Page 4

Semester 4: Indian Logic or Western Logic

  • Indian Logic: Definition, nature and scope.

    Indian Logic: Definition, nature and scope
    • Item

      भारतीय तर्कशास्त्र (Indian Logic) को विभिन्न विचारधाराओं और परंपराओं के संदर्भ में समझा जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य सत्य और ज्ञान की पूर्ति करना है। भारतीय तर्क की जड़ें वेदांत, न्याय और बौद्ध दर्शन में हैं।
    • Item

      भारतीय तर्क का स्वभाव विश्लेषणात्मक और विवेचनात्मक होता है। यह तर्क केवल तर्क के सिद्धांतों पर नहीं, बल्कि अनुभव, आंतरिक अनुभव और आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
    • Item

      भारतीय तर्क का दायरा बहुत व्यापक है। यह न केवल नैतिक और दार्शनिक तर्कों तक सीमित है, बल्कि यह जीवन की सभी धाराओं को प्रभावित करता है, जैसे कि नीति, विज्ञान, और समाजशास्त्र। इसके अलावा, भारतीय तर्क का उपयोग तर्कशास्त्र और वैज्ञानिक शोध में भी किया जाता है।
    • Item

      भारतीय तर्क और पश्चिमी तर्क में कई भिन्नताएँ हैं। पश्चिमी तर्क अधिकतर औपचारिक तर्क पर केंद्रित है, जबकि भारतीय तर्क अनुभवजन्य और भौतिकवादी सिद्धांतों की ओर भी ध्यान देता है।
    • Item

      भारतीय तर्क की महत्वपूर्णता इस तथ्य में निहित है कि यह विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों के साथ संवाद स्थापित करने में सहायक होता है। यह समुचित और न्यायसंगत निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी प्रोत्साहित करता है।
  • Nature of Knowledge

    Nature of Knowledge with reference to Indian Logic or Western Logic
    • ज्ञान की परिभाषा

      ज्ञान के विभिन्न रूप होते हैं। यह अनुभव, प्रमाण और विश्वास पर आधारित हो सकता है। भारतीय और पश्चिमी तर्कशास्त्र दोनों में ज्ञान की अवधारणा को समझने के लिए इसे कई दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है।

    • भारतीय तर्कशास्त्र

      भारतीय तर्कशास्त्र में ज्ञान का स्रोत वेद, अनुभव और प्रमाणों पर होता है। इसका मुख्य उद्देश्य सत्य की खोज करना और ज्ञान को प्राप्त करना होता है।

    • पश्चिमी तर्कशास्त्र

      पश्चिमी तर्कशास्त्र में ज्ञान का आधार तर्क, प्रमाण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर होता है। यहां ज्ञान की तात्कालिकता और प्रमाण का बहुत महत्व है।

    • ज्ञान का स्वरूप

      ज्ञान का स्वरूप निर्जीव (abstract) और जीवित (concrete) दोनों हो सकता है। भारतीय दृष्टिकोण में ज्ञान को आत्मा से जोड़ा जाता है जबकि पश्चिमी दृष्टिकोण में यह अधिकतर भौतिक और तर्कात्मक होता है।

    • ज्ञान की सीमाएँ

      ज्ञान की सीमाएँ समझना आवश्यक है। भारतीय तर्क में यह सीमाएँ जीवन के अनुभवों द्वारा आनी वाली अनिश्चितताओं के संग होती हैं। पश्चिमी तर्क में ज्ञान की सीमाएँ प्रयोग और प्रमाणित तथ्यों तक सीमित होती हैं।

  • Pramā and Apramā

    Pramā and Apramā in Indian Logic
    • Pramā: Definition and Significance

      प्रमाण का अर्थ है प्रमाणिक ज्ञान, जो सत्य को स्थापित करता है। यह ज्ञान भिन्न माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे प्रत्यक्ष (दृष्टि), अनुमान (न्याय) और शाब्दिक (श्रुति)। यह भारतीय तर्कशास्त्र में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह निश्चितता और ज्ञान के विभिन्न स्रोतों को दर्शाता है।

