहां हीरे की उच्च मूल्य होने के बावजूद, पानी का मूल्य बहुत कम होता है। इसका तर्क यह है कि हीरा सीमित है जबकि पानी प्रचुर मात्रा में है, जिससे मार्केट में इसकी कीमतें प्रभावित होती हैं।

    • Income and Substitution Effects

      आय प्रभाव यह दिखाता है कि जब किसी वस्तुमुखी वस्तु की कीमत में बदलाव होता है, तो कैसे उपभोक्ता की खरीद क्षमता बदलती है। प्रतिस्थापन प्रभाव दर्शाता है कि उपभोक्ता एक वस्तु के बजाय दूसरी वस्तु का चयन कैसे करते हैं।

    • Consumer Choice: Indifference Curves

      अविचलन वक्र उपभोक्ता के विकल्पों का ग्राफिकल प्रतिनिधित्व है, जो दर्शाता है कि उपभोक्ता किसी भी दो वस्तुओं के संयोजन से समान संतोष प्राप्त करते हैं। विभिन्न अविचलन वक्र विभिन्न उपयोगिता स्तरों को दर्शाते हैं।

    • Applications of Indifference Curves

      अविचलन वक्र का उपयोग उपभोक्ता के विकल्पों के प्रभाव, कराधान, और प्रोत्साहनों के परिभाषित करने के लिए किया जाता है। यह उपभोक्ता की पसंद की दक्षता और भिन्नता को समझने में मदद करता है।

  • Production and Costs: behaviour of profit maximizing firms, production process, production functions, law of variable proportions, choice of technology, isoquant and isocost lines, cost minimizing equilibrium condition

    Production and Costs
    • Profit Maximization of Firms

      लाभ अधिकतम करने वाले फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन प्रक्रिया का अधिकतम उपयोग करते हैं। इसके लिए वे अपने लागत और उत्पादन स्तर के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करते हैं।
    • Production Process

      उत्पादन प्रक्रिया वह गतिविधि है जिसके जरिए कच्चे माल और श्रमिकों का उपयोग करके वस्त्र और सेवाएँ बनाई जाती हैं। इसमें विभिन्न चरण होते हैं जैसे कि कच्चे माल की प्राप्ति, प्रसंस्करण और बाजार में वितरण।
    • Production Functions

      उत्पादन कार्य वह गणितीय रूप है जो यह दर्शाता है कि विभिन्न इनपुट के संयोजन के आधार पर आउटपुट का क्या स्तर प्राप्त होगा। इसे सामान्यतः Q = f(L,K) के रूप में दर्शाया जाता है, जहां Q उत्पादन है, L श्रम है और K पूंजी है।
    • Law of Variable Proportions

      परिवर्ती अनुपात का नियम यह बताता है कि जैसे-जैसे किसी उत्पादन प्रक्रिया में एक संसाधन को अन्य संसाधनों के साथ बढ़ाया जाता है, प्रारंभ में उत्पादन में वृद्धि होती है, लेकिन बाद में उत्पादन की वृद्धि की दर घट जाती है।
    • Choice of Technology

      प्रौद्योगिकी का चयन उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सही प्रौद्योगिकी का चयन करके फर्म अपनी उत्पादन प्रक्रिया को अधिक कुशल बना सकते हैं।
    • Isoquant and Isocost Lines

      आइसोक्वांट एक आरेख है जो विभिन्न उत्पादन स्तर को विभिन्न इनपुट के संयोजन से दर्शाता है, जबकि आइसोकॉस्ट विभिन्न लागतों के लिए एक समतल रेखा है। इन दोनों का उपयोग फर्म द्वारा क्षमता और लागत के प्रभावी संयोजन को खोजने में किया जाता है।
    • Cost Minimizing Equilibrium Condition

      लागत न्यूनतम करने की संतुलन स्थिति तब होती है जब आइसोक्वांट और आइसोकॉस्ट लाइन एक दूसरे को छूते हैं। इस स्थिति में, फर्म अपनी लागत को न्यूनतम रखते हुए उत्पादन को अधिकतम कर सकती है।
  • Costs: costs in the short run, costs in the long run, revenue and profit maximizations, minimizing losses, short run industry supply curve, economies and diseconomies of scale, long run adjustments

    Costs in Economics
    • Costs in the Short Run

      संक्षिप्त अवधि में लागत वह लागत होती है जो उत्पादन को प्रभावित करती है जब कुछ संसाधन निश्चित रहते हैं। इसमें निश्चित और परिवर्तनीय लागत शामिल होती है। निश्चित लागत वह है जो उत्पादन की मात्रा के बावजूद समान रहती है, जैसे कि संयंत्र का किराया। जबकि परिवर्तनीय लागत उत्पादन की मात्रा के बढ़ने के साथ बढ़ती है, जैसे कि कच्चा माल।

