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Semester 4: Diploma in Applied Physics with Electronics
Relativity-Experimental Background
Relativity-Experimental Background
गैलिलियन सापेक्षता
गैलिलियन सापेक्षता सैद्धांतिक रूप से बताती है कि वस्तुओं की गति को केवल संदर्भ के आधार पर समझा जा सकता है। यह गति के लिए एक बुनियादी ढाँचा प्रदान करती है, जिसके तहत आधिकारिक सापेक्षता का विकास हुआ।
लाइट की गति
अल्बर्ट आइंस्टीन ने बताया कि प्रकाश की गति एक स्थायी मान है, जो सभी विपरीत संदर्भों में समान रहती है। यह उच्च गति वाले वस्तुओं के लिए विशेष सापेक्षता का आधार बनाता है।
पदार्थ और ऊर्जा का समकक्षता
आइंस्टीन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc² ने यह स्पष्ट किया कि पदार्थ और ऊर्जा एक-दूसरे के समकक्ष हैं। यह न केवल सिद्धांत में, बल्कि प्रयोगात्मक साक्ष्यों में भी सिद्ध हुआ।
प्रयोगात्मक परीक्षण
रडियो ऐक्टिव बैटरी की गति का अध्ययन जो सापेक्षता के सिद्धांतों का समर्थन करता है। अन्य प्रयोगों के तहत, जैसे कि म्यूऑन की अपेक्षित जीवनकाल का अवलोकन किया गया।
स्वर्णिम युग
आधुनिक भौतिकी में सापेक्षता का प्रकट होना और विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से इसे सिद्ध करना एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह युग विज्ञान के क्षेत्र में कई नई खोजों का उद्घाटन करता है।
Relativity-Relativistic Kinematics
सापेक्षता- सापेक्षतावादी गतिविधि
सापेक्षता का परिचय
सापेक्षता का सिद्धांत आइज़ैक न्यूटन की गुरुत्वाकर्षण की परिकल्पना के विपरीत है। इसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया। सापेक्षता दो मुख्य भागों में विभाजित है- विशेष सापेक्षता और सामान्य सापेक्षता।
विशेष सापेक्षता
विशेष सापेक्षता का सिद्धांत गति की प्रक्रियाओं को सरल बनाता है। इसके अनुसार, प्रकाश की गति अपरिवर्तित होती है, चाहे पर्यवेक्षक की गति कुछ भी हो। इस सिद्धांत ने समय और स्थान के पूर्वाग्रह को चुनौती दी।
गति का समय
सापेक्षता के अनुसार, गतिशील वस्तुइयों का समय स्थिर वस्तुइयों के मुकाबले धीमा होता है। इसे समय फैलाव (Time Dilation) कहा जाता है। इसका अर्थ है कि यदि कोई वस्तु उच्च गति से चल रही है, तो उसके लिए समय धीमा प्रतीत होता है।
लम्बाई का संकुचन
जब कोई वस्तु उच्च गति से चलती है, तो उसका लम्बाई आक लम्बाई संकुचन (Length Contraction) के रूप में प्रकट होता है। यह दर्शाता है कि गतिशील वस्तु की लम्बाई स्थिर पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से कम होती है।
ऊर्जा और द्रव्यमान का संबंध
