Page 1

Semester 1: Indian Philosophy

  • Introduction: Common characterstics and classification of Indian philosophical school: Āstika and Nāstika

    भारतीय दर्शन का परिचय: सामान्य विशेषताएँ और वर्गीकरण
    • भारतीय दर्शन की विशेषताएँ

      भारतीय दर्शन की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं: आध्यात्मिकता, व्यावहारिकता, अनन्तता और विवेचनात्मकता। यह दर्शन जीवन को समझने, अनुभव करने और उद्देश्यपूर्ण बनाने पर केंद्रित है।

    • आस्तिक और नास्तिक दर्शन

      आस्तिक (सिद्धांत मानने वाले) और नास्तिक (सिद्धांत न मानने वाले) भारतीय दर्शन के दो प्रमुख वर्ग हैं। आस्तिक दार्शनिकों का विश्वास है कि वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में वर्णित सत्य और सिद्धांतों का एक निश्चित महत्व है, जबकि नास्तिक दार्शनिक इन ग्रंथों के सिद्धांतों पर सवाल उठाते हैं।

    • आस्तिक स्कूल की प्रमुख धाराएँ

      आस्तिक स्कूल में विशेष रूप से छद्मदर्शन, योग, न्याय, वैशेशिक और सांख्य शामिल हैं। ये सभी धाराएँ भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से ब्रह्मांड के अस्तित्व और मनुष्य के जीवन के उद्देश्य का विश्लेषण करती हैं।

    • नास्तिक स्कूल की प्रमुख धाराएँ

      नास्तिक स्कूल में चार्वाक, बौद्ध दृष्टिकोण, और जैन दर्शन शामिल हैं। यह स्कूल जीवन के अनुभव पर जोर देता है और भौतिकता, तर्क और व्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों की ओर से झुकाव रखता है।

    • उपसंहार

      भारतीय दर्शन में आस्तिक और नास्तिक धाराओं के बीच का अध्ययन न केवल दर्शनशास्त्र को समझने में मदद करता है, बल्कि यह सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं को भी उजागर करता है।

  • Cārvāka School: Epistemology, Metaphysics, Ethics

    Cārvāka School: Epistemology, Metaphysics, Ethics
    • Epistemology

      Cārvāka दार्शनिकता में अनुभव को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका नज़रिया है कि केवल उन चीज़ों का ज्ञान ही सत्य है, जो इंद्रिय अनुभव के माध्यम से ज्ञात की जा सकती हैं। वे वेदों और अन्य पुरातन ग्रंथों को प्रमाणिक नहीं मानते।

    • Metaphysics

      Cārvāka भौतिकवाद का पक्षधर है। वे आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते और इसे केवल शरीर की क्रियाओं का परिणाम मानते हैं। उनके अनुसार, मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं है।

    • Ethics

      Cārvāka का नैतिकता दृष्टिकोण इस सिद्धांत पर आधारित है कि सुख ही अंतिम लक्ष्य है। वे प्रकृति के अनुसार जीवन जीने पर जोर देते हैं। उनके अनुसार, किसी भी कार्य का मूल्य उसके परिणाम द्वारा निर्धारित होता है।

  • Jainism: Concept of sat, dravya, paryāya, Guṇa; Anekāntavāda, Syādvāda and Sapta-bhaṅgi-naya, Theory of Karma, Bondage and Liberation

    Jainism: Concept of sat, dravya, paryaya, Guṇa; Anekāntavāda, Syādvāda and Sapta-bhaṅgi-naya, Theory of Karma, Bondage and Liberation
    • Concept of Sat in Jainism

      जैन धर्म में 'सत' का अर्थ है वास्तविकता। यह वह सत्य है जो परिवर्तनशील नहीं होता है और जो हमेशा स्थायी रहता है। सच्चाई की खोज में जैन दर्शन का गहरा महत्व है।

    • Dravya (पदार्थ)

      'dravya' का अर्थ है पदार्थ। जैन दर्शन में, पदार्थ तीन प्रकार के होते हैं: स्थूल, सूक्ष्म, और तात्त्विक। यह पदार्थ ब्रह्मांड के मूल तत्व माने जाते हैं और इन्हें कभी भी नष्ट नहीं किया जा सकता है।

