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Semester 2: Bioorganic and Medicinal Chemistry
Chemistry of Carbohydrates: Classification, properties, structures, interconversions
Carbohydrates की रसायन विज्ञान: वर्गीकरण, गुण, संरचनाएँ, आपसी परिवर्तन
वर्गीकरण
कार्बोहाइड्रेट्स को प्रमुखता से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है: मोनोसैकराइड्स, ओलिगोसैकराइड्स और पॉलीसैकराइड्स। मोनोसैकराइड्स सरल शर्कराएँ हैं, जैसे ग्लूकोज और फ्रुक्टोज। ओलिगोसैकराइड्स में दो से दस मोनोसैकराइड्स के अणु होते हैं, जैसे स्यूक्रोज। पॉलीसैकराइड्स में कई मोनोसैकराइड्स होते हैं, जैसे स्टार्च और सेलुलोज।
गुण
कार्बोहाइड्रेट्स में कुछ प्रमुख गुण होते हैं जैसे: उनमें ऊर्जा का उच्च स्तर होता है, ये पानी में आसानी से घुल जाते हैं (खासकर मोनोसैकराइड्स), इनका मीठा स्वाद होता है, और ये जीवों के लिए एक प्रमुख ऊर्जा स्त्रोत होते हैं।
संरचनाएँ
कार्बोहाइड्रेट्स की संरचना आमतौर पर कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O) के अणुओं से मिलकर बनाई जाती है। मोनोसैकराइड्स की संरचना साधारण रैखिक या साइक्लिक रूप में होती है। उदाहरण स्वरूप, ग्लूकोज की साइक्लिक संरचना एक हेमी ऐसिटर का निर्माण करती है।
आपसी परिवर्तन
कार्बोहाइड्रेट्स के बीच आपसी परिवर्तन प्राकृतिक रूप से होते हैं, जैसे कि मोनोसैकराइड्स का ओलिगोसैकराइड्स में परिवर्तन, इसी प्रकार ओलिगोसैकराइड्स का पॉलीसैकराइड्स में परिवर्तित होना। इन परिवर्तनों में एंजाइमों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
Chemistry of Proteins: Classification of amino acids, protein structures, peptide synthesis, enzyme action and inhibition
रासायनिक विज्ञान में प्रोटीन की रसायनशास्त्र
एमीनो एसिड का वर्गीकरण
एमीनो एसिड को उनके रासायनिक गुणों, संरचना और कार्य के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। मुख्यतः यह दो श्रेणियों में विभाजित होते हैं: जरूरी और गैर-जरूरी एमीनो एसिड। जरूरी एमीनो एसिड वे होते हैं जिन्हें आहार से प्राप्त करना आवश्यक है जबकि गैर-जरूरी एमीनो एसिड को शरीर द्वारा संश्लेषित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एमीनो एसिड को ध्रुवीयता, चार्ज और श्रृंखला के आकार के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है।
प्रोटीन संरचनाएं
प्रोटीन संरचना चार स्तरों में होती है: प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक, और चतुर्थक। प्राथमिक संरचना एमीनो एसिड की श्रृंखला होती है, द्वितीयक संरचना हाइड्रोजन बंधनों के कारण हेलिक्स और बीटा-फोल्ड्स बनाती है, तृतीयक संरचना प्रोटीन के तीन-आयामी स्वरूप को दर्शाती है, और चतुर्थक संरचना दो या दो से अधिक तृतीयक संरचनाओं के संयोजन को दर्शाती है।
पेपटाइड संश्लेषण
पेपटाइड संश्लेषण एक रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें एमीनो एसिड का संयोजन होता है जिससे पेप्टाइड्स बनते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर 'स्पष्टता के बावजूद अभिव्यक्ति' सिद्धांत पर आधारित होती है, जिसमें एमीनो एसिड एक दूसरे से जुड़ते हैं और पेप्टाइड बंधन बनाते हैं। यह प्रक्रिया यांत्रिक और रासायनिक विधियों द्वारा की जा सकती है।
