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Semester 3: Ethics (Indian and Western)
The Ethics of Bhagavadgītā: Niṣkāma Karma-yoga, Sthitiprajña, Lokasaṃgraha Puruṣārthās and their inter-relations
The Ethics of Bhagavadgita: Nishkama Karma-yoga, Sthitaprajna, Lokasangraha Purusharthas and their inter-relations
Nishkama Karma-yoga
निष्काम कर्म-योग का अर्थ है बिना किसी फल की इच्छा के कार्य करना। भगवद गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि कर्म करना आवश्यक है, लेकिन कर्म का फल भगवान पर छोड़ देना चाहिए। यह सिद्धांत जीवन में संतुलन और मानसिक शांति प्रदान करता है।
Sthitaprajna
स्थिरप्रज्ञ व्यक्ति वह होता है जो परिस्थितियों के अनुसार अपने मन को नियंत्रित करता है। गीता के अनुसार, जो व्यक्ति निस्वार्थ भाव से कार्य करता है, उसे स्थिरप्रज्ञ कहा जाता है। यह व्यक्ति न तो सुख से प्रभावित होता है और न ही दुःख से, जिससे वह हमेशा शांत और संतुलित रहता है।
Lokasangraha
लोकसंग्रह का अर्थ है समाज का कल्याण करना। भगवद गीता में यह बताया गया है कि व्यक्ति का कार्य न केवल उसके लिए, बल्कि समाज के लिए भी होना चाहिए। इसके जरिए हम अपने कर्मों के प्रति ज़िम्मेदारी और सामाजिक कल्याण का भाव विकसित कर सकते हैं।
Purusharthas
पुरुषार्थों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष शामिल हैं। ये चार लक्ष्य मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। भगवद गीता में ये बातें इस रूप में भी समझाई गई हैं कि कैसे निष्काम कर्म-योग के द्वारा व्यक्ति इन चारों लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
Inter-relations
निष्काम कर्म-योग, स्थिरप्रज्ञता और लोकसंग्रह का आपस में गहरा संबंध है। जब व्यक्ति निष्कामता से कार्य करता है, तो उसकी स्थिरप्रज्ञता बढ़ती है और वह समाज के कल्याण के लिए अधिक सक्षम होता है। ये सभी तत्व एक संतुलित और समर्पित जीवन के निर्माण में सहायक होते हैं।
Meaning of Dharma, Classification of Dharma: Sāmānya dharma, Viśeṣa dharma, Sādhāraṇa dharma, Concept of Ṛṇa and Ṛta
Dharma ka Arth aur Vibhajan
Dharma ka Arth
Dharma shabd ka arth hai 'karya' ya 'kartavya'. Yeh vyakti ke jeevan mein unki zimmedariyon aur kartavyon ko darshata hai. Iska sambandh vyakti ke vyavhar, niyam aur samajik moolyon se hai.
Sāmānya Dharma
Sāmānya dharma ka arth hai aam dharm ya samanya kartavya jo sabhi vyaktiyon par lagu hota hai. Yeh samajik, aarthik aur dharmik niyamon ko shamil karta hai.
Višeṣa Dharma
Višeṣa dharma vyakti ke vyaktitva, samajik sthal ya avastha ke adhar par hota hai. Isme alag-alag varg ke logon ke liye alag dharm aur kartavya hote hain.
Sādhāraṇa Dharma
Sādhāraṇa dharma un niyamon aur moolyon ko vyakt karta hai jo samanya roop se sabhi logon ke liye istemal kiye jate hain. Yeh manavta ke liye aadarsh aur unka palan karna avashyak hai.
Dharma ki Samajik Mahattva
Dharma samaj ka ek mahatvapurn kendra hai. Iska palan karne se logon ke beech samrasta aur ekta banti hai. Dharma ek vyakti ko unke kartavyon aur unke aacharan se judaata hai.
Ṭaṭṭva aur Ṭaṭṭa
Ṭaṭṭva ka arth hai moolbhut sidhhant ya aadhar. Yeh dharm ke mool maqsad ko vyakt karta hai. Ṭaṭṭa ka arth hai vyakti ke aacharan aur unke niyamon ka palan.
The general features of Jaina and Bauddha Ethics.