    • Paryāya (पर्याय)

      'Paryāya' का अर्थ है अवस्था। यह जैन दर्शन में सिद्धांत है कि हर पदार्थ की कई अवस्थाएं होती हैं। इन अवस्थाओं को सही समझना आवश्यक है ताकि हम सही निर्णय ले सकें।

    • Guṇa (गुण)

      'Guṇa' का अर्थ गुण है। जैन सिद्धांत में गुणों का अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे पदार्थों की विशेषताएं हैं। गुणों से पदार्थ का चरित्र प्रकट होता है।

    • Anekāntavāda (अनेकान्तवाद)

      Anekāntavāda एक प्रमुख जैन सिद्धांत है जो कई दृष्टिकोणों की पहचान करता है। यह समझाने का प्रयास करता है कि सत्य को अनेक दृष्टियों से देखा जा सकता है और कोई भी एक दृष्टिकोण सम्पूर्ण सत्य नहीं हो सकता।

    • Syādvāda (सयद्वाद)

      Syādvāda Anekāntavāda का एक हिस्सा है। यह सिद्धांत यह बताता है कि किसी भी वस्तु का वर्णन सात तरीकों से किया जा सकता है, जिससे उसके गहरे और व्यापक पहलुओं को उजागर किया जा सके।

    • Sapta-bhaṅgi-naya (सप्त-भागी-न्याय)

      यह एक सिद्धांत है जो सत्य के सात पहलुओं को दर्शाता है। यह सिद्धांत जैन दृष्टिकोण से वैविध्य को समझाने में मदद करता है।

    • Theory of Karma (कर्म का सिद्धांत)

      जैन धर्म में, कर्म का सिद्धांत व्यक्ति के कार्यों और उनके परिणामों पर आधारित है। अच्छे कर्म सुख और बुरे कर्म दुःख लाते हैं, जो पुनर्जन्म के चक्र को प्रभावित करते हैं।

    • Bondage and Liberation (बंधनों और मुक्ति)

      जैन धर्म में बंधन वे आत्मिक बाधाएं हैं जो व्यक्ति के विकास में रुकावट डालती हैं। मुक्ति का अर्थ आत्मा का परम शुद्धिकरण और जन्म-मृत्यु के चक्र से स्वतंत्रता है।

  • Buddhism: Four noble truths, Theory of dependent origination (Pratītyasamutpāda), Definition of Reality (Arthakriyākāritvamsattvam), Doctrine of momentariness (Kṣhaṇabhangavāda), Theory of no-soul (Nairātmyavāda), Nirvāṇa, Hīnyāna and Mahāyāna

    Buddhism
    बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य जीवन के दुखों और उनके समाधान को समझाने के लिए हैं। ये सत्य हैं: (1) दुख, (2) दुख का कारण, (3) दुख का नाश, (4) दुख का नाश कैसे संभव है।
    यह सिद्धांत कहता है कि सब कुछ एक दूसरे पर निर्भर करता है। किसी भी वस्तु या अनुभव का अस्तित्व अनगिनत कारणों और प्रभावों पर निर्भर करता है।
    इसका तात्पर्य है वस्तु का अस्तित्व और उसके औचित्य का मूल्यांकन। बौद्ध दृष्टिकोण से, वास्तविकता बहुआयामी और संदर्भादि होती है।
    यह सिद्धांत बताता है कि सब कुछ क्षणिक है। सभी अनुभव, भावनाएँ और वस्तुएँ निरंतर परिवर्तनशील हैं।
    यह सिद्धांत आत्मा के अस्तित्व को नकारता है। बौद्ध धर्म में, व्यक्ति की पहचान और अनुभव स्वयं में स्थायी नहीं होते हैं।
    निर्वाण बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य है, जो सभी दुखों से मुक्ति और शांति का प्रतीक है।
    हिनायन साधारण बौद्ध मार्ग है जबकि महायान एक विस्तृत और समग्र मार्ग है, जिसका उद्देश्य सभी प्राणियों की मुक्ति है।
  • Sāṅkhya: Satkāryavāda, Nature of Prakṛti, its constituents and proofs for its existence, Nature of Puruṣa and proofs for its existence, plurality of the Puruṣas, theory of evolution

