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Semester 3: Chemical Dynamics & Coordination Chemistry

  • Chemical Kinetics: Reaction rates, order of reaction, experimental methods, collision and transition state theories

    Chemical Kinetics
    • प्रतिक्रिया दरें

      रासायनिक प्रतिक्रियाओं की गति को प्रतिक्रिया दर कहा जाता है। यह सामान्यतः उत्पादों की सांद्रता में परिवर्तन की दर के रूप में परिभाषित की जाती है। प्रतिक्रिया दर को मोल प्रति लीटर प्रति सेकंड (mol/L/s) में मापा जाता है।

    • प्रतिक्रिया का क्रम

      प्रतिक्रिया का क्रम उस कुल श्रेय को दर्शाता है जो रासायनिक प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक है। यह सामान्यतः दर समीकरण में सांद्रताओं के महत्तम जोड़ की संख्या के रूप में दर्शाया जाता है।

    • प्रयोगात्मक विधियाँ

      रासायनिक गतिज अध्ययन करने के लिए विभिन्न प्रयोगात्मक विधियाँ उपलब्ध हैं, जिनमें सांद्रता बदलाव, तापमान माप, और प्रतिक्रिया के अंतर्गत समय मापना शामिल है। इन विधियों से प्रतिक्रिया दर का मापन किया जा सकता है।

    • संघर्ष सिद्धांत

      संघर्ष सिद्धांत का आधार यह है कि प्रतिक्रियाएँ केवल तब होती हैं जब अणु आपस में टकराते हैं। टकराव की स्थिति में आवश्यक ऊर्जा का होना प्रतिक्रिया के सक्रियण ऊर्जा के रूप में जाना जाता है।

    • संक्रमण स्थिति सिद्धांत

      संक्रमण स्थिति सिद्धांत का सुझाव है कि प्रतिक्रियाएँ एक संक्रमण स्थिति के माध्यम से होती हैं, जो कि उच्च ऊर्जा वाली अवस्था होती है। इस स्थिति में अणुओं की संरचना में परिवर्तन होता है, जिससे प्रतिक्रिया प्रारंभ होती है।

  • Chemical Equilibrium: Equilibrium constants, thermodynamic derivation, Le-Chatelier's principle

    Chemical Equilibrium
    • रासायनिक संतुलन की परिभाषा

      रासायनिक संतुलन तब होता है जब एक रासायनिक प्रतिक्रिया की आगे की और विपरीत दिशा की दर बराबर हो जाती है। इस स्थिति में, प्रतिक्रिया के उत्पादों और अभिकर्ताओं की सांद्रता समय के साथ परिवर्तित नहीं होती।

    • संतुलन स्थिरांक

      संतुलन स्थिरांक (K) एक संख्या है जो प्रतिक्रिया के उत्पादों और अभिकर्ताओं के सांद्रताओं के अनुपात का प्रतिनिधित्व करता है। इसे प्रतिक्रिया के संतुलन के समय अभिकर्ताओं और उत्पादों की सांद्रता के गुणांक के साथ व्यक्त किया जाता है।

    • उष्मीय विवेचन

      रासायनिक संतुलन के लिए उष्मीय विवेचन में गिब्स मुक्त ऊर्जा का उपयोग होता है। गिब्स मुक्त ऊर्जा के परिवर्तन द्वारा यह निर्धारित किया जा सकता है कि कोई प्रतिक्रिया स्वतः हो रही है या नहीं। संतुलन स्थिति में, गिब्स ऊर्जा का परिवर्तन शून्य होता है।

    • ले-शातेलिए के सिद्धांत

      ले-शातेलिए का सिद्धांत कहता है कि जब किसी संतुलित प्रतिक्रिया का बाह्य परिस्थिति में परिवर्तन किया जाता है, तो प्रतिक्रिया इस परिवर्तन के विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए संतुलन की स्थिति को फिर से स्थापित करती है। इस सिद्धांत का उपयोग प्रतिक्रिया के तापमान, दबाव और सांद्रता में परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए किया जाता है।

