UP board 12th hindi paper
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UP board 12th hindi paper
मुद्रित पृष्ठों की संख्या : 15
अनुक्रमांक ………………………………..
नाम …………………………………………
102 / 1 304(MQ)
2017
सामान्य हिंदी
प्रथम प्रश्नपत्र
समय : तीन घंटे 15मिनट ] [ पूर्णांक : 50
निर्देश : प्रारंभ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्नपत्र पढने के लिए निर्धारित हैं |
1 क) ‘पृथ्वीपुत्र‘ निबंध–संग्रह है
i) जैनेन्द्र कुमार का
ii) वासुदेवशरण अग्रवाल का
iii) मोहन राकेश का
iv) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय‘ का | 1
ख) ‘लहरों के राजहंस‘ की विधा है
i) उपन्यास
ii) कहानी
iii) नाटक
iv) यात्रा वृतांत | 1
ग) किस कृति के रचनाकार हरिशंकर परसाई हैं ?
i) ‘चंद छंद बरनन की महिमा
ii) ‘कल्पलता‘
iii) ‘साहित्य–सहचर‘
iv) ‘रानी नागफनी की कहानी‘ | 1
घ) डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखे गए निम्न ग्रंथों में से हिंदी साहित्य के इतिहास से सम्बंधित ग्रन्थ नहीं है
i) ‘हिंदी साहित्य की भूमिका‘
ii) ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल‘
iii) ‘हिंदी–साहित्य‘
iv) ‘चारुचंद्र–लेख‘ 1
ड) ‘साहित्य और समाज‘ निबंध के लेखक हैं
i) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर‘
ii) डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी
iii) प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी
iv) वासुदेवशरण अग्रवाल 1
2. क) ‘पारिजात‘ किस कवि के गीतों का संकलन है ?
i) सुमित्रानंदन पन्त
ii) अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘
iii) महादेवी वर्मा
iv) मैथिलीशरण गुप्त | 1
ख) ‘अज्ञेय‘ द्वारा सम्पादित सप्तकों की संख्या है
i) एक
ii) दो
iii) तीन
iv) चार | 1
ग) किस कवि को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार‘ नहीं मिला ?
i) रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ को
ii) सुमित्रानंदन पन्त को
iii) जयशंकर प्रसाद को
iv) महादेवी वर्मा को | 1
घ) ‘प्रगतिशील लेखक संघ‘ की स्थापना हुई थी
i) सन 1935 में
ii) सन 1936 में
iii) सन 1938 में
iv) सन 1943 में 1
ड) मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कृति है
i) ‘प्रदक्षिणा‘
ii) ‘दानलीला‘
iii) ‘रसकलश‘
iv) ‘अतिमा‘ | 1
3. क) निम्नलिखित अवतरणों में से किसी एक की सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिये : 2 + 5 = 7
i) भूमि का निर्माण देवों ने किया है, वह अनंतकाल से है | उसके भौतिक रूप, सौन्दर्य और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा आवश्यक कर्तव्य है | भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे, उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता बलवती हो सकेगी |
यह पृथ्वी सच्चे अर्थो में समस्त राष्ट्रिय विचारधाराओं की जननी है | जो राष्ट्रीयता पृथ्वी के साथ नहीं जुडी वह निर्मूल होती है | राष्ट्रीयता की जड़ें पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रिय भावों का अंकुर पल्लवित होगा |
इसलिए पृथ्वी की भौतिक स्वरूप की आद्योपांत जानकारी प्राप्त करना, उसकी सुन्दरता, उपयोगिता और महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है |
ii) भाषा की साधारण इकाई शब्द है, शब्द के आभाव में भाषा का अस्तित्व ही दुरूह है | यदि भाषा में विकसनशीलता शुरू होती है तो शब्दों के स्तर पर ही | दैन्दिन सामाजिक व्यवहारों में हम कई ऐसे नविन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं , जो अंग्रेजी, अरबी फारसी आदि विदेशी भाषाओँ से उधार लिए गए हैं |
वैसे ही नए शब्दों का गठन भी अनजाने में अनायास ही होता है | ये शब्द, अर्थात उन विदेशी भाषाओँ से सीधे अविकृत ढंग से उधार लिए गए शब्द, भले ही कामचलाऊ माध्यम से प्रयुक्त हों, साहित्यक दायरे में कदापि ग्रहणीय नहीं |
यदि ग्रहण करना पड़े तो उन्हें भाषा की मूल प्रकृति के अनुरूप साहित्यक शुद्धता प्रदान करनी पड़ती है | यहाँ प्रयत्न की आवश्कता प्रतीत होती है |
ख) निम्नलिखित में से किसी एक सूक्ति की सन्दर्भ सहित व्याख्या
कीजिये : 1 + 2 = 3
i) ‘मनुष्य–मनुष्य के बीच मनुष्य ने ही कितनी दीवारें कड़ी की है |’
ii) ‘सारा संसार स्वार्थ का अखाडा हो तो है | “
iii) ‘निंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है |”
4. क) निम्नलिखित अवतरणों में से किसी एक की सन्दर्भ सहित व्याख्या लिखिए : 2 + 5 = 7
i) मुझे फुल मत मारो,
मैं बाला अबला वियोगिनी, कुछ तो दया बिचारो |
होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु, गरल न गारो,
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो |
नहीं भोगिनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिंदूर–बिंदु यह – यह हरनेत्र निहारो !