    • Types of Pramā

      प्रमाण के तीन मुख्य प्रकार हैं: प्रत्यक्ष प्रमाण, अनुमान प्रमाण और शाब्दिक प्रमाण। प्रत्यक्ष प्रमाण वह ज्ञान है जो हमारे अनुभव से आता है, जबकि अनुमान प्रमाण तर्क और विश्लेषण के द्वारा प्राप्त होता है। शाब्दिक प्रमाण विद्या और ग्रंथों से आता है।

    • Apramā: Definition and Relevance

      अप्रमाण का अर्थ है, गलत या अनिश्चित ज्ञान। यह तर्क में गलतियों को दिखाता है, जैसे कि भ्रांति, अज्ञानता या अन्याय। अप्रमाण के अध्ययन से छात्रों को यह समझने में मदद मिलती है कि कैसे गलत धारणाएँ ज्ञान की स्पष्टता को प्रभावित कर सकती हैं।

    • Differences Between Pramā and Apramā

      प्रमाण सत्य और स्थायी ज्ञान है, जबकि अप्रमाण असत्य और अस्थायी होता है। प्रामाणिकता ज्ञान की पुष्टि करती है, जबकि अप्रमाण के कारण भ्रम उत्पन्न होता है। यह अंतर भारतीय तर्क में महत्वपूर्ण है।

    • Application in Western Logic

      पश्चिमी तर्क में भी प्रमाण और अप्रमाण की अवधारणा पाई जाती है, लेकिन वहां यह हमेशा स्पष्ट ढंग से परिभाषित नहीं होता। भारतीय तर्क में, यह अधिक संरचित और प्रणालीबद्ध है।

    • Conclusion

      प्रमाण और अप्रमाण का अध्ययन भारतीय तर्कशास्त्र की बुनियाद है। यह न केवल तर्क और ज्ञान की होती खोज के लिए आवश्यक है, बल्कि यह जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी साबित होती है, जैसे कि नैतिकता और दर्शन।

  • Pramāṇa: Nature and Its different kind. Perception according to Nyāya

    Pramāṇa: Nature and Its Different Kinds. Perception according to Nyāya
    • प्रमाण की परिभाषा

      प्रमाण वह средство है जिसके द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यह एक तर्कशीलता का आधार है जो ज्ञान की सच्चाई को प्रमाणित करता है।

    • प्रमाण के प्रकार

      प्रमाण मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं: 1. प्रत्यक्ष - वह ज्ञान जो सीधे अनुभव से प्राप्त होता है। 2. अनुमान - वह ज्ञान जो पूर्ववर्ती अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष निकालने से मिलता है। 3. शब्द - वह ज्ञान जो शास्त्रों या प्रमाणित वाक्यों से प्राप्त होता है। 4. उपमान - वह ज्ञान जो तुलना द्वारा प्राप्त होता है।

    • प्रत्यक्ष पर औपचारिकता

      प्रत्यक्ष प्रमण का मतलब है सीधे अनुभव से ज्ञान प्राप्त करना। यह ज्ञान तत्काल और स्पष्‍ट होता है।

    • अनुमान की प्रकृति

      अनुमान में एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है, जिसमें प्रमाणिकता का ध्यान रखा जाता है।

    • शब्द का महत्व

      शब्द प्रमुखता से वैदिक ज्ञान और दर्शनों का आधार होते हैं। उच्चतम ज्ञान के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रमाण होता है।

    • उपमान की भूमिका

      उपमान में समानता की पहचान कर ज्ञान का विस्तार किया जाता है। यह प्रकार के ज्ञान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

  • Inference: according to Nyāya, Buddhism, Jainism.