    • महत्व और अनुप्रयोग

      रासायनिक संतुलन के सिद्धांतों का कई क्षेत्रों में अनुप्रयोग होता है, जैसे औषधि, कृषि, और पर्यावरण विज्ञान। यह औद्योगिक प्रक्रियाओं का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। रासायनिक संतुलन का उचित ज्ञान हमें विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं को समझने और नियंत्रित करने में मदद करता है।

  • Phase Equilibrium: Gibbs phase rule, phase equilibria for one and two component systems

    Phase Equilibrium: Gibbs phase rule, phase equilibria for one and two component systems
    • Gibbs Phase Rule

      गिब्स का फेज नियम यह बताता है कि किसी सिस्टम की फेज की संख्या और उसकी स्वतंत्रता की डिग्री का संबंध क्या होता है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है: F = C - P + 2, जहाँ F स्वतंत्रता की डिग्री है, C संघटक की संख्या है, और P फेज की संख्या है। यह नियम समझने में मदद करता है कि कैसे विभिन्न फेज एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं और किन परिस्थितियों में वे संतुलित रह सकते हैं।

    • एक संघटक प्रणाली का फेज संतुलन

      एक संघटक प्रणाली में केवल एक संघटक होता है, जैसे कि पानी का विलियन। इसमें तापमान और दबाव के आधार पर विभिन्न फेज जैसे कि ठोस (बर्फ), द्रव (पानी) और गैस (वाष्प) हो सकते हैं। फेज संतुलन का मतलब है कि इन फेजों के बीच कोई भी परिवर्तन तब तक नहीं होगा जब तक कि सिस्टम संतुलित न हो। उदाहरण के लिए, जब बर्फ और पानी का संतुलन होता है, तब दोनों के बीच तापमान स्थिर रहता है।

    • दो संघटक प्रणाली का फेज संतुलन

      दो संघटक प्रणाली में दो अलग-अलग संघटक होते हैं, जैसे कि नमक और पानी। ऐसे सिस्टम में, फेज संतुलन को समझना थोड़ा अधिक जटिल होता है क्योंकि फेजों की संख्या और उनके बीच के संबंध अधिक होते हैं। यहां, गिब्स के नियम का उपयोग करके प्रत्येक संघटक की सांद्रता के आधार पर संतुलन स्थिति को निर्दिष्ट करने में सहायता मिलती है। संतुलन के दौरान, विभिन्न संघटन और फेजों की मात्रा एक-दूसरे के साथ संतुलित रहती है।

    • उदाहरण और ग्राफिकल प्रतिनिधित्व

      फेज संतुलन को एक त्रिकोणीय या बाइनरी फेज डायरग्राम द्वारा दर्शाया जा सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न फेजों की उपस्थिति को दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए, बाइनरी सिस्टम में, ठोस, द्रव, और गैसीय क्षेत्रों के बीच सीमा रेखाएँ होती हैं, जो यह दर्शाती हैं कि किस स्थिति में कौन सा फेज स्थिर है। ऐसे डायरग्राम का अध्ययन करके, वैज्ञानिक और इंजीनियर विभिन्न परिस्थितियों में फेज संतुलन को समझ सकते हैं।

  • Kinetic theories of gases: Postulates, deviation from ideality, Van der Waals equation, molecular velocities

    Kinetic theories of gases
    • Item

      गैसों के तीन मुख्य पोस्टुलेशन हैं: 1. गैस के अणु लगातार गतिशील होते हैं। 2. गैस अणुओं के बीच टकराव भिन्नता के साथ होते हैं और ये टकराव पूरी तरह से इलास्टिक होते हैं। 3. गैस के अणुओं के बीच कोई आकर्षण या विकर्षण बल नहीं होता है।
    • Item

      गैसों का आदर्श व्यवहार केवल निम्न तापमान और उच्च दाब पर सही रहता है। वास्तविक गैसें आदर्श से कई कारणों से हट सकती हैं, जैसे अणुओं के बीच आकर्षण और आकार के कारण।
    • Item

