
यह पोस्ट “BA 2nd Semester History Syllabus in Hindi” उन छात्रों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई है जो बीए द्वितीय सेमेस्टर में इतिहास (History) विषय की पढ़ाई कर रहे हैं। इसमें दिया गया सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP-2020) पर आधारित है, जिसे भारत के कई विश्वविद्यालयों द्वारा अपनाया गया है।
इस लेख में आपको BA 2nd सेमेस्टर इतिहास का सम्पूर्ण सिलेबस हिंदी में सरल भाषा में उपलब्ध कराया गया है। यदि आप जानना चाहते हैं कि नए शैक्षिक ढांचे के तहत पहले सेमेस्टर में कौन-कौन से यूनिट और टॉपिक शामिल हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए अत्यंत लाभकारी होगी।
BA 2nd Semester History Syllabus in Hindi PDF (2025-26)
Table of Contents
इस सेक्शन में बीए सेकंड सेमेस्टर हिस्ट्री (इतिहास) का सिलेबस दिया गया है | यहाँ सिलेबस में दिए गये सभी टॉपिक्स को discuss किया गया है |
बी.ए. द्वितीय सेमेस्टर इतिहास सिलेबस (NEP-2020 के अनुसार)
पाठ्यक्रम का नाम: मध्यकालीन भारत का इतिहास (1206 ई. – 1757 ई.)
कोर्स कोड: A050201T
क्रेडिट: 6
कुल कक्षाएँ (Lectures): 90
अंतिम मूल्यांकन: 100 अंक (न्यूनतम उत्तीर्णांक: 33)
कोर्स परिणाम (Course Outcome):
यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को मध्यकालीन भारत के सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से परिचित कराता है। इसमें सल्तनत काल से लेकर मुग़ल काल तक की प्रमुख घटनाओं, नीतियों, संघर्षों और सामाजिक आंदोलनों को विस्तार से समझाया गया है। यह सिलेबस भारत में इस्लामी शासन की प्रकृति, मराठा शक्ति के उत्थान और भक्ति-सूफ़ी आंदोलनों की पृष्ठभूमि को भी समाहित करता है।
इकाईवार पाठ्यक्रम विवरण (Unit-wise Syllabus Description):
इकाई I: प्रारंभिक तुर्क और खिलजी वंश
इस इकाई में भारत में तुर्क शासन की शुरुआत का वर्णन है, विशेष रूप से मोहम्मद गोरी की विजय के बाद स्थापित दिल्ली सल्तनत पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन की शासन प्रणाली, प्रशासनिक नवाचार और राजनीतिक संघर्षों का गहन अध्ययन किया जाता है। खिलजी वंश के अंतर्गत विशेष रूप से अलाउद्दीन खिलजी की युद्ध नीति, प्रशासनिक सुधार, और बाजार नियंत्रण नीति का मूल्यांकन किया जाता है।
इकाई II: तुगलक और लोदी वंश
यह इकाई तुगलक वंश के प्रमुख शासकों जैसे गयासुद्दीन, मोहम्मद बिन तुगलक और फिरोजशाह तुगलक की नीतियों को समर्पित है। विशेष रूप से मोहम्मद बिन तुगलक के प्रयोगात्मक शासन निर्णयों और उनके प्रभावों का विश्लेषण किया जाता है। फिरोजशाह द्वारा किए गए सामाजिक सुधार, निर्माण कार्य और जनहितकारी योजनाएँ भी इस इकाई में पढ़ाई जाती हैं। लोदी वंश के उत्थान और भारत में उनकी अंतिम भूमिका पर भी चर्चा होती है।
इकाई III: बाबर, हुमायूं और शेरशाह सूरी
इस भाग में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की पृष्ठभूमि, बाबर के भारत पर आक्रमण, पानीपत और खानवा की लड़ाइयाँ, और हुमायूं का संघर्षशील शासन शामिल हैं। शेरशाह सूरी के शासन को विशेष महत्व दिया गया है, क्योंकि उसने आधुनिक प्रशासन और भू-राजस्व प्रणाली की नींव रखी। उसका सड़क निर्माण, सराय व्यवस्था और सिक्का प्रणाली भारत के प्रशासनिक इतिहास में मील का पत्थर रही है।
इकाई IV: अकबर से शाहजहाँ तक
यह इकाई मुग़ल साम्राज्य के सुनहरे दौर को प्रस्तुत करती है। इसमें अकबर की नीतियाँ — मानसबदारी प्रणाली, राजपूत नीति, धार्मिक सहिष्णुता (दीन-ए-इलाही), और प्रशासनिक सुधारों पर विस्तार से चर्चा होती है। साथ ही जहाँगीर की न्यायप्रियता, शाहजहाँ के कला प्रेम और स्थापत्य शैली को भी इसमें शामिल किया गया है। मुग़ल संस्कृति, चित्रकला और साहित्य का भी उल्लेख होता है।
इकाई V: औरंगज़ेब और मुग़ल साम्राज्य का पतन
इस इकाई में औरंगज़ेब की धार्मिक नीति, दक्षिण भारत के खिलाफ युद्ध, और राजपूतों के साथ संबंधों की जटिलता पर ध्यान दिया गया है। साथ ही यह समझाया जाता है कि कैसे उसकी नीतियाँ मुग़ल साम्राज्य के विघटन की ओर ले गईं। उत्तराधिकार युद्ध, आर्थिक असंतुलन और प्रशासनिक विफलताएँ साम्राज्य के पतन के कारण बने।
इकाई VI: शिवाजी और मराठा शक्ति का उदय
यह भाग मराठा शक्ति के उत्थान को दर्शाता है, विशेषकर छत्रपति शिवाजी के साहस, प्रशासनिक कौशल और हिन्दू पादशाही की संकल्पना को। शिवाजी की छापामार युद्धनीति, किला प्रणाली, राजस्व व्यवस्था और धर्मनिरपेक्ष प्रशासनिक दृष्टिकोण का विस्तार से अध्ययन होता है।
इकाई VII: मुग़ल काल की वास्तुकला एवं चित्रकला
इस इकाई में मुग़ल स्थापत्य की विशेषताओं जैसे ताजमहल, लालकिला, जामा मस्जिद आदि पर चर्चा की जाती है। मुग़ल चित्रकला की परंपरा, फारसी प्रभाव, और दरबारी चित्रकला के विकास को समझाया जाता है। यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर को जानने का उत्कृष्ट माध्यम है।
इकाई VIII: सूफ़ी आंदोलन, भक्ति आंदोलन एवं पुनर्जागरण
अंतिम इकाई में सूफ़ी संतों (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, निज़ामुद्दीन औलिया) और भक्ति संतों (कबीर, तुलसी, सूरदास, मीराबाई) की शिक्षाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इन आंदोलनों ने भारतीय समाज में धार्मिक सहिष्णुता, समरसता और लोकभाषा में आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह इकाई यह भी समझने में मदद करती है कि कैसे इन संतों की वाणी ने समाज सुधार में भूमिका निभाई।
BA 2nd Semester History Book in Hindi
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