Jaina and Bauddha Ethics
Jaina Ethics
Bauddha Ethics
समानताएँ और भिन्नताएँ
The ethics of Gandhi: Eleven vows, Sarvodaya, Concept of seven sins, Doctrine of Trusteeship
The ethics of Gandhi
Eleven Vows
गाँधी जी ने ग्यारह व्रतों का पालन किया। ये व्रत सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शुद्धता, संवेदनशीलता, सेवा, सबका समान महत्व, सत्याग्रह और सामूहिकता का प्रतिपादन करते हैं।
Sarvodaya
सार्वजनिक कल्याण का सिद्धांत, जिसे गाँधी जी ने प्रमोट किया। इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति का विकास होना चाहिए। सभी के कल्याण में ही समाज का कल्याण निहित है।
Concept of Seven Sins
गाँधी जी ने सात पापों का परिभाषा दी, जैसे कि राजनीति बिना नैतिकता, धन बिना काम, विज्ञान बिना मानवता, और खुशी बिना सेवाभाव। ये मुख्य रूप से समाज के पतन के संकेतक हैं।
Doctrine of Trusteeship
गाँधी जी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत बताता है कि धन और संपत्ति का प्रबंधन समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए। व्यक्तिगत खुशी और विकास समाज के कल्याण से जुड़ा हुआ है।
Nature and scope of Ethics, Theories of ethics: Teleological and Deontological. Postulates of morality, problem of free will and determinism
Ethics (Indian and Western)
प्रकृति और नैतिकता का क्षेत्र
नैतिकता का अध्ययन मानव क्रियाओं और उनके निर्णयों के सही और गलत में भेद करने पर आधारित है। नैतिकता का क्षेत्र व्यक्ति के व्यक्तिगत विचारों, समाज की मान्यताओं और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर विस्तृत होता है। नैतिकता का मूल उद्देश्य मानव व्यवहार को मार्गदर्शन देना और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखना है।
नैतिकता के सिद्धांत: टेलीोलॉजिकल और डिओंटोलॉजिकल
टेलीोलॉजिकल नैतिकता में कार्यों के परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जबकि डिओंटोलॉजिकल नैतिकता में कार्यों के स्वयं के नैतिक आयामों पर ध्यान दिया जाता है। टेलीोलॉजिकल नैतिकता 'अच्छे परिणाम' की ओर संकेत करती है, जबकि डिओंटोलॉजिकल नैतिकता विभिन्न नैतिक नियमों और कर्तव्यों के पालन पर जोर देती है।
नैतिकता के अनुमान
यह अनुमान बताते हैं कि नैतिकता का क्या स्वरूप है और इसे कैसे समझा जा सकता है। ये अनुमान किसी कार्य के सही-गलत होने के मुद्दे, व्यक्ति की जिम्मेदारियों और अन्य सामाजिक तत्वों के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायता करते हैं।
स्वतंत्र इच्छाशक्ति की समस्या और निर्धारणवाद
स्वतंत्र इच्छाशक्ति का सिद्धांत व्यक्ति की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता की पुष्टि करता है, जबकि निर्धारणवाद यह बताता है कि सभी निर्णय पूर्व निर्धारित कारकों से प्रभावित होते हैं। इन दोनों दृष्टिकोणों का नैतिकता पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यदि व्यक्ति की इच्छाशक्ति स्वतंत्र नहीं है, तो नैतिक जिम्मेदारी पर सवाल उठता है।
Moral and non-moral actions, Object of moral judgement-Motive and intention, ends and means. Value as standard of morality.
Moral and Non-Moral Actions, Object of Moral Judgment, Motive and Intention, Ends and Means, Value as Standard of Morality
Moral Actions
नैतिक क्रियाएँ वे होती हैं जो सही और गलत के बीच अंतर करती हैं। इनका उद्देश्य समाज और व्यक्तियों के लिए भलाई लाना होता है। उदाहरण के तौर पर, दान देना, अन्य लोगों की मदद करना इन क्रियाओं में आते हैं।
Non-Moral Actions
अनैतिक क्रियाएँ वे होती हैं जिनका नैतिकता से कोई संबंध नहीं होता। जैसे कि सामान्य दिनचर्या में किए जाने वाले कार्य, जो नैतिक निर्णयों से प्रभावित नहीं होते।
Object of Moral Judgment
नैतिक निर्णय का आधार हमारे कार्यों के परिणाम होते हैं। नैतिकता को समझने के लिए हम यह देखते हैं कि क्या कार्य दूसरों के लिए फायदेमंद है या नुकसानदायक।
Motive and Intention
कार्य के पीछे का उद्देश्य और इरादा नैतिकता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। अगर किसी का इरादा अच्छा है, तो उसका कार्य भी नैतिक माना जाता है, भले ही परिणाम कुछ और हों।
Ends and Means
किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपनाए गए तरीके और साधन भी नैतिकता में महत्वपूर्ण होते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि अच्छे उद्देश्यों के लिए गलत साधनों का उपयोग ना किया जाए।
Value as Standard of Morality
मूल्य नैतिकता का आधार बनते हैं। ये मूल्यों की समझ हमें यह तय करने में मदद करती है कि क्या सही है और क्या गलत। भारतीय और पश्चिमी नैतिकता में मूल्यों का व्यापकता से उपयोग होता है।
Standards of morality: Hedonism- Ethical and Psychological, Utilitarianism: Bentham and Mill. Intuitionism, Butler’s Theory of conscience as the ultimate standard of moral judgement.