      वान डेर वाल्स समीकरण वास्तविक गैसों के व्यवहार को समायोजित करता है। यह समीकरण इस प्रकार है: (P + a(n/V)^2)(V - nb) = nRT, जहां a और b अणुओं की विशेषताओं के लिए स्थिरांक हैं।
    • Item

      गैस के अणुओं की औसत गति तापमान और दाब पर निर्भर करती है। आवागमन की गति में अणुओं का प्रभाव भी होता है। मोलर मास और तापमान के आधार पर औसत गति ज्ञात की जा सकती है।
  • Liquid State: Intermolecular forces, liquid crystals, gels

    Liquid State: Intermolecular forces, liquid crystals, gels
    • तरल अवस्था

      तरल अवस्था उन पदार्थों की स्थिति है जहाँ उनके अणु निकटतम होते हैं और गतिशील होते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि तरल पदार्थों का आकार उनके कंटेनर के आकार के अनुसार बदलता है, लेकिन उनका वॉल्यूम स्थिर रहता है।

    • आंतराणविक बल

      तरल अवस्था में अणुओं के बीच कार्यरत बलों को आंतराणविक बल कहा जाता है। ये बल मुख्यत: वान डेर वाल्स बल, हाइड्रोजन बंधन, और आयनिक बल होते हैं। इन बलों की प्रकृति तरल के गुणों को निर्धारित करती है, जैसे कि उष्मा की क्षमता, वाष्प दाब, और घनत्व।

    • तरल क्रिस्टल

      तरल क्रिस्टल वे पदार्थ हैं जो तरल और ठोस दोनों की विशेषताएँ रखते हैं। इनमें अणु एक विशिष्ट क्रम में व्यवस्थित होते हैं, जबकि वे तरल की तरह बह सकते हैं। ये मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग होते हैं जैसे कि LCD स्क्रीन।

    • जेल

      जेल एक अधिभाषित पदार्थ है जिसमें तरल और ठोस दोनों की विशेषताएँ होती हैं। यह मुख्य रूप से एक नेटवर्क संरचना होती है जो तरल को अपने भीतर समाहित करती है। जेली, स्याही और कुछ फार्मास्यूटिकल्स में gels का उपयोग होता है।

    • उपसंहार

      तरल अवस्था का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पदार्थों के व्यवहार और उन पर कार्यरत बलों को समझने में मदद करता है। इससे हमें विज्ञान और उद्योग में विभिन्न अनुप्रयोगों की समझ मिलती है।

  • Coordination Chemistry: Werner’s theory, ligands, coordination numbers, isomerism in complexes

    Coordination Chemistry
    वर्नर का सिद्धांत समन्वय यौगिकों की संरचना और बंधन की व्याख्या करता है। वर्नर ने यह सिद्धांत पेश किया कि एक केंद्रीय धातु परमाणु और उसके चारों ओर स्थित लिगैंड के बीच बंधन शक्ति से संबंधित है।
    लिगैंड वे अणु या आयन होते हैं जो केंद्रीय धातु के परमाणु के साथ बंधन बनाते हैं। लिगैंड की प्रकृति और संख्या समन्वय यौगिकों के गुणधर्मों को प्रभावित करती है।
    संबंधित धातु के चारों ओर लिगैंड की संख्या समन्वय संख्या कहलाती है। यह आमतौर पर 2 से 6 तक होती है, जैसे कि 2 (लाइनियर), 4 (चतुर्भुज), और 6 (आकर्षण) संरचनाएँ।
    समन्वय यौगिकों में विभिन्न प्रकार का आइसोमेरिज्म होता है, जैसे कि स्ट्रक्चरल आइसोमेरिज्म और जियोमेट्रिकल आइसोमर। ये आइसोमेर यौगिकों की भिन्नता को दर्शाते हैं और उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों को प्रभावित करते हैं.
  • Theories of Coordination Chemistry: Metal-ligand bonding, crystal field theory, thermodynamics and kinetics of complexes

