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Semester 3: Advance Nutrition and Human Development

  • Meal Planning: Definition, Importance, Factors affecting meal planning, Balanced Diet, RDA

    Meal Planning
    भोजन योजना का अर्थ है एक रणनीति बनाना जिसमें हम अपनी खाद्य खपत को प्राथमिकता और संतुलित रूप से व्यवस्थित करते हैं। यह एक पूर्व निर्धारित समय अवधि के लिए विभिन्न प्रकार के भोजन की योजना बनाने की प्रक्रिया है।
    भोजन योजना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पोषण को सुनिश्चित करती है, पैसे की बचत करती है, समय की कुशलता बढ़ाती है और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देती है। यह मानसिक तनाव को भी कम करती है और आपको खाने की आदतों पर नियंत्रण रखने में मदद करती है।
    भोजन योजना को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक हैं: 1. व्यक्तिगत पसंद और आहार संबंधी जरूरतें, 2. स्वास्थ्य की स्थिति, 3. आर्थिक स्थिति, 4. उपलब्ध सामग्री, 5. पारिवारिक आकार और समय की उपलब्धता।
    संतुलित आहार वह है जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज सही अनुपात में शामिल होते हैं। यह शरीर के विकास, ऊर्जा और सामान्य स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
    सिफारिश की गई दैनिक मात्रा (RDA) वह मात्रा है जो शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों को संतुलित और स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह आयु, लिंग और स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकती है।
  • Nutrition During Infancy and Childhood: Nutrition Requirement, RDA and Diet Plan

    Nutrition During Infancy and Childhood
    • Importance of Nutrition in Infancy

      शिशु काल में पोषण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करता है। उचित पोषण से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

    • Nutritional Requirements

      शिशुओं और बच्चों की पोषण आवश्यकताएँ उम्र, वजन और विकास के चरण के अनुसार भिन्न होती हैं। शिशुओं को विशेष रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों की आवश्यकता होती है।

    • Recommended Dietary Allowance (RDA)

      आरडीए शिशुओं और बच्चों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा को दर्शाता है। यह उनकी उम्र और लिंग के अनुसार निर्धारित होता है। दुधारू शिशुओं के लिए विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

    • Diet Plan for Infants and Children

      शिशुओं और बच्चों के लिए सही आहार योजना में दूध, अनाज, फल, सब्जियाँ और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ शामिल होने चाहिए। शिशुओं को स्तनपान कराना सबसे अच्छा है। बच्चों के लिए संतुलित आहार प्रदान करना आवश्यक है।

    • Role of Breastfeeding

      स्तनपान शिशुओं के लिए सर्वोत्तम पोषण स्रोत है। यह उन्हें आवश्यक एंटीबॉडी और पोषक तत्व प्रदान करता है, जो उनके विकास के लिए अनिवार्य हैं।

  • Nutrition During Adolescence, Adulthood and Old Age: Nutrition Requirement, RDA and Diet Plan

    Nutrition During Adolescence, Adulthood and Old Age
    • किशोरावस्था में पोषण

      किशोरावस्था में शरीर तेजी से विकसित होता है। इस दौरान सही पोषण आवश्यक है। किशोरों को प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स की अधिक आवश्यकता होती है। विशेषकर कैल्शियम और आयरन का सेवन बढ़ाना चाहिए।फल और सब्जियों का सेवन भी महत्वपूर्ण है।

    • वयस्कता में पोषण

      वयस्कता के दौरान पोषण संतुलित होना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, और अच्छे फैट्स का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। उम्र बढ़ने के साथ मेटाबॉलिज़्म धीमा होता है, इसलिए कैलोरी का सेवन नियंत्रित रखना आवश्यक है।

    • वृद्धावस्था में पोषण

      वृद्धावस्था में पोषण की आवश्यकता में बदलाव आता है। प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ जाती है ताकि मांसपेशियों का स्वास्थ्य बना रहे। फाइबर का सेवन बढ़ाना चाहिए ताकि पाचन बेहतर हो सके। पानी का पर्याप्त सेवन भी महत्वपूर्ण है।

    • पोषण की आवश्यकता और आरडीए

      आरडीए से तात्पर्य है 'अनुशंसित दैनिक सेवन'। किशोरों के लिए आरडीए में प्रोटीन, कैल्शियम, और आयरन शामिल हैं। वयस्कों और वृद्धों के लिए यह आवश्यक तत्वों पर निर्भर करता है।

    • डाइट प्लान

      संतुलित डाइट प्लान बनाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, किशोर के लिए सुबह का नाश्ता में ओट्स, फल, और दूध शामिल हो सकते हैं। वयस्कों के लिए सलाद, दाल, और चपाती, और वृद्धों के लिए खिचड़ी और सूप अधिक उपयुक्त होते हैं।

