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BA 5th Semester History Syllabus in Hindi

Last Updated on December 01, 2025 by admin 2 Comments

BA 5th Semester History Syllabus in Hindi

यह पोस्ट “BA 5th Semester History Syllabus in Hindi” उन छात्रों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई है जो बीए पंचम सेमेस्टर में इतिहास (History) विषय की पढ़ाई कर रहे हैं। इसमें दिया गया सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP-2020) पर आधारित है, जिसे भारत के कई विश्वविद्यालयों द्वारा अपनाया गया है।

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इस लेख में आपको BA 5th सेमेस्टर इतिहास का सम्पूर्ण सिलेबस हिंदी में सरल भाषा में उपलब्ध कराया गया है। यदि आप जानना चाहते हैं कि नए शैक्षिक ढांचे के तहत पहले सेमेस्टर में कौन-कौन से यूनिट और टॉपिक शामिल हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए अत्यंत लाभकारी होगी।

BA 5th Semester History Syllabus in Hindi PDF (2025-26)

Table of Contents

  • BA 5th Semester History Syllabus in Hindi PDF (2025-26)
    • बी.ए. इतिहास – पाँचवाँ सेमेस्टर (Semester V) – सामान्य परिचय
    • अनिवार्य पेपर: A050501T – भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)
      • इकाईवार पाठ्यक्रम विवरण (Unit-wise Syllabus Description):
    • ऐच्छिक पेपर 1: A050502T – आधुनिक विश्व का इतिहास (1453 ई.–1815 ई.)
      • इकाईवार सिलेबस:
    • ऐच्छिक पेपर 2: A050503T – मध्यकालीन भारत का सामाजिक और आर्थिक इतिहास (1200 – 1700 ई.)
      • इकाईवार सिलेबस:
    • ऐच्छिक पेपर 3: A050504T – इतिहास में नैतिकता (Ethics in History)
      • इकाईवार सिलेबस:
  • BA 5th Semester History Book in Hindi

BA 5th Semester History Syllabus in Hindi

इस सेक्शन में बीए 5th सेमेस्टर हिस्ट्री (इतिहास) का सिलेबस दिया गया है | यहाँ सिलेबस में दिए गये सभी टॉपिक्स को discuss किया गया है |

बी.ए. इतिहास – पाँचवाँ सेमेस्टर (Semester V) – सामान्य परिचय

पाँचवें सेमेस्टर में कुल चार पेपर शामिल होते हैं, जिनमें से:

  • एक पेपर अनिवार्य (Compulsory) होता है।

  • तीन पेपर ऐच्छिक (Optional) श्रेणी में होते हैं, जिनमें से विद्यार्थी किसी एक पेपर का चयन करते हैं।

पाँचवे सेमेस्टर के पेपर इस प्रकार हैं:

  1. A050501T – भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India) – अनिवार्य पेपर

  2. A050502T – आधुनिक विश्व का इतिहास (1453 ई.–1815 ई.) – ऐच्छिक

  3. A050503T – मध्यकालीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200–1700 ई.) – ऐच्छिक

  4. A050504T – इतिहास में नैतिकता (Ethics in History) – ऐच्छिक

छात्र इनमें से किसी एक ऐच्छिक पेपर को अनिवार्य पेपर के साथ पढ़ते हैं।

अनिवार्य पेपर: A050501T – भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)

पाठ्यक्रम का नाम: भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)

कोर्स कोड: A050501T

क्रेडिट: 5

कुल कक्षाएँ (Lectures): 75

अंतिम मूल्यांकन: 100 अंक (न्यूनतम उत्तीर्णांक: 33)

कोर्स परिणाम (Course Outcome):

इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य भारत में राष्ट्रवाद के उद्भव, विकास और विविध रूपों को समझाना है। इसमें 1857 की क्रांति के प्रभाव, सामाजिक-धार्मिक पुनर्जागरण, कांग्रेस के विभिन्न चरणों, उग्र राष्ट्रवाद, मुस्लिम लीग, स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख आंदोलनों और विचारधाराओं को समाहित किया गया है। यह कोर्स विद्यार्थियों में एक जागरूक नागरिक की समझ और ऐतिहासिक चेतना विकसित करता है।