    Theories of Coordination Chemistry
    • Metal-ligand Bonding

      धातु-लिगैंड बंधन, तत्वों के बीच की अनूठी इंटरैक्शन को दर्शाता है। इन बंधनों में सामान्यतः डॉनर अणु और मेटल आयन के बीच इलेक्ट्रॉन साझा किया जाता है। यह बंधन औसत में दो प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: कोवैलेंट बंधन और आयनिक बंधन।

    • Crystal Field Theory

      क्रिस्टल फील्ड थ्योरी, धातु के आयनों के चारों ओर के लिगैंड के विद्युत क्षेत्र के प्रभावों का अध्ययन करती है। यह सिद्धांत यह बताता है कि लिगैंड का प्रभाव धातु के आयन के इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा स्तर में बदलाव करता है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न रंग और अन्य भौतिक गुण उत्पन्न होते हैं।

    • Thermodynamics of Complexes

      जटिलों की थर्मोडायनामिक्स, अणुओं के स्थिरता और बंधन के गठन को समझने के लिए ऊष्मा ऊर्जा और कार्य के सिद्धांतों का प्रयोग करती है। यह प्रक्रिया यह निर्धारित करती है कि कब और कैसे जटिल अधिक स्थिरता प्राप्त करते हैं।

    • Kinetics of Complexes

      जटिलों की गतिशीलता, रासायनिक प्रतिक्रियाओं की गति और उनके यांत्रिकी पर केंद्रित है। यह अध्ययन करता है कि विभिन्न कारक जैसे तापमान, सांद्रता और लिगैंड की प्रकृति कैसे जटिलों के गठन और विघटन की गति को प्रभावित करते हैं।

  • Inorganic Spectroscopy and Magnetism: Electronic spectra, selection rules, magnetic properties of transition metal complexes

    Inorganic Spectroscopy and Magnetism
    • Electronic Spectra

      अकार्बनिक spectroscopy में इलेक्ट्रॉनिक स्पेक्ट्रा का अध्ययन महत्वपूर्ण है। यह अध्ययन संक्रमण धातु परिसरों में इलेक्ट्रॉनिक स्तरों के बीच अंतर के कारण होती है। यह अंतर विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा परिवर्तन के कारण होता है, जिससे इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन और अवशोषण होता है। विशेष रूप से, क्रिस्टल फील्ड थ्योरी और लिगेंड फील्ड थ्योरी इन इलेक्ट्रॉनिक स्पेक्ट्रा के विश्लेषण में मदद करती हैं।

    • Selection Rules

      इलेक्ट्रॉनिक संक्रमणों के लिए चयन नियम यह निर्धारित करते हैं कि कौन से संक्रमण संभव हैं। मूल रूप से दो मुख्य चयन नियम होते हैं: पहला नियम यह कहता है कि स्पिन परिवर्तन की अनुमति नहीं है, और दूसरा यह कहता है कि पार्श्विक क्षण का परिवर्तन केवल 0 या ±1 होना चाहिए। इन नियमों का पालन करने वाले संक्रमण अधिक विवर्तनशील होते हैं।

    • Magnetic Properties of Transition Metal Complexes

      संक्रमण धातु परिसरों की चुंबकीय विशेषताएँ महत्वपूर्ण होती हैं। ये गुण मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक संरचना और क्रिस्टल फील्ड विभाजन पर निर्भर करते हैं। दो प्रमुख प्रकार के चुंबकीय गुण होते हैं: परमाग्नेटिज्म और डायमैग्नेटिज्म। परमाग्नेटिक परिसरों में अनुपpaired इलेक्ट्रॉन्स होते हैं, जबकि डायमैग्नेटिक परिसरों में सभी इलेक्ट्रॉन्स जोड़े में होते हैं। कुछ धातुओं जैसे कि लोहा और निकल अक्सर परमाग्नेटिक होते हैं।

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