    • Costs in the Long Run

      दीर्घकालिक लागत में सभी संसाधनों को बदलने की स्वतंत्रता होती है। यह लागत में बदलाव की प्रक्रिया को दर्शाता है, जब कंपनी उत्पादन स्तर बढ़ाने या घटाने की कोशिश करती है। इस अवधि में सभी लागतें परिवर्तनीय होती हैं, और कंपनियाँ वृद्धि के लिए विभिन्न कारकों को निर्धारित कर सकती हैं।

    • Revenue and Profit Maximization

      राजस्व और लाभ अधिकतमकरण का अर्थ है कि कंपनियाँ अपने उत्पादन स्तर को उस बिंदु पर बढ़ाती हैं जहाँ सीमा राजस्व (MR) सीमांत लागत (MC) के बराबर होता है। यह उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त करने में सहायता करता है।

    • Minimizing Losses

      जब कंपनियाँ बाजार की परिस्थितियों के कारण हानि का सामना करती हैं, तो उन्हें ऐसे समय में उत्पादन जारी रखने और क्षति को कम करने के लिए अपने परिवर्तनीय लागतों को ध्यान में रखना चाहिए। लंबे समय में, यदि हानि निरंतर बनी रहती है, तो कंपनी को अपने संचालन बंद करने पर विचार करना होगा।

    • Short Run Industry Supply Curve

      संक्षिप्त अवधि की उद्योग आपूर्ति वक्र विभिन्न कंपनियों की संचालित राशियों को दर्शाती है। जब उद्योग की कीमतें बढ़ती हैं, तो कंपनियाँ अधिक आपूर्ति प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित होती हैं, और इसके विपरीत।

    • Economies and Diseconomies of Scale

      स्केल के अर्थशास्त्र वह स्थिति है जब बड़े पैमाने पर उत्पादन से लागत में कमी आती है, जबकि विडंबनाएँ उन स्थितियों को संदर्भित करती हैं जब बड़े पैमाने पर उत्पादन लागत को बढ़ाती हैं। ये कारक कंपनियों के आकार और संचालन के तरीके को प्रभावित करते हैं।

    • Long Run Adjustments

      दीर्घकालिक समायोजन में बाजार में प्रवेश और निकासी शामिल होती है। यदि कोई उद्योग लाभ कमाता है, तो नए प्रतिस्पर्धी उसमें प्रवेश करेंगे। यदि हानि होती है, तो कंपनियाँ बाजार से बाहर निकलेंगी। इस प्रक्रिया से बाजार में संतुलन बहाल होता है।

  • Market Structures: Perfect Competition - assumptions, firm equilibrium in SR and LR, long run industry supply curve, welfare; Imperfect Competition - Monopolistic competition, oligopoly models including game theory

    Market Structures
    • Perfect Competition

    • Imperfect Competition

  • Theory of a Monopoly Firm: short run and long run price and output decisions, social cost of monopoly, price discrimination, remedies for monopoly

    Monopoly Firm Theory
    • संक्षिप्त अवधि में कीमत और उत्पादन निर्णय

      संक्षिप्त अवधि में, एक एकलोपोली फर्म अपनी उत्पादन मात्रा को उसकी सीमांत लागत और बाजार मूल्य के अनुपात में तय करती है। जब सीमांत लागत मूल्य से कम होती है, तो फर्म उत्पादन बढ़ाने का विकल्प चुनती है। दूसरी ओर, अगर सीमांत लागत मूल्य से अधिक होती है, तो फर्म उत्पादन घटाती है।

    • दीर्घ अवधि में कीमत और उत्पादन निर्णय

      दीर्घ अवधि में, एक एकलोपोली फर्म अधिकतम लाभ के लिए अपने उत्पादन और कीमत को स्थायी रूप से निर्धारित करती है। दीर्घकालिक संतुलन में, फर्म को अपने सभी लागतों को कवर करने के साथ-साथ उच्चतम संभावित लाभ प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।

    • एकलोपोली का सामाजिक लागत

      एकलोपोली का सामाजिक लागत अक्सर उच्च होता है क्योंकि फर्म अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए उच्च मूल्य निर्धारित करती है। इससे उपभोक्ताओं को हानि और बाजार में दक्षता में कमी आती है।

    • मूल्य भेदभाव

      मूल्य भेदभाव तब होता है जब एक फर्म एक ही उत्पाद के लिए अलग-अलग कीमतों का चार्ज करती है। यह उपभोक्ताओं की भुगतान करने की क्षमता के आधार पर होता है और इससे फर्म को अधिक लाभ प्राप्त करने का अवसर मिलता है।

    • एकलोपोली के लिए उपचार

      एकलोपोली के नकारात्मक प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जा सकते हैं, जैसे प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, सरकारी रेगुलेशन स्थापित करना और उपभोक्ता संरक्षण कानूनों का कार्यान्वयन।