इकाईवार पाठ्यक्रम विवरण (Unit-wise Syllabus Description):

इकाई I: 1857 की क्रांति – कारण, स्वरूप और प्रभाव

इस इकाई में 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सैन्य कारणों का विश्लेषण किया जाता है। इसमें यह भी बताया गया है कि इस क्रांति को भारतीय इतिहास में कैसे परिभाषित किया गया—क्या यह एक विद्रोह था या भारत की पहली स्वतंत्रता की कोशिश? इस क्रांति के व्यापक प्रभावों और इसकी असफलता के कारणों को समझाया गया है।

इकाई II: भारत में राष्ट्रवाद के विकास के कारण

इस भाग में ब्रिटिश शासन के शोषणकारी स्वरूप, अंग्रेज़ी शिक्षा, प्रेस की स्वतंत्रता, रेलवे और टेलीग्राम जैसी सुविधाओं के माध्यम से संचार का विस्तार और आधुनिक विचारों के प्रसार से राष्ट्रवाद के प्रस्फुटन की भूमिका पर चर्चा की जाती है। इसके साथ ही पुनर्जागरण आंदोलनों ने कैसे एक नवीन जागरूकता उत्पन्न की, यह भी समझाया गया है।

इकाई III: राष्ट्रवाद के सिद्धांत – गांधी और टैगोर के विचार

यह इकाई गांधीजी और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे विचारकों के राष्ट्रवाद पर दृष्टिकोण को समझने पर केंद्रित है। गांधीजी के सत्याग्रह, अहिंसा और स्वदेशी सिद्धांतों की चर्चा की जाती है, वहीं टैगोर के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मानवता आधारित दृष्टिकोण को विस्तार से बताया गया है। दोनों के विचारों की तुलना राष्ट्र निर्माण के सैद्धांतिक विमर्श में महत्वपूर्ण है।

इकाई IV: आरंभिक राष्ट्रीय आंदोलन – उदारवादी युग

इस इकाई में 1885 से 1905 तक के कांग्रेस के उदारवादी चरण का अध्ययन किया जाता है। दादा भाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेताओं की भूमिका, उनकी मांगें, रणनीतियाँ और ब्रिटिश शासन से अपेक्षाएँ इस भाग का केंद्र हैं। उनके नरमपंथी रुख की आलोचना और सीमाएँ भी इस इकाई में विश्लेषित की जाती हैं।

इकाई V: उग्र राष्ट्रवाद – कारण और विकास

इस भाग में बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं की भूमिका का अध्ययन होता है। स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार आंदोलन, गणपति उत्सव, शिवाजी महोत्सव जैसे सांस्कृतिक प्रयोगों के माध्यम से राष्ट्रवाद को जनांदोलन में बदलने की रणनीति को समझाया गया है।

इकाई VI: स्वदेशी आंदोलन और कांग्रेस का विभाजन (1907)

यह इकाई बंगाल विभाजन के विरोध में फैले स्वदेशी आंदोलन की पृष्ठभूमि और परिणामों पर आधारित है। 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस के विभाजन की घटनाओं, उसके कारणों और भारतीय राजनीति पर पड़े प्रभावों का विश्लेषण इसमें किया जाता है।

इकाई VII: मुस्लिम लीग का उदय और माँगें

इस इकाई में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना और उसके सामाजिक-राजनीतिक उद्देश्य, मांगें और ब्रिटिश सरकार के साथ उसकी निकटता को समझाया जाता है। साथ ही यह बताया गया है कि मुस्लिम लीग ने बाद में भारत की राजनीति में सांप्रदायिकता कैसे स्थापित की।

इकाई VIII: प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव, लखनऊ समझौता और होमरूल आंदोलन

अंतिम इकाई में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत की परिस्थिति, युद्ध के बाद के आर्थिक-सामाजिक बदलाव, तिलक और एनी बेसेंट द्वारा चलाए गए होमरूल आंदोलन, और कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच हुआ लखनऊ समझौता (1916) शामिल है। यह समझौता हिंदू-मुस्लिम एकता की ऐतिहासिक मिसाल था।

ऐच्छिक पेपर 1: A050502T – आधुनिक विश्व का इतिहास (1453 ई.–1815 ई.)