    Inference according to Nyaya, Buddhism, Jainism
    • Nyaya Philosophy

      न्याय दर्शन में, अनुमान को एक महत्वपूर्ण ज्ञान स्रोत माना जाता है। इसका अर्थ है, किसी विषय के बारे में ज्ञान प्राप्त करना जो प्रत्यक्ष अनुभव से नहीं मिलता। अनुमान दो प्रकार का होता है: सदृशवचन और विपर्यास। यहाँ पर, निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया को बहुत ध्यान से समझा जाता है।

    • Buddhist Perspective

      बौद्ध दर्शन में, अनुमान का उपयोग सत्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। बौद्ध तर्क में, अनुभूति और अनुमान के बीच का अंतर स्पष्ट किया गया है। बौद्ध दार्शनिकों का मानना है कि अनुमान सदैव अवसर पर आधारित होता है, और इसलिए इसे हमेशा सावधानी से लिया जाना चाहिए।

    • Jain Logic

      जैन दर्शन में, अनुमान को ज्ञान प्राप्ति के एक मार्ग के रूप में देखा जाता है। जैन तर्क का मुख्य सिद्धांत यह है कि प्रत्येक निष्कर्ष को अनेक दृष्टियों से समझा जाना चाहिए। जैन दर्शन में, सत् और असत् का ध्यान रखते हुए, निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया में बहुत गहराई होती है।

  • Verbal Testimony, Upmāna, Arthāpatti, Anuplabdhi

    Verbal Testimony, Upmāna, Arthāpatti, Anuplabdhi in Indian Logic
    • Verbal Testimony

      शब्द प्रमाण, जिसे वाचिक प्रमाण भी कहा जाता है, ज्ञान का एक साधन है जो प्रामाणिक स्रोतों, जैसे कि शास्त्रों, ज्ञानियों, या अनुग्रहों के माध्यम से प्राप्त होता है। यह किसी विषय पर विश्वास स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

    • Upmāna

      उपमान, जिसका अर्थ है तुलना या उपमा, एक अन्य साधन है जिसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें किसी वस्तु या स्थिति की तुलना किसी अन्य वस्तु या स्थिति से की जाती है। यह ज्ञान को स्पष्ट करने में सहायक होता है।

    • Arthāpatti

      अर्थापत्ति एक अन्य प्रामाणिक ज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जिसमें एक स्थिति की स्पष्टता के लिए अनुमान लगाया जाता है। यह तथ्य को स्पष्ट करने के लिए संदर्भित होता है, जब उपलब्ध जानकारी के आधार पर अन्य जानकारी का निष्कर्ष निकाला जाता है।

    • Anuplabdhi

      अनुप्लब्धि का अर्थ है बिना अस्तित्व का प्रमाण। यह उस स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ किसी वस्तु या तथ्य का अभाव स्पष्ट रूप से ज्ञान में शामिल होता है। यह एक महत्वपूर्ण साधन है जो यह दर्शाता है कि किसी वस्तु या तथ्य की अनुपस्थिति स्पष्टीकरण के लिए आवश्यक है।

  • Prāmāṇyavāda: Svataḥ and Parataḥ Prāmāṇyavāda

    प्रामाण्यवादी:स्वतः एवं परतः प्रामाण्यवादी
    • प्रामाण्यवादी का अर्थ

      प्रामाण्यवादी वह दृष्टिकोण है जिसमें ज्ञान की पहचान के लिए प्रमाणों पर जोर दिया जाता है। यह तर्क करता है कि किसी विचार या विश्वास को सही ठहराने के लिए उसे एक ठोस प्रमाण की आवश्यकता होती है।

    • स्वतः प्रामाण्यवादी

      स्वतः प्रामाण्यवादी वह स्थिति है जहां व्यक्ति अपने ज्ञान और विचारों को अपने अनुभव, अंतर्ज्ञान या विश्लेषण के माध्यम से सत्यापित करता है। इसका आधार आत्म-प्रमाणन है, अर्थात व्यक्ति का अपना मौलिक अनुभव और समझ।

