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Semester 3: History of Economic Thought

  • Indian Economic Thinkers: Kautilya, Valluvar, Dada Bhai Naoroji, BR Ambedkar, Gandhian Economics

    Indian Economic Thinkers
    • Kautilya

      कौटिल्य, जिनको चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, उनकी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का विवरण है। उन्होंने राज्य और अर्थव्यवस्था के बीच घनिष्ठ संबंध को स्पष्ट किया है। उनका मानना था कि सरकार की शक्ति और आर्थिक नीतियाँ एक दूसरे पर निर्भर होती हैं।

    • Valluvar

      वल्लुवर, एक प्रसिद्ध तमिल मनीषी हैं, जिनकी रचना 'तिरुक्कुरल' में सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक सिद्धांतों का समावेश है। उन्होंने न्याय और धन के उपयोग पर जोर दिया और समाज के लिए एक स्थायी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को पृष्ठभूमि में रखा।

    • Dada Bhai Naoroji

      दादाभाई नौरोजी, जिन्हें देश का पहला अर्थशास्त्री कहा जाता है, वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे। उनका दृष्टिकोण था कि ब्रिटिश नीतियों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है। उन्होंने ' drain theory' पेश की, जिसमें कहा कि ब्रिटिश राज के कारण भारत से धन का निर्गमन हो रहा है।

    • BR Ambedkar

      डॉ. भीमराव अंबेडकर, भारतीय संविधान के मुख्य architect थे, और उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने अर्थव्यवस्था में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया और विकास नीतियों में समावेशिता की बात की।

    • Gandhian Economics

      महात्मा गांधी के अर्थशास्त्र का केंद्र बिंदु सर्वजन सुखाय था। उन्होंने आत्मनिर्भरता, ग्राम स्वराज और साधारण जीवन के सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया। गांधी जी का मानना था कि विकास के लिए नैतिकता और समाजिक जिम्मेदारी आवश्यक हैं।

  • Other Thinkers: Pt. Deen Dayal Upadhyay, JK Mehta, AK Sen, J Bhagwati

    Other Thinkers: Pt. Deen Dayal Upadhyay, JK Mehta, AK Sen, J Bhagwati
    डीन दयाल उपाध्याय एक प्रमुख भारतीय विचारक थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 'एकात्म मानववाद' का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे वे समाजवादी विचारधारा के भारतीय संस्करण के रूप में मानते थे। उनके अनुसार, मानव समाज के विकास के लिए उसका आध्यात्मिक और भौतिक दोनों पक्षों का विकास जरूरी है।
    उनके विचारों ने भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा की नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    जेके मेहता ने भारतीय अर्थशास्त्र में विभिन्न तरीकों और सिद्धांतों पर विचार किया। वे महत्वपूर्ण मौद्रिक सिद्धांतों के प्रस्तावक रहे हैं और उन्होंने भारतीय सरकारी नीतियों पर भी व्यापक शोध किया।
    उनके कार्यों ने भारत की आर्थिक नीतियों को समझने और विश्लेषित करने में महत्वपूर्ण सहयोग किया।
    एके सेन एक प्रख्यात अर्थशास्त्री और कल्याणकारी नीतियों के समर्थक थे। उन्होंने 'विकास की असमानता' और 'सामाजिक न्याय' जैसे मुद्दों पर जोर दिया।
    उनकी शोध कार्यों ने विकास की प्रक्रियाओं में सामाजिक पहलुओं को शामिल करने की आवश्यकता की पहचान की।
    जगदीश भगवती एक प्रमुख अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने वैश्वीकरण और व्यापार के सिद्धांतों पर महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने आर्थिक विकास और व्यापार नीति पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
    उनके विचारों ने दुनिया भर में व्यापार नीतियों और वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की समझ को विस्तारित किया।
  • Early economic thought: Plato, Aristotle - Just Cost and Just Price