Standards of morality: Hedonism, Utilitarianism, Intuitionism, and Butler's Theory of Conscience
Hedonism
हेडोनिज़्म का सिद्धांत सुख और आनंद को नैतिकता का मूल मानता है। इसका मानना है कि मानव का मुख्य उद्देश्य सुख की प्राप्ति और दुख से बचना है। यह विचारधारा नैतिकता का मूल्यांकित करने के लिए सुख और दुख के सिद्धांत पर केंद्रित होती है।
Utilitarianism: Bentham and Mill
यूटिलिटेरियनिज्म का सिद्धांत यह मानता है कि किसी कार्य की नैतिकता का मूल्यांकन उसके परिणामों पर किया जाना चाहिए। बेंटहैम ने इस सिद्धांत का विकास करते हुए कहा कि अधिकतम संख्या में लोगों के सुख को बढ़ाना नैतिकता का सही मापदंड है। मिल ने इसे आगे बढ़ाते हुए विचार किया कि गुणवत्ता भी मात्रा से महत्वपूर्ण है।
Intuitionism
इंट्यूशनिज़्म यह मानता है कि नैतिकता का ज्ञान अंतर्ज्ञान के माध्यम से प्राप्त होता है। यह व्यक्ति के अंदर छिपी हुई नैतिक बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है। हर्बर्ट स्पेन्सर और अन्य विचारकों ने इस विचारधारा को विकसित किया है, जिसमें नैतिकता को स्वाभाविक और अंतर्निहित समझा जाता है।
Butler's Theory of Conscience
बटलर ने नैतिकता के मानक के रूप में विवेक की भूमिका को प्रमुखता दी। उनके अनुसार, विवेक नैतिक निर्णय लेने का अंतिम मानक है और इसके आधार पर हम सही और गलत का आकलन कर सकते हैं। उन्होंने यह तर्क किया कि विवेक सामाजिक और व्यक्तिगत नैतिकता को जोड़ने में सहायक होता है।
Kant’s ethical theory: Good will, Categorical Imperative, Duty for duty’s sake Crime and theories of punishment, Issue of Capital punishment.
Kant's ethical theory
Good will
कांत के नैतिक सिद्धांत में 'अच्छी इच्छा' का विशेष महत्व है। यह वह इच्छा है जो नैतिक क्रियाकलाप का मूल है। कांत का मानना है कि इच्छाएं और भावनाएं अविश्वसनीय होती हैं, लेकिन यदि किसी व्यक्ति का कार्य नैतिकता के अनुसार होता है, तो वह कार्य सही है, भले ही इसके परिणाम कैसे भी हों।
Categorical Imperative
कांत का 'Categorical Imperative' नैतिकता की एक मुख्य धारा है। इसे एक ऐसी नैतिक मार्गदर्शिका के रूप में समझा जाता है जो यह बताती है कि हमें क्या करना चाहिए। यह हमें एक सार्वभौमिक नियम का पालन करने की शिक्षा देती है, जिस पर सभी लोग सहमत होंगे। इसका मूलभूत सिद्धांत है कि हमें अपने अहरन का पालन ऐसा करना चाहिए कि वह एक सार्वभौमिक नियम बन सके।
Duty for duty's sake
कांत के अनुसार, किसी कार्य को करना नैतिक तब ही होता है जब यह कर्तव्य के लिए किया जाए, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए। यह सिद्धांत नैतिकता की शुद्धता पर बल देता है। एक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी स्वार्थ के करना चाहिए, क्योंकि यही सच्चा नैतिक कार्य है।
Crime and theories of punishment
कांत के नैतिक सिद्धांत के अनुसार, अपराधों का दंड भी नैतिकता द्वारा निर्धारित होता है। कांत का मानना है कि दंड उस अपराध के अनुसार होना चाहिए। दंड का उद्देश्य न केवल सुधार करना होता है, बल्कि यह न्याय की साधना भी है।
Issue of Capital punishment
पूंजी दंड (Capital punishment) पर कांत का दृष्टिकोण विवादास्पद है। उनका मानना है कि यदि किसी अपराधी ने गंभीर अपराध किया है, तो उसे उचित दंड मिलना चाहिए। कांत का तर्क है कि इसे न्याय की प्रणाली का एक आवश्यक घटक समझा जाना चाहिए, ताकि समाज की नैतिकता और कानून की प्रतिष्ठा बनी रहे।