    • परतः प्रामाण्यवादी

      परतः प्रामाण्यवादी का अर्थ है कि ज्ञान और प्रमाण दूसरों से प्राप्त होते हैं, जैसे कि समाज, परंपरा या विशेषज्ञ। इसमें व्यक्तिगत अनुभव से अधिक सामूहिक मान्यता और प्रमाणों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

    • भारतीय एवं पश्चिमी तर्कशास्त्र में प्रामाण्यवादी का विश्लेषण

      भारतीय तर्कशास्त्र में प्रामाण्यवाद को विस्तार से समझाया गया है, विशेषकर न्याय और वार्तिक सिद्धांतों में। वहीं पश्चिमी तर्कशास्त्र में प्रामाण्यवाद की अवधारणा का अध्ययन किया गया है, जिसमें रचनात्मकता और वैज्ञानिकता को प्राथमिकता दी जाती है।

    • प्रामाण्यवादी दृष्टिकोण का महत्व

      प्रामाण्यवादी दृष्टिकोण ज्ञान की सत्यता और वैधता की जांच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह किसी भी ज्ञान के आधार को स्थापित करने और मान्य करने के लिए आवश्यक है।

  • Khyātivāda: Theory of error

    Khyativada: Theory of error
    • Khyativada Ka Parichay

      Khyativada darshan ke anusar, jismein ghalatfahmi ya bhool ka samarthan hota hai. Iska mool siddhant yah hai ki jab insan kisi vastu ko dekhte ya samajhte hain, to kabhi-kabhi unki soch ya perception mein bhool ho sakti hai.

    • Brahman aur Khyativedi

      Is darshan mein pramukh baaton ko Brahman aur Khyativedi ke vichar se samjha jata hai. Brahman ka matlab hai vastavikta aur Khyativedi ka arth hai ghalat dharnaon ka siddh. Ismein yah vishleshan kiya jata hai ki vastavikta ka samarthan kyun nahi hota.

    • Pratyaksha aur Anumana ka Mahatva

      Khyativada mein pratyaksha (direct perception) aur anumana (inference) ka sahara liya jata hai. Yah bataya jata hai ki pratyaksha ke madhyam se hum kis tarah se ghalat dharnaon se door reh sakte hain.

    • Khyativada ka Prabhav

      Yah darshan samaj me ghalat dharnaon ko samajhne ki koshish karta hai aur yah batata hai ki ghalat dharnaon se kaise bachna chahiye. Khyativada ka prabhav vyakti ke vichar, aacharan aur samajik sambandhon par padta hai.

    • Khyativada aur Anya Darshanik Siddhant

      Is vishay mein Khyativada ko anya darshanik siddhanton jaise Ki Nyaya aur Vaisheshika se bhi tulna kiya jata hai. Yah batata hai ki Khyativada ka kya sidhhant hai aur dusre darshanik vicharon se iska kya sambandh hai.

  • Logic and arguments, deductive and inductive arguments, truth and validity Functions of language, Definition, Informal fallacies

    Logic and Arguments
    • Logic and Its Importance

      तर्क क्षमता को समझाने के लिए तार्किकता एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह हमें विभिन्न विचारों और तर्कों को एक व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।

    • Types of Arguments

      तर्क को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: व्युत्क्रमात्मक (Deductive) और प्रेरक (Inductive) तर्क।

    • Deductive Arguments

      व्युत्क्रमात्मक तर्क एक ऐसा तर्क होता है जिसमें सामान्य धारणा से विशेष निष्कर्ष निकाला जाता है। यह तर्क पूर्णता के साथ सुनिश्चित होता है।