    Sāṁkhya: Satkāryavāda, Nature of Prakṛti, its constituents and proofs for its existence, Nature of Puruṣa and proofs for its existence, plurality of the Puruṣas, theory of evolution with reference to this context
    • Satkāryavāda

      सत्कार्यवाद philosophically यह विचार प्रस्तुत करता है कि परिवर्तन या कार्य केवल पहले से विद्यमान कारणों के प्रभाव से होते हैं। एक विशिष्ट वस्तु की उत्पत्ति उसके मूल कारण से होती है।

    • प्रकृति का स्वभाव

      प्रकृति को अदृश्य बलों का समूह माना जाता है जो संसार की सभी वस्तुओं और घटनाओं का निर्माण करती है। इसकी तीन प्रमुख गुण हैं: सत्व, रजस और तमस।

    • प्रकृति के अवयव

      प्रकृति के अवयवों में सभी भौतिक तत्व शामिल हैं। यह अवयव चेतना और जीवन के मूलभूत तत्वों का निर्माण करते हैं।

    • प्रकृति के अस्तित्व के प्रमाण

      प्रकृति के अस्तित्व के प्रमाण में भौतिक संसार की विविधताओं और विकास का अवलोकन शामिल होता है। सभी रूप विहीनता में आत्मा का सिद्धांत भी है।

    • पुरुष का स्वभाव

      पुरुष का स्वभाव शुद्ध चेतना के रूप में परिभाषित होता है। यह स्थायी और निरंतर है जबकि प्रकृति परिवर्तनशील होती है।

    • पुरुष के अस्तित्व के प्रमाण

      पुरुष के अस्तित्व के प्रमाण में व्यक्ति की अनुभूति, जागरूकता और आत्मज्ञान शामिल हैं।

    • पुरुषों की बहुलता

      पुरुषों की बहुलता का विचार कहता है कि प्रत्येक जीव में एक अलग आत्मा होती है। यह सृष्टि के विभिन्न स्तरों और अनुभवों को संबोधित करता है।

    • विकास का सिद्धांत

      विकास का सिद्धांत कहता है कि प्रकृति और पुरुष के बीच एक संबंध है जो जीवन के विकास को दिशा देता है। यह क्रमिक परिवर्तन और विकास का विचार प्रस्तुत करता है।

  • Yoga: Citta, Cittavṛtti, Cittabhūmi, Eight fold path of Yoga (Aṣṭāṅga Yoga), God

    योग
    • चित्त

      चित्त का अर्थ मन या मानसिक अवस्था है। यह व्यक्ति की सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है। चित्त का संतुलन और शांति योग का मुख्य उद्देश्‍य है।

    • चित्तवृत्तियों

      चित्तवृत्तियाँ वे मानसिक अवस्थाएँ हैं जो चित्त में निरंतर बदलती रहती हैं। ये पांच प्रकार की होती हैं: प्रमाद, विपर्या, व्यामिश्रता, निद्रा और स्मृति। योग का लक्ष्य इन वृतियों को नियंत्रित करना है।

    • चित्तभूमि

      चित्तभूमि का अर्थ है चित्त की अवस्थाएँ। चित्त की चार प्रमुख अवस्थाएँ हैं: क्षipta (व्याकुलता), एकाग्रता, क्लिष्टता (अवरोध) और निरोध (संयम)। योग साधना के माध्यम से व्यक्ति इन अवस्थाओं को समझकर और नियंत्रित करके आत्मा की उच्च स्थिति तक पहुँच सकता है।

    • आष्टांग योग

      आष्टांग योग, जिसे आठ अंगों का योग कहा जाता है, पतंजलि द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इसके आठ अंग हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ये सभी अंग मिलकर योग के सही पथ को दर्शाते हैं।

    • ईश्वर की अवधारणा

      योग में ईश्वर का अवधारणा अहम् स्थान रखती है। व्यक्ति का लक्ष्य ईश्वर या परम सत्य को समझना और अनुभव करना है। ईश्वर से जुड़ने के लिए साधना और आत्मा की शुद्धता आवश्यक है।

  • Nyāya: Pramā and Pramāṇa, Pratyakṣa (definition), Sannikarṣa, Classification of Pratyakṣa: Nirvikalpa, Savikalpa, Laukika, Alaukika; Anumiti, Anumāna (definition), Vyāpti, Parāmarśa, Classification of Anumāna: Pūrvavat, Śeṣavat, Sāmānyatodṛṣṭa, Kevalānvayi, Kevalavyatireki, Anvaya-vyatireki, Svārthanumāna, Parārthanumāna, Upmāna, Śabda Pramāṇa.