  • Nutrition During special condition pregnancy and lactation: Nutrition Requirement, RDA and Diet Plan

    Nutrition During special condition pregnancy and lactation
    • गर्भावस्था के दौरान पोषण की आवश्यकता

      गर्भावस्था के दौरान एक महिला के पोषण की आवश्यकताएँ बढ़ जाती हैं। इसे गर्भावस्था के तीन त्रैमासिक में विभाजित किया जा सकता है। पहले त्रैमासिक में, अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता कम होती है, लेकिन पोषक तत्वों की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है। दूसरे और तीसरे त्रैमासिक में, कैलोरी की आवश्यकता बढ़ जाती है ताकि भ्रूण के विकास को समर्थन मिल सके।

    • लैक्टेशन के दौरान पोषण की आवश्यकता

      लैक्टेशन के दौरान, स्त्री को अपने आहार में लगभग 500 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि माँ और बच्चे दोनों को पर्याप्त पोषण मिले, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन्स का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

    • रूढ़ीगत पोषण आवश्यकताएँ (RDA)

      गर्भावस्था और lactation के लिए RDA मानक निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए, गर्भवती महिलाओं के लिए प्रोटीन की आवश्यकता लगभग 70 ग्राम प्रतिदिन होती है। आयरन की आवश्यकता 27 मिलीग्राम प्रतिदिन होती है।

    • डायट प्लान

      एक संतुलित आहार योजना में फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, दुग्ध उत्पादों और प्रोटीन स्रोतों को शामिल करना चाहिए। रोजाना तीन से पाँच बार छोटे भोजन करना बेहतर होता है और हाइड्रेशन का ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है।

    • विशेष आवश्यकताएँ और सुझाव

      कुछ महिलाओं को विशेष पोषण संबंधी आवश्यकताओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि मोटापा या डायबिटीज। ऐसे में उन्हें अपने आहार में लचीला बनाना पड़ेगा। नियमित डॉक्टर की सलाह लेना भी उपयुक्त है।

  • Middle Childhood Years: Developmental tasks and characteristics, Physical and motor development, Social & emotional development, Cognitive development, Language development

    Middle Childhood Years: Developmental tasks and characteristics
    • विकासात्मक कार्य

      मध्य बचपन में बच्चों को अपनी पहचान बनानी होती है। उन्हें आत्म-नियंत्रण, सामाजिक स्वीकार्यता और टीम वर्क जैसे गुणों का विकास करना होता है।

    • शारीरिक और मोटर विकास

      बच्चों का शारीरिक विकास इस उम्र में तेजी से होता है। उनसे उनकी मोटर क्षमताओं में भी सुधार होता है, जैसे दौड़ना, कूदना और खेल खेलना।

    • सामाजिक और भावनात्मक विकास

      बच्चों में मित्रता बनाने, समूह में काम करने और भावनाओं को समझने की क्षमता विकसित होती है। यह भावनात्मक बुद्धिमत्ता के विकास में भी सहायक है।

    • संज्ञानात्मक विकास

      इस चरण में बच्चों की सोचने की क्षमता और समस्या समाधान कौशल में सुधार होता है। उनके निर्णय लेने की क्षमताएं और तर्कसंगत सोच विकसित होती हैं।

    • भाषाई विकास

      मध्य बचपन में बच्चों की शब्दावली और ग्रंथीय समझ में वृद्धि होती है। वे स्पष्टता से अपनी भावनाएं और विचार व्यक्त करने में सक्षम होते हैं।

  • Puberty and Adolescence: Development tasks and characteristics, Physical physiological and hormonal changes, Self and Identity, Family and peer relationship, Problems like Drug abuse, STD, HIV/AIDS, Teenage pregnancy

    Puberty and Adolescence - Developmental Tasks and Characteristics
    • Puberty ka Parichay

      Puberty vo samay hai jab vyakti ke sharir mein kai mahatvapurn parivartan hote hain. Yeh avastha 10 se 14 varsh ki umar ke beech shuru hoti hai. Is dauran sharir mein hormone ka sanchalan badhta hai, jo ki sharirik aur manasik vikas ko prabhavit karta hai.

    • Sharirik aur Physiological Parivartan

      Puberty ke dauran sharirik parivartan jise dekhne mein aate hain unmein peshi ka vikas, sharirik bal, aur aakar mein parivartan shamil hain. Ladkon mein testosterone hormone ki vriddhi hoti hai, jabki ladkiyon mein estrogen aur progesterone hormones ka sanchalan badhta hai. Is se prashasanik prabhavit hota hai, jaise ki badiya bal, shariir ki akruti mein badlav, aur mahilaon mein menstruation ka arambh.