    • Inductive Arguments

      प्रेरक तर्क एक ऐसा तर्क होता है जिसमें विशेष उदाहरणों से सामान्य निष्कर्ष निकाला जाता है। यह तर्क संभाव्यताओं पर आधारित होता है, पूर्णता पर नहीं।

    • Truth and Validity

      सच्चाई और वैधता तर्क की परीक्षा के दो मुख्य मानदंड हैं। सच्चाई एक कथन की वास्तविकता को संदर्भित करती है, जबकि वैधता तर्क के ढांचे और रूप पर निर्भर करती है।

    • Functions of Language

      भाषा के मुख्य कार्य संवाद करना, ज्ञान प्रसार करना, और विचारों को व्यक्त करना हैं। यह मानवता के विकास में एक महत्वपूर्ण साधन है।

    • Informal Fallacies

      असंगत तर्क में कई प्रकार के भ्रामक तर्क होते हैं जो तर्क के सही स्वरूप को बाधित करते हैं। जैसे कि 'अधिकांश तर्क' या 'अहंकारजनक तर्क' आदि।

  • Categorical Propositions and classes: quality, quantity and distribution of terms, translating categorical propositions into standard form

    Categorical Propositions and Classes
    • परिभाषा

      Categorical propositions वह वाक्य होते हैं जो किसी वर्ग या श्रेणी के बारे में बात करते हैं। ये वर्गों के संबंध को बताने के लिए उपयोग होते हैं।

    • गुणवत्ता

      गुणवत्ता में दो प्रकार होते हैं: नकारात्मक और सकारात्मक। सकारात्मक प्रस्ताव ये बताते हैं कि कोई वर्ग किसी अन्य वर्ग का हिस्सा है, जबकि नकारात्मक प्रस्ताव ये बताते हैं कि कोई वर्ग किसी अन्य वर्ग का हिस्सा नहीं है।

    • परिमाण

      परिमाण में चार प्रकार होते हैं: सार्वभौमिक, विशेष, नकारात्मक सार्वभौमिक और नकारात्मक विशेष। ये तय करते हैं कि कितनी संख्या में सदस्य एक वर्ग से जुड़े होते हैं।

    • शब्दों का वितरण

      शब्दों का वितरण यह निर्धारित करता है कि किसी श्रेणी या वर्ग का सदस्यता का संबंध कैसे स्थापित होता है। यह बताता है कि कोई शब्द सभी सदस्य को दर्शाता है या केवल कुछ को।

    • मानक रूप में अनुवाद करना

      Categorical propositions को मानक रूप में अनुवाद करना आवश्यक होता है, जिससे कि उनकी स्पष्टता और संगतता बनी रहे। यह प्रक्रिया मुख्यतः प्रस्ताव के गुणवत्ता, परिमाण और वितरण का विश्लेषण करते हुए की जाती है।

  • Immediate inferences: Conversion, Obversion and Contraposition, Traditional square of opposition and immediate inferences. Categorical syllogism: Standard form of Categorical Syllogism, The formal nature of syllogistic argument, Rules and fallacies.

    तत्काल निष्कर्ष: रूपांतरण, अवलोकन और विपरीत, पारंपरिक वर्ग का विरोध और तात्कालिक निष्कर्ष। श्रेणीबद्ध तर्कन: श्रेणीबद्ध तर्क का मानक रूप, तर्कात्मक तर्क की औपचारिक प्रकृति, नियम और भ्रांतियाँ।
    • तत्काल निष्कर्ष

      तत्काल निष्कर्ष विश्लेषण की एक विधि है जिसमें तर्क के विभिन्न रूपों की सहायता से तात्कालिक परिणाम निकाले जाते हैं। इसमें रूपांतरण, अवलोकन और विपरीत जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है।

    • रूपांतरण

      रूपांतरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी निश्चित कथन का वैकल्पिक रूप निकाला जाता है, जिसमें विषय और predicate की स्थिति को बदल दिया जाता है।