    Nyāya: Pramā and Pramāṇa, Pratyakṣa, Sannikaraṣa, Classification of Pratyakṣa, Anumiti, Anumāna, Vyāpti, Parāmarśa, Classification of Anumāna, Śabda Pramāṇa
    • Nyāya: Pramā and Pramāṇa

      Nyāya दर्शन में प्रमा और प्रमाṇ का महत्व है। प्रमा का अर्थ है प्रमाण, जिससे ज्ञान की सत्यता सिद्ध होती है। प्रमाṇ वह साधन होता है, जिससे ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

    • Pratyakṣa (पर्यवेक्षण)

      Pratyakṣa एक प्रत्यक्ष ज्ञान है, जो इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होता है। यह ज्ञान तात्कालिक और प्रत्यक्ष होता है।

    • Sannikaraṣa

      Sannikaraṣa प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार भिन्न प्रकार के ज्ञान एक साथ काम करते हैं। यह ज्ञान की गहराई में जाने का माध्यम है।

    • Classification of Pratyakṣa

      Pratyakṣa को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है: Nirvikalpa (निर्विकल्प) और Savikalpa (सविकल्प) जो ज्ञान की स्पष्टता को दर्शाते हैं।

    • Anumiti (अनुमान)

      Anumiti का अर्थ है विचार के आधार पर निष्कर्ष निकालना। यह ज्ञान की एक प्रक्रिया है जो समर्थ की रहित है।

    • Anumāna (अनुमान की परिभाषा)

      Anumāna एक प्रकार की तर्कशक्ति है, जो पूर्ववर्ती प्रमेय से निष्कर्ष की ओर जाती है।

    • Vyāpti (व्याप्ति)

      Vyāpti से तात्पर्य है कि किसी में गुण होने पर वह समान रूप से सभी में विद्यमान होता है। यह ज्ञान की सच्चाई दिखाता है।

    • Parāmarśa

      Parāmarśa विचार के गहरे विश्लेषण को संदर्भित करता है। यह ज्ञान की समग्रता और उसकी गहराई को इंगित करता है।

    • Classification of Anumāna

      Anumāna को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है: Pūrvavat (पूर्ववत), Śeṣavat (शेषवत), Sāmānyatodṛṣṭanta (सामान्यतोडृष्टांत), Kevalānwī (केवलान्वयी), Kevalavyatireki (केवलव्यतिरेकी), Anvaya-vyatireki (अन्वय - व्यतिरिक्त), Svārthanumāna (स्वार्थानुमान), Parārthanumāna (परार्थानुमान), Upamāna (उपमान), Śabda Pramāṇa (शब्द प्रमाण)।

  • Vaiśeṣika: Padārtha, Dravya, Guṇa, Karma, Sāmānya, Viśeṣa, Samavāya, Abhāva

    Vaiśeṣika: Padārtha, Dravya, Guṇa, Karma, Sāmānya, Viśeṣa, Samavāya, Abhāva
    • Padārtha

      Padārtha का अर्थ वस्तु या पदार्थ होता है जो सभी ज्ञेय या जाने जाने योग्य वस्तुओं को संदर्भित करता है। वैयाकरणिक दृष्टिकोण में, यह भी कहा जाता है कि padārtha का अध्ययन हमें विभिन्न ज्ञान यानी धारणाओं और उनके अस्तित्व को समझने में मदद करता है।

    • Dravya

      Dravya का अर्थ है पदार्थ या वस्तु जो स्थायी होते हैं। वैयाकरणों ने dravya को मूलभूत तत्वों में बांटा है, जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। यह भौतिक सत्यों की मूल्यांकन में महत्वपूर्ण होता है।