क्रेडिट: 5 | कुल कक्षाएँ (Lectures): 75

पाठ्यक्रम उद्देश्य:

इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को यूरोप में मध्यकालीन धार्मिक एवं सामंती व्यवस्था के पतन से लेकर आधुनिक राष्ट्र-राज्य की स्थापना तक की ऐतिहासिक यात्रा से परिचित कराना है। पुनर्जागरण, धर्मसुधार, राज्यक्रांतियाँ और फ्रांसीसी क्रांति इस प्रक्रिया के प्रमुख पड़ाव हैं।


इकाईवार सिलेबस:

इकाई I: 15वीं सदी की यूरोपीय राजनीतिक एवं धार्मिक संरचना

इस इकाई में पवित्र रोमन साम्राज्य की बनावट, पोप और चर्च की सर्वोच्चता, सामंतवाद की जकड़न और राजा की सीमित भूमिका को समझाया जाता है। यह बताता है कि किस प्रकार धार्मिक शक्तियों ने राजनीति को निर्देशित किया और सामाजिक स्वतंत्रता को बाधित किया।

इकाई II: पुनर्जागरण (Renaissance) – कारण, स्वरूप और प्रभाव

पुनर्जागरण का केंद्र इटली था। इस इकाई में इसके प्रमुख कारण (जैसे अरबों के संपर्क, व्यापार, यूनानी-रोमन ग्रंथों की पुनः खोज) को समझाया जाता है। लियोनार्डो दा विंची, माइकेल एंजेलो, पेट्रार्क, और माकियावेली जैसे चिंतकों का योगदान और कला, विज्ञान, राजनीति में इसका प्रभाव इस भाग का मुख्य विषय है।

इकाई III: धर्मसुधार आंदोलन (Reformation) और मार्टिन लूथर की भूमिका

यह इकाई धार्मिक शोषण के खिलाफ उठी विद्रोही भावना को उजागर करती है। लूथर का 95 सूत्रीय घोषणापत्र, प्रोटेस्टेंट मत का विकास, रोमन चर्च का विभाजन और काउंटर रिफॉर्मेशन की प्रतिक्रिया को विस्तार से समझाया जाता है।

इकाई IV: 30 वर्षीय युद्ध (Thirty Years War)

यह धार्मिक संघर्षों से उत्पन्न यूरोप का एक विशाल युद्ध था। इसमें बोहेमिया, स्पेन, फ्रांस, स्वीडन जैसे कई देश शामिल हुए। युद्ध की राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक परिणतियों की विवेचना की जाती है।

इकाई V: इंग्लैंड की गौरवशाली क्रांति (Glorious Revolution)

1688 की क्रांति रक्तहीन थी लेकिन परिवर्तनकारी थी। इस इकाई में चार्ल्स द्वितीय, जेम्स द्वितीय और विलियम-मैरी की सत्ता ग्रहण प्रक्रिया को समझाया जाता है। क्रांति के बाद ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता और संविधानवाद का उदय इसकी खास बातें हैं।

इकाई VI: 18वीं सदी की औद्योगिक क्रांति

यह इकाई बताती है कि किस प्रकार तकनीकी विकास (जैसे स्पिनिंग जेनी, स्टीम इंजन) ने उत्पादकता, शहरीकरण और उपभोक्तावाद को जन्म दिया। सामाजिक असमानता, बाल श्रम और पूंजीवादी समाज की संरचना भी इसी में उभरती है।

इकाई VII: फ्रांसीसी क्रांति – कारण, घटनाक्रम और प्रभाव

फ्रांसीसी क्रांति के पीछे की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक असमानताएँ (क्लर्जी, नोबिलिटी, थर्ड एस्टेट) को समझाया जाता है। बास्तील का पतन, राष्ट्रीय सभा, मानवाधिकार घोषणापत्र और जैकोबिन शासन इसके प्रमुख पड़ाव हैं।