    • अवलोकन

      अवलोकन में एक विधि होती है जिसके द्वारा किसी कथन के सभी नकारात्मक रूपों को निकाला जाता है। यह उस कथन के विपरीत रूप को पहचानने में मदद करता है।

    • विपरीत

      विपरीत प्रक्रिया में कथन को उसके नकारात्मक रूप में परिवर्तित किया जाता है।

    • पारंपरिक वर्ग का विरोध

      यह एक तर्कात्मक उपकरण है जो चार मूल कथनों के बीच संबंध दिखाता है। इसका उपयोग तर्क की संरचना को समझने और निष्कर्ष निकालने में होता है।

    • श्रेणीबद्ध तर्क

      श्रेणीबद्ध तर्क की औपचारिक विधि में दो प्रीमिस और एक निष्कर्ष होता है। यह तर्क की स्पष्टता और तार्किकता को सुनिश्चित करता है।

    • श्रेणीबद्ध तर्क के नियम

      श्रेणीबद्ध तर्क में कुछ मूल नियम होते हैं, जैसे कि प्रीमिस और निष्कर्ष का संगत होना आवश्यक है।

    • भ्रांतियाँ

      तर्क में भ्रांतियाँ ऐसी त्रुटियाँ होती हैं जो तर्क के विश्लेषण में उत्पन्न होती हैं, जो गलत निष्कर्षों की ओर ले जाती हैं।

  • Boolean interpretation of categorical propositions; Venn diagram technique for testing Syllogism, Hypothetical and Disjunctive Syllogism, Enthymeme, Dilemma.

    Boolean interpretation of categorical propositions; Venn diagram technique for testing Syllogism, Hypothetical and Disjunctive Syllogism, Enthymeme, Dilemma.
    • Boolean Interpretation of Categorical Propositions

      बूलियन लॉजिक का उपयोग करते हुए श्रेणीबद्ध प्रस्तावों की व्याख्या की जाती है। इसमें श्रेणियों के बीच संबंधों को बूलियन ऑपरेशनों जैसे कि AND, OR और NOT के माध्यम से समझा जाता है। यह तकनीक यह निर्धारित करने में सहायक होती है कि क्या किसी दावे का सत्य है या नहीं।

    • Venn Diagram Technique

      वेन आरेख एक ग्राफिकल प्रतिनिधित्व है जो विभिन्न सेटों के बीच संबंधों को प्रदर्शित करता है। इसका उपयोग सिलेगिज्म की सहीता की जांच करने के लिए किया जाता है। इसमें हम श्रेणीबद्ध प्रस्तावों को वेन आरेख में चित्रित करते हैं और उनके संबंधों का विश्लेषण करते हैं।

    • Testing Syllogism

      सिलेगिज़्म एक प्रकार का तार्किक तर्क है जिसमें दो पूर्वधारणाएं और एक निष्कर्ष होता है। वेन आरेख का उपयोग करके हम यह सत्यापित कर सकते हैं कि क्या निष्कर्ष पूर्वधारणाओं से सही ढंग से निकाला गया है।

    • Hypothetical Syllogism

      हाइपोथेटिकल सिलेगिज़्म में एक शर्त के आधार पर एक निष्कर्ष निकाला जाता है। सामान्यतः इसमें 'यदि... तो...' के रूप में प्रस्ताव दिए जाते हैं। इसका परीक्षण भी वेन आरेख द्वारा किया जा सकता है।

    • Disjunctive Syllogism

      डिसजंक्टिव सिलेगिज़्म में या तो ... या ... के रूप में विकल्प दिए जाते हैं। यह स्पष्टत: दर्शाता है कि एक विकल्प को अस्वीकार करते समय दूसरे विकल्प को स्वीकार किया जाना चाहिए।