    • Guṇa

      Guṇa गुण का साथ है, जो किसी dravya की विशेषताएँ निर्धारित करता है। इसका अर्थ है वे बिंदु जो किसी वस्तु की गुणवत्ता या स्थिति को दर्शाते हैं जैसे रंग, आकार, संख्या आदि।

    • Karma

      Karma का आशय क्रिया या कार्य से है। यह बताता है कि किसी वस्तु के क्रियाकलाप या क्रियाशीलता क्या होती है। इसे व्यवहारों और परिणामों से भी जोड़ा जाता है।

    • Sāmānya

      Sāmānya सामान्यता या सार्वभौमिकता का संकेत देता है। यह padārtha या dravya के भीतर साझा गुणों को समझने में मदद करता है। यह दर्शाता है कि कैसे विभिन्न पदार्थ एक सामान्य वर्ग में आते हैं।

    • Viśeṣa

      Viśeṣa विशेषता या विशिष्टता को दर्शाता है। यह वस्तुओं में भिन्नता को पहचानने में मदद करता है। प्रत्येक वस्तु की अनूठी फ़ीचर्स को विवेचित करता है।

    • Samavāya

      Samavāya एक संबंध है जो विभिन्न तत्वों के बीच वास्तव में जुड़ने को दर्शाता है। यह वस्तुओं के गुण और उनके तत्व के बीच संबंध बनाया जाता है।

    • Abhāva

      Abhāva का अर्थ है अनुपस्थिति या न होना। यह समझने में मदद करता है कि किसी वस्तु या गुण की अनुपस्थिति का क्या अर्थ है और इसे कैसे समझा जा सकता है।

  • Mīmāṁsā (Prabhākara and Bhatta): Arthāpatti and Anuplabdhi as source of knowledge.

    मीमांसाः (प्रभाकर और भट्ट): अर्थापत्ति और अनुपलब्धि ज्ञान के स्रोत के रूप में
    • मीमांसाः का परिचय

      मीमांसाः एक प्रमुख भारतीय दर्शन है जो वेदों की व्याख्या और प्रमाणों के अध्ययन पर आधारित है। इसमें दो मुख्य शाखाएं हैं - प्रभाकर और भट्ट। ये दोनों अपने अनूठे दृष्टिकोणों के लिए जाने जाते हैं।

    • प्रभाकर की मीमांसाः

      प्रभाकर की मीमांसाः में मुख्य रूप से अर्थापत्ति और अनुपलब्धि के सिद्धांत पर जोर दिया गया है। उनका मानना था कि कुछ ज्ञान उन चीजों से उत्पन्न होता है जो सीधे अनुभव में नहीं आतीं, बल्कि तर्क और व्याख्या से ज्ञात होती हैं।

    • भट्ट की मीमांसाः

      भट्ट ने अपने सिद्धांत में अनुभव के माध्यम से प्राप्त ज्ञान को महत्वपूर्ण माना। उन्होंने प्रमाणों की विभिन्न श्रेणियों पर ध्यान दिया और अनुभव को मुख्य स्रोत के रूप में स्वीकार किया।

    • अर्थापत्ति का सिद्धांत

      अर्थापत्ति का अर्थ है किसी चीज के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए उसके अव्यक्त परिणामों का उपयोग करना। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक कमरे में है, और वहाँ कोई वस्तु नहीं है, तो यह कहा जा सकता है कि वह वस्तु कहीं और है।

    • अनुपलब्धि का सिद्धांत

      अनुपलब्धि का अर्थ है किसी वस्तु का अनुपस्थित होना। यह ज्ञान का एक स्रोत है, जहां हम किसी वस्तु की अनुपस्थिति को देखकर उसके अस्तित्व के बारे में निष्कर्ष निकाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम जानते हैं कि एक विशेष पुस्तक एक पुस्तकालय में नहीं है, तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वह पुस्तक वहाँ नहीं है।

    • ज्ञान के स्रोत

      मीमांसाः में ज्ञान के विभिन्न स्रोतों की व्याख्या की गई है। अर्थापत्ति और अनुपलब्धि दोनों को ज्ञान के स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है और वेदों की व्याख्या में इन सिद्धांतों का महत्वपूर्ण स्थान है।

  • Advaita Vedānta: Śaṅkara’s view of Brahman, Saguṇa and Nirguṇa Brahman, Three grades of Sattā:Prātibhāsika,Vyāvahārika,Pāramārthika, Jīva, Jagat, Māyā and Mokṣa.