इकाई VIII: नेपोलियन बोनापार्ट

नेपोलियन की शक्ति-प्राप्ति, आंतरिक सुधार (Code Napoleon), प्रशासनिक केंद्रीकरण, युद्ध नीति और महाद्वीपीय प्रतिबंध प्रणाली का अध्ययन इस इकाई में होता है। साथ ही वाटरलू की हार और उसकी ऐतिहासिक विरासत का मूल्यांकन भी इसमें किया जाता है।


ऐच्छिक पेपर 2: A050503T – मध्यकालीन भारत का सामाजिक और आर्थिक इतिहास (1200 – 1700 ई.)

क्रेडिट: 5 | कुल कक्षाएँ (Lectures): 75

पाठ्यक्रम उद्देश्य:

यह पाठ्यक्रम भारत के मध्यकालीन युग की सामाजिक परतों, धार्मिक आंदोलनों और आर्थिक संरचनाओं को समझाने हेतु डिज़ाइन किया गया है। यह छात्रों को सल्तनत से मुग़ल काल तक भारत की अंदरूनी सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक शक्तियों से परिचित कराता है।


इकाईवार सिलेबस:

इकाई I: सल्तनत काल में समाज

सामाजिक वर्गों की संरचना – शासक, उमरा, व्यापारी, कारीगर, किसान और शूद्रों की स्थिति। हिन्दू-मुस्लिम संबंध, धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक गतिशीलता की सीमाओं को भी समझाया गया है।

इकाई II: अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीतियाँ

बाजार नियंत्रण नीति, दाम निर्धारण, कर प्रणाली, जमींदारी के प्रति रुख और राज्य की सैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनाए गए ढांचे इस इकाई में शामिल हैं।

इकाई III: भक्ति और सूफ़ी आंदोलन

भारत के धार्मिक-सांस्कृतिक जीवन पर सूफ़ियों और भक्ति संतों का प्रभाव – जैसे कबीर, तुलसीदास, गुरु नानक, मीराबाई, निज़ामुद्दीन औलिया आदि। इन आंदोलनों ने किस प्रकार सामाजिक समरसता और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया, इसका विश्लेषण।

इकाई IV: महिलाओं की स्थिति

सल्तनत काल और मुग़ल काल में महिलाओं की शिक्षा, विवाह, पर्दा प्रथा, उत्तराधिकार अधिकार, और सामाजिक भूमिका को समझाया जाता है। साथ ही रज़िया सुल्तान जैसी अपवाद शख्सियतें भी इसमें शामिल हैं।

इकाई V: भूमि व्यवस्था (मुग़ल काल)

जागीरदारी, ज़बती, दशाला, और अन्य भूमि कर प्रणाली। भूमि मापन, रिकॉर्ड पद्धति, और कृषक अधिकारों पर चर्चा।

इकाई VI: व्यापार व्यवस्था

अंदरूनी और बाहरी व्यापार की अवस्थिति – प्रमुख व्यापारिक नगर, मार्ग, माल और मुद्रा। विदेशी व्यापारियों (अरब, फारसी, पुर्तगाली) की उपस्थिति और प्रभाव।

इकाई VII: बैंकिंग प्रणाली

हवाला, सर्राफ, बंधक प्रणाली, Indigenous financial system और बही-खाता पद्धति का विवरण।

इकाई VIII: उद्योग और शिल्प

कपड़ा, धातु, कागज, कांच, निर्माण कार्यों में कारीगरों की भूमिका। श्रम व्यवस्था, शिल्प पर राज्य नियंत्रण और गिल्ड प्रणाली की चर्चा।


ऐच्छिक पेपर 3: A050504T – इतिहास में नैतिकता (Ethics in History)

क्रेडिट: 5 | कुल कक्षाएँ (Lectures): 75

पाठ्यक्रम उद्देश्य:

यह पेपर इतिहास को केवल घटनाओं के अनुक्रम के बजाय एक नैतिक और बौद्धिक अनुशासन के रूप में प्रस्तुत करता है। यह विद्यार्थियों को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नैतिक मूल्यों, दर्शन, धार्मिक चिंतन और सामाजिक उत्तरदायित्व को समझने की प्रेरणा देता है।


इकाईवार सिलेबस:

इकाई I: इतिहास और नैतिकता का संबंध

इतिहास को नैतिक अनुशासन के रूप में देखने की आवश्यकता। ऐतिहासिक घटनाओं से नैतिक शिक्षाओं की व्याख्या – जैसे असहयोग, सविनय अवज्ञा, अंहिसा आदि।

इकाई II: नैतिकता के स्रोत – परंपरागत और आधुनिक

धर्म, संस्कृति, समाज और शिक्षा के माध्यम से प्राप्त नैतिक मूल्यों की पहचान। व्यक्तिगत और सामाजिक उत्तरदायित्व।

इकाई III: प्राचीन भारतीय दर्शन में नैतिकता

वेद, उपनिषद, जैन और बौद्ध साहित्य में नैतिक शिक्षाएँ – सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, करुणा आदि।

इकाई IV: गीता और वेदों में नैतिकता

कर्मयोग, धर्म का पालन, आत्मसंयम, और निष्काम कर्म की अवधारणा।

इकाई V: धर्म और तर्क – नैतिक निर्णय की प्रक्रिया

क्या नैतिकता केवल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है या तर्क के आधार पर भी उसका मूल्यांकन संभव है – इन दोनों पक्षों का तुलनात्मक विश्लेषण।

इकाई VI: भक्ति आंदोलन और नैतिक जागरण

कबीर, तुलसी, सूर, गुरु नानक आदि संतों की नैतिक शिक्षाएँ और सामाजिक प्रभाव। उनके माध्यम से आत्म-शुद्धि, सेवा और सहिष्णुता की सीख।

इकाई VII: श्री अरबिंदो का नैतिक दर्शन

मानव जीवन के उद्देश्य, आत्मोन्नति, राष्ट्र निर्माण में आध्यात्मिक भूमिका, और आधुनिक भारतीय चेतना में योगदान।

इकाई VIII: गांधी और राधाकृष्णन के नैतिक विचार

गांधी जी के सत्य और अहिंसा आधारित जीवन मूल्य और राधाकृष्णन का भारतीय संस्कृति पर आधारित नैतिक चिंतन। दोनों की शिक्षाओं का आधुनिक जीवन और राजनीति पर प्रभाव।

BA 5th Semester History Book in Hindi

इस सेक्शन में बीए 5th सेमेस्टर के छात्रों के लिए हिस्ट्री (इतिहास) की बुक का लिंक दिया गया है |

first war of independence

बुक पढने के लिए – यहाँ क्लिक करें

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Comments

  1. ANAND KUMAR says

    July 25, 2025 at 1:01 pm

    हास को नैतिक अनुशासन के रूप में देखने की आवश्यकता। ऐतिहासिक घटनाओं से नैतिक शिक्षाओं की व्याख्या – जैसे असहयोग, सविनय अवज्ञा, अंहिसा आदि।

    इकाई II: नैतिकता के स्रोत – परंपरागत और आधुनिक

    धर्म, संस्कृति, समाज और शिक्षा के माध्यम से प्राप्त नैतिक मूल्यों की पहचान। व्यक्तिगत और सामाजिक उत्तरदायित्व।

    इकाई III: प्राचीन भारतीय दर्शन में नैतिकता

    वेद, उपनिषद, जैन और बौद्ध साहित्य में नैतिक शिक्षाएँ – सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, करुणा आदि।

    इकाई IV: गीता और वेदों में नैतिकता

    कर्मयोग, धर्म का पालन, आत्मसंयम, और निष्काम कर्म की अवधारणा।

    Reply
    • admin says

      July 25, 2025 at 4:17 pm

      hey @Anand, how can I help you?

      Reply

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