एंजाइम कार्य
एंजाइम प्रोटीन होते हैं जो जैविक अभिक्रियाओं को गति देने में मदद करते हैं। ये विशेष रूप से सक्रिय साइट की उपस्थिति पर निर्भर करते हैं, जहां उपयोज्य पदार्थ (सबस्ट्रेट) एंजाइम से जुड़ते हैं और अभिक्रिया आरंभ होती है। एंजाइम कई कारकों द्वारा प्रभावित होते हैं जैसे तापमान, pH, और सबस्ट्रेट की सांद्रता।
एंजाइम अवरोधन
एंजाइम अवरोधन एक प्रक्रिया है जिसमें किसी स्थानीय या अव्यवस्थित यौगिक द्वारा एंजाइम के कार्य को रोक दिया जाता है। यह प्रतिस्थापन, प्रतिगामी या नियामकीय अवरोध के माध्यम से किया जा सकता है। अवरोधक के उपस्थिति में, एंजाइम की गतिशीलता प्रहरी होती है, जो इसकी कार्यशीलता को घटाती है।
Chemistry of Nucleic Acids: Constituents, structure of DNA and RNA, biological roles
न्यूक्लिक एसिड की रसायन विज्ञान
संविधानकर्ता
DNA और RNA के प्रमुख संविधानकर्ता न्यूक्लियोटाइड होते हैं, जो फॉस्फेट समूह, शुगर (रिबोज या डिऑक्सीरिबोज) और नाइट्रोजनयुक्त बेस (एडेनिन, थाइमीन, साइटोसिन, ग्वानिन) से मिलकर बनते हैं।
DNA का संरचना
DNA एक दोहरी हेलिक्स संरचना में होता है, जिसमें दो पॉलिन्यूक्लियोटाइड स्ट्रैंड्स एक दूसरे से जुड़े होते हैं। यह नाइट्रोजनयुक्त बेस द्वारा हाइड्रोजन बांड के माध्यम से जुड़ते हैं।
RNA का संरचना
RNA आमतौर पर एकल-पॉलिन्यूक्लियोटाइड स्ट्रैंड होता है। यह रिबोज शुगर और नाइट्रोजनयुक्त बेस समुच्चय (एडेनिन, यूरीसल, साइटोसिन, ग्वानिन) से बना होता है।
जैविक भूमिका
DNA आनुवंशिक जानकारी का भंडारण और संचरण करता है जबकि RNA प्रोटीन संश्लेषण और जीन के अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। RNA के विभिन्न रूप जैसे मेसेंजर RNA, ट्रांसफर RNA और राइबोसोमल RNA होते हैं जो विभिन्न कार्यों में संलग्न होते हैं।
Introductory Medicinal Chemistry: Drug discovery, design, drug action theory, synthesis of representative drugs
Introductory Medicinal Chemistry: Drug discovery, design, drug action theory, synthesis of representative drugs
औषधि खोज
औषधि खोज एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें वैज्ञानिक विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए नए यौगिकों का पता लगाते हैं। इसके चरणों में लक्ष्य पहचान, यौगिक स्क्रीनिंग और प्रारंभिक विकास शामिल होते हैं।
औषधि डिजाइन
औषधि डिजाइन में मॉलिक्यूलर मोडलिंग और कंप्यूटर सहायता प्राप्त तकनीक का उपयोग करके नए यौगिकों का विकास किया जाता है। यौगिकों की संरचना और उनके कार्यों के बीच संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
औषधि क्रिया सिद्धांत
औषधि क्रिया सिद्धांत में यह समझा जाता है कि औषधियाँ कैसे क्रियाशील होती हैं। रिसेप्टर्स, एंजाइम और सेलुलर पथों के साथ औषधियों के अंतःक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
प्रतिनिधि औषधियों का संश्लेषण
संश्लेषण की प्रक्रिया में विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं का उपयोग करके औषधियों का निर्माण शामिल होता है। इस प्रक्रिया में कच्चे माल का चयन, प्रतिक्रिया की स्थिति और उत्पाद की शुद्धता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