विशेष सापेक्षता का एक महत्वपूर्ण परिणाम है कि ऊर्जा (E) और द्रव्यमान (m) के बीच संबंध है। इसे E=mc² के रूप में दर्शाया गया है। यह समीकरण बताता है कि द्रव्यमान ऊर्जा का एक रूप है।
सामान्य सापेक्षता
सामान्य सापेक्षता गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को समझने का एक सिद्धांत है। इसके अनुसार, बड़े द्रव्यमानों के कारण स्पेसटाइम में कर्व होता है। यह कर्व वस्तुओं की गति को प्रभावित करता है।
सापेक्षता का प्रयोग
सापेक्षता का सिद्धांत आज विज्ञान और तकनीकी में अनेक क्षेत्रों में लागू होता है, जैसे GPS प्रणाली में। यह सिद्धांत संचार, फिजिक्स, खगोल विज्ञान, और इंजीनियरिंग में महत्वपूर्ण है।
Inadequacies of Classical Mechanics
Classical Mechanics की अपर्याप्तताएँ
क्लासिकल मेकैनिक्स क्या है
क्लासिकल मेकैनिक्स, जिसे न्यूटनियन मेकैनिक्स भी कहा जाता है, भौतिकी की वह शाखा है जो वस्तुओं के गति और उन पर बलों के प्रभाव का अध्ययन करती है। यह हमारे दैनंदिन जीवन की अधिकतर घटनाओं की व्याख्या करने में सक्षम है।
क्लासिकल मेकैनिक्स की सीमाएँ
क्लासिकल मेकैनिक्स कुछ विशेष परिस्थितियों में असफल होती है जैसे कि जब वस्तुएँ अत्यधिक गति (लाइट की गति के करीब) पर होती हैं या जब वे अणुजनित या परमाणु स्तर पर होती हैं। ऐसा होने पर क्वांटम मेकैनिक्स और सापेक्षता का उपयोग आवश्यक हो जाता है।
सापेक्षता के सिद्धांत
आल्बर्ट आइंस्टीन का विशेष सापेक्षता का सिद्धांत कहता है कि गति की उच्च गति पर वस्तुएँ समय और स्थान को एक नए तरीके से अनुभव करती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, समय और स्थान स्थिर नहीं होते, बल्कि एक दूसरे से प्रभावित होते हैं।
क्वांटम फिजिक्स की भूमिका
क्वांटम मेकैनिक्स, वस्तुओं के अणु और उप-अणु स्तर पर कार्य करती है और यह हल्की तथा भारी वस्तुओं के बीच के अंतरों को स्पष्ट करती है। इसमें अनिश्चितता का सिद्धांत भी शामिल है, जो यह दर्शाता है कि किसी कण की स्थिति और उसकी गति एक साथ ज्ञात नहीं की जा सकती।
अन्य सीमाएँ
क्लासिकल मेकैनिक्स में ऊर्जा के संरक्षण का सिद्धांत भी कुछ स्थितियों में टूट सकता है, जसे काले प holes की मौजूदगी में। इसके अलावा, इसे आतंरिक ऊर्जा के स्तरों जैसे कण फिजिक्स में उपयोग नहीं किया जा सकता।
Introduction to Quantum Mechanics
Introduction to Quantum Mechanics
क्वांटम यांत्रिकी का परिचय
क्वांटम यांत्रिकी एक अद्वितीय भौतिकी की शाखा है जो सूक्ष्म कणों जैसे कि इलेक्ट्रॉन और फोटॉन की व्यवहार को समझाती है। यह सामान्य भौतिकी के नियमों से भिन्न है और ऊर्जा के स्तर को वर्णित करने के लिए सरलता से हल नहीं किया जा सकता।
क्लासिकल फिज़िक्स बनाम क्वांटम फिज़िक्स