  • Consumer and Producer Theory in Action: externalities, marginal cost pricing, internalising externalities, public goods, imperfect information (adverse selection, moral hazard), social choice, government inefficiency

    Consumer and Producer Theory in Action
    • Externalities

      बाह्य प्रभाव वे घटनाएँ हैं जो एक बाजार में व्यापारिक क्रियाओं के नतीजे के रूप में अन्य लोगों पर असर डालती हैं। सकारात्मक और नकारात्मक बाह्य प्रभाव होते हैं। सकारात्मक बाह्य प्रभाव में, एक व्यक्ति का कार्य दूसरों को लाभ पहुँचा सकता है, जैसे कि शिक्षा का विस्तार। नकारात्मक बाह्य प्रभाव में जैसे प्रदूषण का कारण बनना शामिल है।

    • Marginal Cost Pricing

      आधारभूत अर्थशास्त्र में, सीमांत लागत मूल्य निर्धारण एक प्रक्रिया है जिसमें एक उत्पाद या सेवा की कीमत उसके उत्पादन की सीमांत लागत के बराबर रखी जाती है। यह उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करती है कि वे अधिकतम उपयोग करें, जिससे उत्पादन की दक्षता बढ़ती है।

    • Internalising Externalities

      बाह्य प्रभावों को आत्मसात करना एक प्रक्रिया है जिसमें सरकार या कंपनियाँ उन लागतों को शामिल करती हैं जो उनका व्यापार समाज पर डालता है। यह टैक्स लगाकर या सब्सिडी देकर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, प्रदूषण पर कर लगाना एक नकारात्मक बाह्य प्रभाव को आत्मसात करने का एक तरीका है।

    • Public Goods

      सार्वजनिक वस्तुएँ ऐसी वस्तुएँ हैं जो सभी लोगों के लिए उपलब्ध होती हैं और इनमें से कोई भी व्यक्ति अपने उपयोग से दूसरे की आपूर्ति को कम नहीं करता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय रक्षा या सार्वजनिक पार्क। इनका उत्पादन क्यूंकि बाजार में नहीं होता है, इसलिए सरकार द्वारा इन्हें प्रदान किया जाता है।

    • Imperfect Information

      अपूर्ण सूचना आर्थिक बाजार में समस्या बन जाती है जब सभी प्रतिभागियों के पास समान जानकारी नहीं होती है। यह दो प्रकारों में बांटती है: प्रतिकूल चयन, जहां एक पक्ष अनुकूल जानकारी को छिपा लेता है, और नैतिक संकट, जहां एक पार्टी अपनी जानकारी का लाभ उठाती है।

    • Social Choice

      सामाजिक चयन सामाजिक दृष्टिकोण से उन विकल्पों के चयन की प्रक्रिया है, जो समाज के लिए सभी के हित में हों। यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में विभिन्न हितधारकों की सहभागिता को शामिल करता है, जैसे कि मतदान या सर्वेक्षण के माध्यम से।

    • Government Inefficiency

      सरकार की असमानता तब होती है जब सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम अपेक्षित परिणाम नहीं देते हैं। यह नीतियों की गलती, बेजा खर्च या प्रबंधकीय कमियों के कारण हो सकता है। यह प्रभावी सुशासन की आवश्यकता को दर्शाता है।

  • Markets and Market Failure: market adjustment, sources of market failure, evaluating the market mechanism

    Markets and Market Failure
    • Market Adjustment

      बाजार समायोजन का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कीमतें और मात्रा मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए समायोजित होती हैं। जब मांग बढ़ती है, तो कीमतें बढ़ती हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है। इसके विपरीत, जब मांग घटती है, तो कीमतें गिरती हैं और उत्पादन में कमी आती है।

    • Sources of Market Failure

      बाजार असफलता के विभिन्न स्रोत हैं जैसे कि सार्वजनिक वस्तुएं, बाह्यताएं, सूचना की असमानता और एकाधिकार। सार्वजनिक वस्तुएं ऐसी होती हैं जिनका उपभोग सभी लोग कर सकते हैं, जबकि किसी एक व्यक्ति के उपयोग से अन्य की उपलब्धता पर कोई असर नहीं पड़ता। बाह्यताएं वे प्रभाव हैं जो किसी व्यक्ति के क्रिया-कलापों से तीसरे पक्ष पर पड़ते हैं।

    • Evaluating the Market Mechanism

      बाजार तंत्र का मूल्यांकन करते समय इसके गुण और दोष दोनों को ध्यान में रखना आवश्यक है। बाजार तंत्र स्वतंत्र और प्रतिस्पर्धात्मक होने पर संसाधनों का कुशल आवंटन कर सकता है, किन्तु बाजार असफलता की स्थिति में यह अक्षम हो सकता है। इसलिए, सरकारी हस्तक्षेप कभी-कभी आवश्यक होता है ताकि सार्वजनिक हितों की रक्षा की जा सके।