Solid State: Space lattice, unit cell, laws of crystallography, X-ray diffraction, crystal structures of salts
Solid State: Space lattice, unit cell, laws of crystallography, X-ray diffraction, crystal structures of salts
Space Lattice
स्थान जाल एक तीन-आयामी संरचना होती है, जिसका निर्माण परमाणुओं या अणुओं के नियमित रूप से व्यवस्थित होने से होता है। यह सभी संभावित स्थिति बिंदुओं का एक समान रूप से फैलाव होता है, जहाँ पर ठोस सामग्री के अणु स्थित हो सकते हैं।
Unit Cell
यूनिट सेल ठोस की सबसे छोटी एकक संरचना होती है, जो समग्र क्रिस्टल संरचना में पुनरावृत्ति होती है। हर यूनिट सेल एक विशिष्ट आकार और आकार में होता है, जिसमें iones या अणुओं की संख्या और उनकी व्यवस्था शामिल होती है।
Laws of Crystallography
क्रिस्टलोग्राफी के नियम ठोस संरचनाओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण हैं। यह नियम बताते हैं कि कैसे क्रिस्टल संरचना की ज्यामिति मापी जाती है और इसमें एकसमानता और समरूपता के सिद्धांत शामिल होते हैं।
X-ray Diffraction
एक्स-रे विवर्तन एक तकनीक है जिसका उपयोग क्रिस्टल की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। जब एक्स-रे क्रिस्टल पर गिरते हैं, तो वे विवर्तित होते हैं, जिससे हमें क्रिस्टल संरचना के बारे में जानकारी मिलती है।
Crystal Structures of Salts
नमक के क्रिस्टल संरचनाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं, जैसे कि आईनिक संरचनाएं, जो तटस्थ अणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनिक अंतःक्रियाओं के कारण बनती हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम क्लोराइड (NaCl) एक सामान्य नमक है, जिसमें एक सरल cubic क्रिस्टल संरचना होती है।
Introduction to Polymer: Classification, bonding, molecular mass determination, inorganic polymers
Introduction to Polymer
पॉलिमर का परिचय
पॉलिमर बहुत से अणुओं (मोनोमर) के संयोजन से बने होते हैं। ये पदार्थ प्राकृतिक या कृत्रिम हो सकते हैं। प्राकृतिक पॉलिमर में प्रोटीन, न्यूक्लियोटाइड्स, और पॉलीसेकेराइड्स शामिल होते हैं, जबकि कृत्रिम पॉलिमर में प्लास्टिक और रबर शामिल होते हैं।
पॉलिमर का वर्गीकरण
पॉलिमर को दो मुख्य वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: थर्मोप्लास्टिक और थर्मोसेटिंग। थर्मोप्लास्टिक वे होते हैं जो गर्म करने पर नरम हो जाते हैं और ठंडा होने पर कठोर हो जाते हैं, जबकि थर्मोसेटिंग वे होते हैं जो गर्म करने पर सेट हो जाते हैं और दुबारा गर्म नहीं किए जा सकते।
संयोग
पॉलिमर में मुख्य रूप से तीन प्रकार के बंधन होते हैं: कोवालेन्ट बंधन, हाइड्रोजन बंधन और वैन डेर वाल्स बंधन। कोवालेन्ट बंधन सबसे मजबूत होते हैं, जबकि हाइड्रोजन और वैन डेर वाल्स बंधन कमजोर होते हैं और ये पॉलिमर की भौतिक विशेषताओं को प्रभावित करते हैं।
अणु द्रव्यमान का निर्धारण
पॉलिमर के अणु द्रव्यमान का निर्धारण विभिन्न विधियों द्वारा किया जा सकता है, जैसे कि संख्या औसत मोलर द्रव्यमान, वजन औसत मोलर द्रव्यमान और ओस्मोटिक दबाव विधि। ये तरीके पॉलिमर के आकार और इसके गुणों को समझने में सहायक होते हैं।
अकार्बनिक पॉलिमर