    Advaita Vedānta: Śaṅkara's view of Brahman, Saguṇa and Nirguṇa Brahman
    Advaita Vedānta एक प्रमुख भारतीय दार्शनिक परंपरा है, जिसे अड्वैता के रूप में भी जाना जाता है। यह शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। अड्वैता का अर्थ है अद्वितीयता, जिसका तात्पर्य है कि आत्मा (आत्मा) और ब्रह्म के बीच कोई भेद नहीं है।
    शंकराचार्य ने ब्रह्म को एक निराकार, अनंत और अचिन्त्य के रूप में प्रस्तुत किया है। ब्रह्म सभी चीजों का स्रोत और कारण है।
    सगुण ब्रह्म वह ब्रह्म है जो गुणों के साथ है, जैसे भक्तिपूर्ण रूप में, जबकि निर्गुण ब्रह्म गुणों से मुक्त है। शंकराचार्य के अनुसार, निर्गुण ब्रह्म सत्य है, जबकि सगुण ब्रह्म एक सांकेतिक रूप है।
    यह वह स्तर है जो सामान्य अनुभव में आता है, जैसे सपने देखना।
    यह स्तर संवेदनाओं और भौतिकता का अनुभव करता है, जैसे दिनचर्या का जीवन।
    यह अंतिम सत्य है, जो अद्वितीयता को दर्शाता है।
    जीव वह आत्मा है जो ब्रह्म के साथ एकता की खोज में है।
    यह वह विश्व है जिसमें जीव रहते हैं और जिसे माया के माध्यम से अनुभव करते हैं।
    माया वह शक्ति है जो ब्रह्म के आगम में भेद उत्पन्न करती है।
    मोक्ष आत्मा का अंतिम उद्धार है, जहाँ आत्मा ब्रह्म के साथ मिल जाती है।
    Indian Philosophy
    Bachelor of Arts
    B.A. Philosophy
    1
    Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith
  • Viśiṣṭādvaita Vedānta: Rāmānuja’s view of Brahman, Jīva, Jagat, Refutation of the doctrine of Māyā, Mokṣa

    Viśiṣṭādvaita Vedānta: Rāmānuja's view of Brahman, Jīva, Jagat, Refutation of the doctrine of Māyā, Mokṣa with reference to this context
    • Brahman

      रāmānuja के अनुसार, ब्रह्मन अद्वितीय और दृष्टव्य है। यह चैतन्य और अनंत का साक्षात उदाहरण है। रāmānuja ने ब्रह्मन को पराशक्ति के रूप में वर्णित किया है, जो सृष्टि की आधार है।

    • Jīva

      जिवा जीवित और अद्वितीय है, जो ब्रह्मन के साथ संबंध में होता है। रāmānuja के अनुसार, जिवा का सार स्वभाव शुद्ध चेतना है और यह ब्रह्मन के आत्मा का एक अंश है।

    • Jagat

      जगत को रāmānuja ने एक वास्तविकता के रूप में माना है। यह निर्बाध अनुभव का अधिकांश है, और इसे ब्रह्मन की शक्ति से संचालित समझा गया है।

    • Refutation of the doctrine of Māyā

      रāmānuja ने माया के सिद्धांत को अस्वीकार किया है। उनके अनुसार, माया केवल एक भ्रम है और वास्तविकता ब्रह्मन और जगत की है।

    • Mokṣa

      मोक्ष को रāmānuja ने ब्रह्मन के साथ एकता के रूप में परिभाषित किया है। यह आत्मा के विकास और उसके सही ज्ञान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

Indian Philosophy

Bachelor of Arts

B.A. Philosophy

1

Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith

free web counter

GKPAD.COM by SK Yadav | Disclaimer