    Early economic thought: Plato, Aristotle - Just Cost and Just Price
    • प्लेटो का आर्थिक विचार

      प्लेटो ने न्याय, सच्चाई और मानवता के लिए आदर्श समाज की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने उत्पादन और कीमतों के उचित मूल्य के बारे में बात की। प्लेटो के अनुसार, प्रत्येक वस्तु का एक उचित मूल्य होना चाहिए, जो उसके उपयोगिता और गुणवत्ता पर आधारित हो।

    • अरस्तू का आर्थिक दृष्टिकोण

      अरस्तू ने प्लेटो के विचारों को विकसित किया और अर्थशास्त्र को एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने 'न्यायपूर्ण मूल्य' की अवधारणा पेश की, जहां कीमत बाजार की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। अरस्तू के अनुसार, एक वस्तु का मूल्य उसके उत्पादन में लगे श्रम और संसाधनों पर निर्भर करता है।

    • न्यायपूर्ण लागत

      प्लेटो और अरस्तू दोनों ने न्यायपूर्ण लागत की अवधारणा पर विचार किया। यह मानता है कि किसी वस्तु की लागत उसके न्यायपूर्ण मूल्य के साथ मेल खाना चाहिए, ताकि समाज में समानता और संतुलन बना रहे।

    • न्यायपूर्ण मूल्य

      न्यायपूर्ण मूल्य का अर्थ है कि मूल्य का निर्धारण बाजार की स्थितियों, उपयोगिता और सामाजिक आवश्यकता के आधार पर होना चाहिए। इसे निर्धारण करते समय आर्थिक और नैतिक विचारों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    • प्लेटो और अरस्तू की तुलना

      प्लेटो ने आदर्श राज्य की स्थापना और समर्पण के सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि अरस्तू ने व्यावहारिकता और साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण को अपनाया। दोनों ने मूल्य निर्धारण के लिए न्याय और सामर्थ्य पर जोर दिया।

  • Mercantilism: characteristics, Thomas Munn; Physiocracy: Natural Order, Turgot

    Mercantilism and Physiocracy
    • Mercantilism

      मर्केंटिलिज्म एक आर्थिक सिद्धांत है जो 16वीं से 18वीं सदी के बीच प्रचलित था। इसके अनुसार, एक देश की समृद्धि उसके भंडार में सोने और चांदी की मात्रा पर निर्भर करती है।

    • Characteristics of Mercantilism

      मर्केंटिलिज्म की प्रमुख विशेषताएँ हैं: 1. राज्य का आर्थिक नियंत्रण। 2. आयातों पर प्रतिबंध और निर्यातों को बढ़ावा देना। 3. व्यापार संतुलन को बनाए रखना।

    • Thomas Mun

      थॉमस मुन एक प्रमुख मर्केंटिलिस्ट थे। उन्होंने व्यापार संतुलन के महत्व को बताया और कहा कि अधिक निर्यात से एक देश की समृद्धि बढ़ती है।

    • Physiocracy

      फिज़िओक्रेसी एक अन्य आर्थिक सिद्धांत है जो 18वीं सदी में उभरा। इसके अनुसार, भूमि और प्राकृतिक संसाधन वास्तविक धन के प्रमुख स्रोत हैं।

    • Natural Order

      फिज़िओक्रेसी का मानना है कि प्राकृतिक व्यवस्था में एक संतुलन होता है, और आर्थिक गतिविधियों को इस संतुलन के अनुसार संचालित करना चाहिए।

    • Turgot

      एटी टर्ज़ोत फिज़िओक्रेसी के प्रमुख विचारकों में से एक थे। उन्होंने आर्थिक स्वतंत्रता और सरकार द्वारा कम हस्तक्षेप के पक्ष में तर्क किया।

  • Classical Period: Adam Smith - division of labour, theory of value; David Ricardo - theory of rent; Malthus - population theory