अकार्बनिक पॉलिमर ऐसे होते हैं जिनमें कर्बन (C) के अलावा अन्य तत्व प्रमुख होते हैं, जैसे कि सिलिकन, ऑक्सीज़न, नाइट्रोजन आदि। सिलिकॉन आधारित पॉलिमर का प्रयोग एरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मेडिकल उपकरणों में किया जाता है।
Kinetics and Mechanism of Polymerization: Polymerization techniques and mechanisms
Kinetics and Mechanism of Polymerization
पालिमराइजेशन का परिचय
पालिमराइजेशन एक प्रक्रिया है जिसमें छोटी अणुओं (मोनोमर्स) का संयोजन कर बड़े अणुओं (पालिमर्स) का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया दो मुख्य प्रकारों में विभाजित होती है: अनुक्रमण पालिमराइजेशन और संघटन पालिमराइजेशन।
पालिमराइजेशन की तकनीकें
पालिमराइजेशन की कई तकनीकें हैं, जैसे: 1. फ्री रेडिकल पालिमराइजेशन, 2. आयनिक पालिमराइजेशन, 3. सांकेतिक पालिमराइजेशन। हर तकनीक की अपनी विशिष्टता और उपयोगिता होती है।
पालिमराइजेशन के तंत्र (मैकेनिज्म)
पालिमराइजेशन के तंत्र में विभिन्न चरण होते हैं, जैसे प्रारंभिक चरण, वृद्धि चरण, और समाप्ति चरण। प्रारंभिक चरण में फ्री रेडिकल या आयन का निर्माण होता है, जो मोनोमर्स के साथ प्रतिक्रिया कर उन्हें पालिमर में परिवर्तित करता है।
फ्री रेडिकल पालिमराइजेशन
फ्री रेडिकल पालिमराइजेशन एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें फ्री रेडिकल्स मोनोमर्स के साथ संपर्क करते हैं और उनसे नए पोलीमर का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया तेज़ होती है और यह विभिन्न प्रकार के मोनोमर्स के साथ की जा सकती है।
आयनिक पालिमराइजेशन
आयनिक पालिमराइजेशन या तो कैटोनिक या एनायोनिक होता है। इसमें आयन मोनोमर्स के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। यह प्रक्रिया नियंत्रित है और अधिक विशिष्टता प्रदान करती है।
सांकेतिक पालिमराइजेशन
इस प्रक्रिया में, संतुलित और नियोजित तरीके से पालिमर निर्माण होता है। यह प्रक्रिया अधिकतर नियंत्रित वातावरण में ही की जाती है।
उपयोग और आवेदन
पालिमराइजेशन की यह तकनीकें औद्योगिक अनुप्रयोगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे प्लास्टिक, रबर, और कई औषधियों के निर्माण में। इससे प्राप्त पालिमर्स का उपयोग दैनिक जीवन में व्यापक रूप से होता है।
Synthetic Dyes: Colour and constitution, classification, chemistry and synthesis of common dyes
Synthetic Dyes
रंग और संघटन
सिंथेटिक रंगों का रंग और उनका रासायनिक संरचना उनके अणुओं की विशेषताओं पर निर्भर करती है। विभिन्न रंगवाले यौगिक अपने विशिष्ट ईल्केल समूहों और रंगित अणुओं के कारण विभिन्न रंग उत्पन्न करते हैं।
वर्गीकरण
सिंथेटिक रंगों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि एसिड डाईस, बेसिक डाईस, और नेचर डाईस। ये रंग विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त होते हैं और उनकी स्थिरता भी भिन्न होती है।
रसायन विज्ञान
सिंथेटिक डाईस का रसायन विज्ञान विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं, जैसे कि नाइट्रोजरेशन, सल्फोनेशन और एस्टेरिफिकेशन से संबंधित है। यह रंगों की उत्पादन विधियों को समझने में मदद करता है।
सिंथेसिस के तरीके
सिंथेटिक रंगों की सिंथेसिस में अनेक तरीके शामिल होते हैं, जिनमें विभिन्न रासायनिक यौगिकों का उपयोग होता है। आम रंगों की सिंथेसिस में बेंजीन, नाइट्रोबेंजीन जैसी यौगिकों का प्रयोग किया जाता है।