    • Enthymeme

      एंथिमेम एक प्रकार का अपूर्ण सिलेगिज़्म होता है जिसमें एक प्रमुख पूर्वधारणा छुपी होती है। इसका अध्ययन करते समय, हमें ध्यान देना चाहिए कि छुपी हुई प्रस्तावना सच्चाई को प्रभावित कर सकती है या नहीं।

    • Dilemma

      डिलेमा एक तार्किक स्थिति है जिसमें दो विकल्प दिए जाते हैं, प्रत्येक में एक कठिनाई होती है। यह विश्लेषण करने के लिए हम बूलियन लॉजिक या वेन आरेख का उपयोग कर सकते हैं।

  • Induction: Argument by Analogy, Appraising analogical arguments, refutation by Logical analogy. Causal, Connections: Cause and effect, the meaning of “Cause”, Induction by simple enumeration; Mill’s methods of experimental inquiry, Criticism of Mill’s method.

    Induction and Causal Connections
    • Induction: Argument by Analogy

      प्रमाण के द्वारा तर्क सर्वोत्तम है जिसे हम 'अनुरूपता' कहते हैं। इस तर्क में हम एक स्थिति को दूसरी स्थिति के समान मानते हैं। उदाहरण के लिए, अगर दो चीज़ें एक समान हैं, तो उनका व्यवहार भी एक समान होगा। यह तर्क कई क्षेत्रों में उपयोगी होता है।

    • Appraising Analogical Arguments

      अनुरूप तर्कों का मूल्यांकन करते समय हमें यह देखना चाहिए कि कितनी समानता है और क्या अंतर भी है। सही मूल्यांकन के लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सभी समानताएँ कार्यात्मक नहीं होती हैं।

    • Refutation by Logical Analogy

      तर्कात्मक अनुरूपता का खंडन करने के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या उस अनुरूपता में कोई दोष है। यदि कोई तर्क समानता का फायदा उठाते हुए गलत निष्कर्ष निकालता है, तो उसे खंडित किया जा सकता है।

    • Causal Connections: Cause and Effect

      कारण और प्रभाव के बीच के संबंधों को समझना महत्वपूर्ण है। कारण वह तत्व है जो प्रभाव पैदा करता है।

  • Symbolic Logic: The value of special symbols; Truth-functions; Symbols for Negation, Conjunctions, Disjunctions, Conditional Statements and Material Implications. Tautologous, Contradictory and Contingent Statement-forms; The three laws of thought.

    Symbolic Logic
    • विशेष प्रतीकों का मूल्य

      सांकेतिक तर्क में विभिन्न विशेष प्रतीकों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। ये प्रतीक तर्क के सिद्धांतों और निष्कर्षों को स्पष्ट करते हैं।

    • सत्य कार्य

      सत्य कार्य वे कार्य हैं जो एक या अधिक वाक्यों के सत्य मान को निर्धारित करते हैं। ये कार्य दर्शाते हैं कि एक निश्चित स्थिति में तथ्य या निष्कर्ष सत्य या असत्य हैं।

    • नकारात्मकता, संयोजन, विभाजन, संदर्भ व भौतिक परिणामों के लिए प्रतीक

      सांकेतिक तर्क में, नकारात्मकता के लिए ~, संयोजन के लिए ∧, विभाजन के लिए ∨, संदर्भ के लिए → और भौतिक परिणाम के लिए ↔ जैसे प्रतीकों का उपयोग होता है।

    • तोड़ने योग्य, विरोधाभासी और संदिग्ध कथन-रूप

      एक तोड़ने योग्य कथन-रूप वह होता है जो हमेशा सत्य होता है। विरोधाभासी कथन-रूप हमेशा असत्य होते हैं, जबकि संदिग्ध कथन-रूप ऐसे होते हैं जिनका सत्य या असत्य होने का कोई निश्चित मूल्य नहीं होता।

    • विचार के तीन नियम

      विचार के तीन नियम हैं: पहचान का नियम, अपरिवर्तनीयता का नियम और तीसरे विरोध का नियम। ये नियम तर्क की बुनियाद को दर्शाते हैं।

  • Testing statement-form and statement & validity of argument-form and argument by the method of truth-table.