    Classical Period in Economic Thought
    • Adam Smith

      एडम स्मिथ को आधुनिक अर्थशास्त्र का पिता माना जाता है। उनकी प्रमुख कृति 'द वेल्थ ऑफ नेशन्स' में श्रम का विभाजन का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार, श्रम का विभाजन उत्पादन में दक्षता बढ़ाता है और यह आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण कारक है। एडम स्मिथ ने मूल्य के सिद्धांत पर भी चर्चा की, जिसमें उन्होंने बताया कि मूल्य का निर्धारण श्रमिकों की लागत और वस्तु की उपयोगिता पर निर्भर करता है।

    • David Ricardo

      डेविड रिकार्डो ने आर्थिक सिद्धांतों को और आगे बढ़ाया। वे रेंट के सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं। उनके अनुसार, भूमि और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए रेंट का निर्धारण उनकी उत्पत्ति और उत्पादन के लिए आवश्यक संसाधनों के आधार पर होता है। रिकार्डो ने यह भी बताया कि रेंट का स्तर भूमि की उत्पादकता पर निर्भर करता है।

    • Thomas Malthus

      थॉमस मॉल्थस अपने जनसंख्या सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि जनसंख्या हमेशा संसाधनों की उपलब्धता से अधिक बढ़ती है, जिसके परिणामस्वरूप संसाधनों की कमी होती है। मॉल्थस ने यह चेतावनी दी कि यदि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह भुखमरी और संघर्ष का कारण बन सकता है। उनका सिद्धांत समाज के आर्थिक और सामाजिक ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है।

  • German Romantics and Socialists: Sismondi, Karl Marx; economic ideas of J.B. Say, J.S. Mill

    German Romantics and Socialists: Sismondi, Karl Marx; economic ideas of J.B. Say, J.S. Mill
    • जर्मन रोमांटिक्स और समाजवादी

      जर्मन रोमांटिक्स ने कला और साहित्य में व्यक्ति की भावना और स्वातंत्र्य को महत्वपूर्ण आस्था दिया। उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव और सामाजिक संघर्ष को महत्व दिया। सिसमोंडी और कार्ल मार्क्स जैसे विचारकों ने समाजवादी विचारधारा को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    • सिसमोंडी के आर्थिक विचार

      सिसमोंडी ने आर्थिक विकास में सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अपने कार्यों में ध्यान दिलाया कि कैसे आर्थिक वृद्धि सामाजिक असमानताओं को बढ़ा सकती है। उनका मानना था कि सरकार को उत्पादन और वितरण पर नियंत्रण रखना चाहिए ताकि सभी वर्गों के लिए लाभ सुनिश्चित हो सके।

    • कार्ल मार्क्स के आर्थिक विचार

      कार्ल मार्क्स ने साम्यवाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया जो पूंजीवादी समाज की आलोचना पर आधारित था। उन्होंने श्रमिक वर्ग की स्थिति और पूंजीपतियों के बीच की असमानता को उजागर किया। मार्क्स के अनुसार, उत्पादन के साधनों का सामूहिक स्वामित्व ही सच्ची स्वतंत्रता और समानता की ओर ले जाएगा।

    • J.B. Say के आर्थिक विचार

      J.B. Say ने पेश किया कि आर्थिक विकास की कुंजी व्यापार और उद्यमिता में है। उन्होंने कहा कि उत्पादन मांग को जन्म देता है, जिसे Say's Law के नाम से जाना जाता है। उनका दृष्टिकोण था कि आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से समाज का समग्र उत्थान संभव है।

    • J.S. Mill के आर्थिक विचार

      J.S. Mill ने उदारता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया। उन्होंने आर्थिक न्याय और श्रमिकों के अधिकारों पर जोर दिया। उनके विचारों में सामाजिक कल्याण का महत्व था और उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक बताया।

  • Marshall as Synthesizer: time in price determination, consumer surplus, quasi-rent; Pigou welfare economics; Schumpeter role of entrepreneur