क्लासिकल फिज़िक्स में वस्तुओं का गति का व्यवहार निरंतर और पूर्वानुमानित होता है, जबकि क्वांटम फिज़िक्स में कणों का स्थान और ऊर्जा की धारणा केवल संभाव्यता के साथ की जाती है। इस विषय में 'डुएलिटी' का सिद्धांत महत्वपूर्ण है।
क्वांटम सिद्धांत के मूल तत्व
क्वांटम यांत्रिकी में हिज़ ऑस्मोसिस और डेनज़िटी फ़ंक्शन जैसे सिद्धांत शामिल होते हैं। यह सिद्धांत कणों की स्थान और गति के संबंध को समझाने में मदद करते हैं।
प्रमुख प्रयोग और अनुप्रयोग
क्वांटम यांत्रिकी के महत्वपूर्ण प्रयोगों में यंग का दो-स्लिट प्रयोग और हाइड्रोजन अणु का विश्लेषण शामिल हैं। इसके अनुप्रयोग में क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम क्रिप्टोग्राफी का विकास हो रहा है।
निष्कर्ष
क्वांटम यांत्रिकी ने विज्ञान की दुनिया में क्रांति ला दी है। यह आधुनिक भौतिकी, रसायन विज्ञान और इंजीनियरिंग में नए दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो अनुसंधान और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Transistor Biasing
ट्रांजिस्टर बायसिंग
ट्रांजिस्टर का परिचय
ट्रांजिस्टर एक सेमिकंडक्टर डिवाइस है, जिसका उपयोग विद्युत सिग्नल को बढ़ाने और स्विचिंग के लिए किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है: बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर (BJT) और फील्ड-इफेक्ट ट्रांजिस्टर (FET)।
बायसिंग का महत्व
बायसिंग ट्रांजिस्टर के सही कार्य के लिए आवश्यक है। यह ट्रांजिस्टर के ऑपरेशन क्षेत्र को निर्धारित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि ट्रांजिस्टर सिग्नल को सही ढंग से बढ़ा सके।
बायसिंग के तरीके
ट्रांजिस्टर बायसिंग के कई तरीके हैं, जैसे कि फ़िक्स्ड बायस, वॉल्टेज डिवाइडर बायस और इमिटर बायस। प्रत्येक तरीके के अपने फायदे और नुकसान होते हैं।
फिक्स्ड बायसिंग
इस तरीके में एक निश्चित वोल्टेज का उपयोग किया जाता है। इसकी सरलता के कारण यह कई आधारभूत सर्किट में उपयोग होता है, लेकिन इसमें तापमान के परिवर्तन के कारण ट्रांजिस्टर का संचालन प्रभावित हो सकता है।
वॉल्टेज डिवाइडर बायसिंग
यह तरीका बायसिंग के लिए दो रेजिस्टर्स का उपयोग करता है। यह तापमान स्थिरता में सुधार करता है और यथार्थता को बढ़ाता है।
इमिटर बायसिंग
इसमें इमिटर पर एक रेजिस्टर जोड़ा जाता है, जो तापमान में परिवर्तन पर बायस स्टेबलिटी को बढ़ाता है। यह ट्रांजिस्टर के आउटपुट सिग्नल को और अधिक स्थिर बनाता है।
निष्कर्ष
ट्रांजिस्टर बायसिंग एक महत्वपूर्ण विषय है, जो ट्रांजिस्टर के सही क्रियान्वयन और कार्यप्रदर्शन को सुनिश्चित करता है। सही बायसिंग विधि के चयन से विद्युत सर्किट के प्रदर्शन में सुधार किया जा सकता है.