  • Income Distribution and Factor pricing: input markets, labor and land markets, profit maximisation condition, income distribution

    Income Distribution and Factor Pricing
    • Input Markets

      इनपुट मार्केट का तात्पर्य पूंजी, श्रम और भूमि के बाजार से है, जहां उत्पादन के लिए आवश्यक संसाधनों का व्यापार होता है। इनपुट मार्केट में मूल्य निर्धारण के कई कारक होते हैं, जिनमें आपूर्ति और मांग, उत्पादन तकनीक और प्रतियोगिता शामिल हैं।

    • Labor Markets

      श्रम बाजार वह स्थान है जहाँ मजदूरी के लिए श्रमिकों और नियोक्ताओं के बीच लेन-देन होता है। श्रम बाजार में श्रमिकों की आपूर्ति और मांग उनके वेतन को प्रभावित करती है। उपयुक्त नौकरी के लिए लोगों का चयन और उन्हें कार्य पर रखना इस बाजार की विशेषता है।

    • Land Markets

      भूमि बाजार में जमीन के लिए लेन-देन होता है। भूमि की कीमत को उसके स्थान, उपयोग और कृषि या निर्माण के लिए उसकी उपयुक्तता निर्धारित करती है। इसकी आपूर्ति ज्यादातर सीमित होती है जो भूमि के मूल्य को प्रभावित करती है।

    • Profit Maximization Condition

      लाभ अधिकतमकरण की स्थिति का तात्पर्य उन कारकों के संयोजन से है जिनसे एक फर्म अपना लाभ अधिकतम कर सकती है। यह बताते हैं कि एक फर्म को उत्पादन में निवेश किए गए अंतिम धन की इकाई का लाभ उसके लागत के बराबर होना चाहिए।

    • Income Distribution

      आय वितरण सामाजिक और आर्थिक संरचना का आधार है। आय का वितरण विभिन्न कारकों जैसे श्रम, पूंजी और भूमि के स्वामित्व पर निर्भर करता है। यह वही तंत्र है जो निर्धनता और समृद्धि के बीच संबंध स्थापित करता है। आय वितरण का अध्ययन यह समझने में मदद करता है कि संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाता है और किस प्रकार से समाज में असमानता उत्पन्न होती है.

  • International Trade: absolute advantage, comparative advantage, terms of trade, trade barriers, free trade/protectionism

    अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
    • सापेक्ष लाभ (Comparative Advantage)

      सापेक्ष लाभ का विचार यह है कि दो देशों के बीच व्यापार केवल तब लाभकारी होता है जब प्रत्येक देश उन वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनमें उसे तुलनात्मक रूप से अधिक दक्षता है। इसका अर्थ है कि हर देश को अपनी उत्पादन प्रक्रिया में उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां उसकी दक्षता सबसे अधिक है। उदाहरण के लिए, यदि भारत अनाज और चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन करने में कुशल है, तो दोनों देशों को इन चीजों का व्यापार करना चाहिए।

    • पूर्ण लाभ (Absolute Advantage)

      पूर्ण लाभ का मतलब है कि एक देश किसी वस्तु का उत्पादन अधिक कुशलता से कर सकता है, यानी दूसरे देश की तुलना में कम संसाधनों का उपयोग करके। यदि एक देश अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करके अधिक मात्रा में उत्पादन कर सकता है, तो इसे पूर्ण लाभ कहा जाता है।

    • व्यापार की शर्तें (Terms of Trade)

      व्यापार की शर्तें वह दर होती हैं जिस पर एक देश अपनी वस्तुओं का व्यापार दूसरे देश में करता है। यह दर देशों के बीच व्यापारिक संतुलन को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, यदि भारत की शर्तें चाइना के साथ अधिक favorable हैं, तो भारत को अधिक लाभ हो सकता है।

    • व्यापार बाधाएं (Trade Barriers)

      व्यापार बाधाएं ऐसी नीतियाँ हैं जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बाधा डालती हैं। इसमें टैरिफ, क्वोटा और प्रशासनिक बाधाएं शामिल हैं। यह उपाय घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए अपनाए जाते हैं, लेकिन ये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

    • नि:शुल्क व्यापार (Free Trade) और संरक्षणवाद (Protectionism)

      नि:शुल्क व्यापार का विचार यह है कि बिना किसी बाधाओं के देशों के बीच व्यापार होना चाहिए। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और उपभोक्ताओं को लाभ होता है। दूसरी ओर, संरक्षणवाद का मतलब है कि एक देश अपनी घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए व्यापार बाधाएं लगाता है। इन दोनों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है ताकि आर्थिक विकास सुनिश्चित हो सके।

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