    Testing statement-form and statement & validity of argument-form and argument by the method of truth-table
    • परिभाषा और महत्व

      भाषा में किसी विचार या तर्क को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के लिए बयान-रूप (statement-form) का उपयोग किया जाता है। यह तार्किकता का मूल है। एंगुलरिटी के साथ, यह तय करने में मदद करता है कि तर्क सही है या गलत।

    • बयान-रूप की जांच

      बयान-रूप की जांच करते समय, हम पहचानते हैं कि क्या वह तर्क के लिए सही है या नहीं। इसे सामान्यतः सत्य तालिका के माध्यम से किया जाता है।

    • तर्क-रूप और उनकी वैधता

      तर्क के आधार पर, हम तर्क-रूप (argument-form) को समझते हैं। तर्क की वैधता का अर्थ है कि यदि पूर्वधारणा सही है, तो निष्कर्ष भी सही होगा।

    • सत्य तालिका की विधि

      सत्य तालिका एक तर्क के सभी संभावित वाक्यों के लिए सत्य और असत्य के मानों को दिखाती है। यह एक सिस्टमेटिक तरीका है जिससे हम तर्कों की वैधता का मूल्यांकन कर सकते हैं।

    • उदाहरण देकर स्पष्ट करना

      यदि हमारे पास एक तर्क है: यदि P तो Q। यदि P सही है, तो Q भी सही होना चाहिए। सत्य तालिका बनाकर हम यह निर्णय कर सकते हैं कि ये दोनों संबंध वैध हैं या नहीं।

  • Science and Hypothesis: Scientific and Unscientific explanation, criteria of evaluation of hypothesis.

    Science and Hypothesis: Scientific and Unscientific Explanation, Criteria of Evaluation of Hypothesis
    • विज्ञान और परिकल्पना

      विज्ञान एक व्यवस्थित ज्ञान की प्रणाली है जो प्राकृतिक घटनाओं और प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है। परिकल्पना किसी प्रश्न का सुनिश्चित उत्तर नहीं होती, बल्कि संभावित उत्तर का प्रस्ताव होता है।

    • वैज्ञानिक और अस्वास्थ्यकर स्पष्टीकरण

      वैज्ञानिक स्पष्टीकरण वे होते हैं जो अनुभव और प्रमाण पर आधारित होते हैं। अस्वास्थ्यकर स्पष्टीकरण वे होते हैं जो बिना किसी ठोस प्रमाण के होते हैं और तर्कहीन होते हैं। उदाहरण के लिए, भूतों की बातें एक अस्वास्थ्यकर स्पष्टीकरण हैं।

    • परिकल्पना के मूल्यांकन के मानदंड

      परिकल्पना का मूल्यांकन करते समय कई मानदंडों का ध्यान रखना आवश्यक है। 1. परीक्षणशीलता: परिकल्पना को परीक्षण किया जा सकता है या नहीं। 2. स्पष्टता: क्या परिकल्पना स्पष्ट और संक्षिप्त है। 3. साधरणता: क्या यह सबसे सरल स्पष्टीकरण है। 4. व्याख्यात्मक शक्ति: क्या यह विभिन्न तथ्यों और घटनाओं को समझा सकती है।

    • भारतीय तर्क और पश्चिमी तर्क

      भारतीय तर्क में तर्कसंगतता और तर्क के विभिन्न स्तरों का उपयोग किया जाता है जबकि पश्चिमी तर्क में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रमाणात्मक तर्क का महत्व होता है। दोनों का उपयोग परिकल्पना के मूल्यांकन में किया जा सकता है।

Indian Logic or Western Logic

Bachelor of Arts

B.A. Philosophy

4

Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith

free web counter

GKPAD.COM by SK Yadav | Disclaimer