Amplifiers
Amplifiers
अम्पलीफायर का परिचय
अम्पलीफायर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसका मूल कार्य एक छोटे सिग्नल को बड़ा करना होता है। यह विभिन्न प्रकार के सिग्नल जैसे ऑडियो, वीडियो, और रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है।
अम्पलीफायर के प्रकार
अम्पलीफायर मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं: 1. कक्षा A (Class A) 2. कक्षा B (Class B) 3. कक्षा AB (Class AB) इनकी कार्यप्रणाली, उपयुक्तता और प्रभावशीलता के आधार पर भिन्नताएँ होती हैं।
अम्पलीफायर का कार्य
अम्पलीफायर का मुख्य कार्य इनपुट सिग्नल को ताकतवर आउटपुट सिग्नल में परिवर्तित करना है। यह सिग्नल के वोल्टेज, करंट, या पावर को बढ़ाने की प्रक्रिया है।
अम्पलीफायर की विशेषताएं
अम्पलीफायर की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं: 1. गेन (Gain) 2. बैंडविड्थ (Bandwidth) 3. आउटपुट प्रतिरोध (Output Impedance) 4. इनपुट प्रतिरोध (Input Impedance) ये विशेषताएं उसकी प्रभावशीलता और इस्तेमाल के क्षेत्र को निर्धारित करती हैं।
अम्पलीफायर के अनुप्रयोग
अम्पलीफायर का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है जैसे: 1. ऑडियो उपकरणों में 2. रेडियो प्रसारण 3. टेलीविजन 4. चिकित्सा उपकरणों में 5. संचार में।
Feedback Oscillator Circuits
Feedback Oscillator Circuits
परिचय
फीडबैक ऑस्सीलेटर सर्किट वे सर्किट होते हैं जो एक इनपुट सिग्नल का उपयोग करके आउटपुट सिग्नल उत्पन्न करते हैं। इन सर्किटों में फीडबैक नेटवर्क का उपयोग किया जाता है ताकि आउटपुट सिग्नल को इनपुट से जोड़ा जा सके और एक स्थिर ओस्सीलेशन प्राप्त किया जा सके।
प्रकार
फीडबैक ऑस्सीलेटर मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं: सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक फीडबैक सर्किट में, सिग्नल को बढ़ाने के लिए इनपुट में जोड़ दिया जाता है, जबकि नकारात्मक फीडबैक में, आउटपुट सिग्नल को कम करने के लिए इनपुट को घटा दिया जाता है।
कार्यक्षमता
फीडबैक ऑस्सीलेटर काम करता है जब इसमें फीडबैक के माध्यम से पर्याप्त लाभ होता है। ऑस्सीलेटर का फ्रीक्वेंसी निर्धारण मुख्यतः कापेसिटर्स और इंडक्टर्स के मान पर निर्भर करता है।
उपयोग
इन सर्किटों का उपयोग रेडियो ट्रांसमिटर्स, न्यूज़टोन जनरेटर, और विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है जहाँ एक निश्चित फ्रीक्वेंसी पर सिग्नल की आवश्यकता होती है।
सर्किट डिजाइन
फीडबैक ऑस्सीलेटर सर्किट का डिजाइन करते समय, सर्किट में काम करने वाले ट्रांजिस्टर, रेसिस्टर्स, और कापेसिटर्स का सही चयन करना होता है ताकि वांछित फ्रीक्वेंसी और सिग्नल गुणवत्ता प्राप्त की जा सके.
Introduction to Fiber Optics
फाइबर ऑप्टिक्स का परिचय
फाइबर ऑप्टिक्स क्या है
फाइबर ऑप्टिक्स एक तकनीक है जिसमें प्रकाश को फाइबर के भीतर संचालित करके डाटा संचारित किया जाता है। यह कांच या प्लास्टिक के पतले तारों से बना होता है।
कार्यप्रणाली
फाइबर ऑप्टिक्स में प्रकाश भेजने के लिए लेसर या एलईडी का उपयोग किया जाता है। जब प्रकाश फाइबर के अंदर जाता है, तो यह कुल आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत के अनुसार परावर्तित होता है, जिससे यह फाइबर के अंत तक पहुंचता है।
फाइबर ऑप्टिक्स के लाभ
फाइबर ऑप्टिक्स में निम्नलिखित लाभ हैं: 1. उच्च बैंडविथ - यह अधिक डाटा को तेजी से संचारित करता है। 2. कम संचार हानि - डेटा का समाप्ति बिंदु तक पहुँचते समय कम हानि होती है। 3. विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप से सुरक्षा - फाइबर ऑप्टिक्स बिजली से प्रभावित नहीं होते हैं।
फाइबर ऑप्टिक्स के अनुप्रयोग
फाइबर ऑप्टिक्स का उपयोग दूरसंचार, इंटरनेट, चिकित्सा उपकरणों, और औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है।
भविष्य की दिशा
फाइबर ऑप्टिक्स तकनीक में निरंतर विकास हो रहा है। उच्च क्षमता और तीव्रता की वजह से, यह भविष्य के डेटा संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