    • Hormonal Changes

      Hormonal parivartan puberty ka ek mukhya ang hai. Ladkon mein testosterone ka badhna unhe adolesence ke dauran mardana gunon ki taraf le jata hai, jabki ladkiyon mein estrogen ka vriddhi unke sharir ko mahilayoon ki tarah vikasit karta hai. Yeh hormonal badlav vyakti ki pravritiyon aur vicharon ko bhi prabhavit karte hain.

    • Swabhaav aur Pehchaan

      Adolescence ke dauran vyakti apne swabhaav aur pehchaan ko khojta hai. Yahan vyakti apne astitv ki samasyaon se guzar raha hota hai. Is dauran vyakti apne aap ko samajhne ki koshish karta hai aur apna sthal samajhne ki koshish karta hai.

    • Parivarik aur Saheliyon ke Rishte

      Is avastha mein parivarik sambandh aur saheliyon ke sath ka sambandh avashya hota hai. Parivar se milne wale samarthan aur samajh vyakti ke vikas mein mahatvapurn bhoomika ada karte hain. Dosti aur samajik sambandh adhiktar vyakti ki manasik svasta ko prabhavit karte hain.

    • Samasyayein jaise ki Drug Abuse, STD, HIV/AIDS, Teenage Pregnancy

      Adolescence ke dauran kai samasyayein utpann hoti hain. Drug abuse, STD, HIV/AIDS aur teenage pregnancy jaisi samasyaon se aaj ke yuva samajh dasheya rahte hain. Yeh samasya vyakti ke sharirik aur manasik swasthya par prabhav dalti hain aur samaj mein bhi kathinaiyan laati hain. Is dauran vyakti ko in samasyayon se bachne ke liye sahi margdarshan aur jankari ki avashyakta hoti hai.

  • Cognitive, Language and Moral Development during Adolescence

    Cognitive Language and Moral Development during Adolescence
    • Cognitive Development

      किशोरावस्था के दौरान संज्ञानात्मक विकास में निर्णय लेने, समस्या हल करने और विचारों के जटिलता में वृद्धि शामिल है। इस अवधि में युवा लोग अधिक तार्किक और विश्लेषणात्मक सोच के प्रति सक्षम होते हैं।

    • Language Development

      किशोरावस्था में भाषा विकास में संवाद कौशल में सुधार, शब्दावली का विस्तार, और भाषा के जटिल शास्त्रीय स्वरूपों को समझने की क्षमता शामिल है। यह व्यक्तित्व और सामाजिक पहचान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    • Moral Development

      किशोरों में नैतिक विकास में नैतिकता की खोज, न्याय और समानता के विचारों का विकास होता है। इस समय युवा व्यक्तियों में अपने मानकों और मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ती है।

    • Social Influences

      किशोरावस्था में सामाजिक प्रभाव जैसे दोस्तों, परिवार और समाज का नैतिकता और भाषा विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। किशोर सामाजिक मानदंडों और व्यवहारों को अपनाते हैं, जो उनके विकास को आकार देते हैं।

    • Educational Implications

      किशोरावस्था में संज्ञानात्मक, भाषा और नैतिक विकास को आधार बना करके शिक्षण में समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। छात्रों को ऐसी शैक्षिक गतिविधियों में संलग्न करना चाहिए जो उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।

  • Introduction to adulthood: Concept, transition from adolescence to adulthood, Developmental tasks, Physical and physiological changes, Responsibilities and adjustments

    Introduction to adulthood
    • परिपक्वता का परिचय

      परिपक्वता वह अवस्था है जब एक व्यक्ति किशोरावस्था से वयस्कता में प्रवेश करता है। यह समय मानसिक, शारीरिक और सामाजिक परिवर्तनों से भरा होता है।

    • किशोरावस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण

      किशोरावस्था से वयस्कता में संक्रमण सामान्यतः 18 से 25 वर्ष के बीच होता है। इस दौरान व्यक्ति अपने निर्णय लेने की क्षमताओं में सुधार करता है और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों का सामना करता है।

    • विकासात्मक कार्य

      इस चरण में विभिन्न विकासात्मक कार्यों का सामना करना होता है, जैसे शिक्षा का समापन, करियर की चयन प्रक्रिया, और स्वतंत्रता प्राप्त करना।

    • शारीरिक और शारीरिक परिवर्तन

      वयस्कता में शारीरिक विकास अपने अंतिम चरण में होता है, जैसे मांसपेशियों का विकास और हार्मोनल परिवर्तन। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य और स्थिरता भी महत्वपूर्ण होती हैं।

    • जिम्मेदारियाँ और समायोजन

      परिपक्व होने पर व्यक्ति को नवीन जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है, जैसे परिवार का पालन-पोषण, करियर में प्रगति, और सामाजिक संबंधों का प्रबंधन। इसके लिए उचित समायोजन आवश्यक है।

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