    Marshall as Synthesizer: time in price determination, consumer surplus, quasi-rent; Pigou welfare economics; Schumpeter role of entrepreneur
    मार्शल ने अर्थशास्त्र में विभिन्न विचारों का समन्वय किया और इसे एक स्पष्ट ढाँचे में प्रस्तुत किया। उन्होंने भिन्न भिन्न अध्ययनों के योगदान को समझा और उन्हें एकीकृत किया।
    मार्शल के अनुसार, समय मूल्य निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समय के साथ माँग और आपूर्ति के परिवर्तनों से कीमतों में बदलाव होता है।
    ग्राहक अधिशेष उस अतिरिक्त लाभ को दर्शाता है जो उपभोक्ता एक उत्पाद को खरीद कर प्राप्त करते हैं। यह इस अंतर को बताता है कि उपभोक्ता एक उत्पाद के लिए क्या भुगतान करने के लिए तैयार हैं और वे वास्तव में कितना भुगतान करते हैं।
    क्वासी-भाड़ सीधे तौर पर भौतिक संपत्ति से ज़्यादा जुड़े होते हैं और यह तब उत्पन्न होता है जब उत्पादन की स्थिति स्थिर होती है। यह एक अस्थायी लाभ है जो सीमित संसाधनों से उत्पन्न होता है।
    पिगाउ अर्थशास्त्र की भलाई के सिद्धांत पर आधारित है, जो सामाजिक कल्याण के लिए आर्थिक गतिविधियों के प्रभाव को समझाती है। यह सरकार की भूमिका और जनहित में हस्तक्षेप के प्रस्ताव को भी उठाती है।
    शंपेटर ने उद्यमियों को आर्थिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाने वाला व्यक्ति माना। वह नवाचार और रचनात्मक विनाश के जरिए बाजार में बदलाव लाते हैं।
  • Marginalists: Jevons, Walras, Menger; Bohm-Bawark, Wicksell, Fisher - quantity theory of money

    Marginalists and Quantity Theory of Money
    • जेवन्स (Jevons)

      जेवन्स ने सीमांत उपयोगिता का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने यह बताया कि एक वस्तु का मूल्य उसके सीमांत उपयोगिता पर निर्भर करता है। अधिक मात्रा में उपभोग करने पर उपयोगिता कम होती जाती है।

    • वालरस (Walras)

      वालरस ने सामान्य संतुलन का सिद्धांत विकसित किया। उन्होंने यह समझाया कि विभिन्न बाजारों में वस्तुओं का मूल्य कैसे निर्धारित होता है और कैसे बाजार में संतुलन स्थापित होता है।

    • मेंगर (Menger)

      मेंगर ने मूल्य के प्राकृतिक सिद्धांत पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि वस्तुओं का मूल्य मानव आवश्यकताओं और उनकी सीमांत उपयोगिता पर निर्भर करता है।

    • बोहम-बावर्क (Bohm-Bawerk)

      बोहम-बावर्क ने पूंजी और ब्याज पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने समय के साथ उत्पादन में पूंजी के योगदान को समझाया।

    • विकसेल (Wicksell)

      विकसेल ने ब्याज दरों और उनके अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के बीच संबंध पर विचार किया। उन्होंने प्राकृतिक ब्याज दर की अवधारणा विकसित की।

    • फिशर (Fisher)

      फिशर ने धन के बहुलता के सिद्धांत को विकसित किया। उन्होंने यह समझाया कि धन की मात्रा और मूल्य के बीच संबंध कैसे कार्य करता है।

    • धन का मात्रा सिद्धांत (Quantity Theory of Money)

      यह सिद्धांत बताता है कि अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा का स्तर मूल्य स्तर पर सीधे प्रभाव डालता है। यदि धन की मात्रा बढ़ती है, तो सामान्य स्तर पर कीमतें भी बढ़ती हैं।

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