रूप–दर्प कन्दर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
लो, यह मेरी चरण–धूलि उस रति के सिर पर धारो ||
ii) मर्त्य मानव की विजय का तुर्य हूँ मैं,
उर्वशी ! अपने समय का सूर्य हूँ मैं
अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ
बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ |
पर, न जाने, बात क्या है !
इंद्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,
सिंह से बाहें मिलाकर खेल सकता है,
फुल के आगे वही असहाय हो जाता,
शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता |
विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से ,
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से |
ख) निम्नलिखित में से किसी एक की ससन्दर्भ व्याख्या
कीजिए : 1 + 2 = 3
i) ‘तप नहीं केवल जीवन सत्य |’
ii) ‘मिलन के पल केवल दो चार, विरह के कल्प अपार‘
iii) ‘मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है‘
5. निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिये : 2 + 2 = 4
i) वासुदेवशरण अग्रवाल
ii) डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी
iii) मोहन राकेश |
6. निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए :
i) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘
ii) जयशंकर प्रसाद
iii) रामधारी सिंह ‘दिनकर‘
7. क) ‘ध्रुवयात्रा‘ अथवा ‘लाटी‘ कहानी का सारांश लिखिए | 4
अथवा
‘पंचलाईट‘ अथवा ‘बहादुर‘ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए |
ख) स्वपठित नाटक के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक का उत्तर दीजिए : 4
i) ‘कुहासा और किरण‘ नाटक के आधार पर ‘सुनंदा‘ का चरित्र– चित्रण कीजिए |
अथवा
‘कुहासा और किरण‘ नाटक के पहले अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए |
ii) ‘आन का मान‘ नाटक के आधार पर ‘अजित सिंह‘ का चरित्रांकन कीजिए |
अथवा
‘आन का मान‘ नाटक के कथानक पर प्रकाश डालिए |
iii) ‘सूतपुत्र‘ नाटक के आधार पर ‘परशुराम‘ का चरित्र–चित्रण कीजिए |
अथवा
‘सूतपुत्र‘ नाटक के अंतिम अंक की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए |
iv) ‘राजमुकुट‘ नाटक के आधार पर ‘जगमल‘ का चरित्र–चित्रण कीजिए |
अथवा
‘राजमुकुट‘ नाटक की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए |
v) ‘गरुड़ध्वज‘ नाटक के आधार पर ‘काशिराज‘ का चरित्रांक कीजिए |
अथवा
‘गरुड़ध्वज‘ नाटक के तीसरे अंक की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए |
8. स्वपठित खंडकाव्य के आधार पर किसी एक खंड के एक प्रश्न का उत्तर दीजिए |
i) ‘श्रवणकुमार‘ खंडकाव्य की कथावस्तु का सारांश अपने शब्दों में लिखिए |
अथवा
‘श्रवणकुमार‘ खंडकाव्य के आधार पर ‘दशरथ‘ का चरित्र–चित्रण कीजिए |
ii) ‘रश्मिरथी‘ खंडकाव्य के नायक ‘कर्ण‘ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |
अथवा
‘रश्मिरथी‘ खंडकाव्य के पंचम सर्ग की कथावस्तु लिखिए |
iii) ‘मुक्तियज्ञ‘ खंडकाव्य के नायक का चरित्र–चित्रण कीजिए |
अथवा
‘मुक्तियज्ञ‘ खंडकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए |
iv) ‘त्यागपथी‘ खंडकाव्य के आधार पर ‘हर्षवर्धन‘ का चरित्र–चित्रण कीजिए |
अथवा
‘त्यागपथी‘ खंडकाव्य के पंचम सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए |
v) ‘सत्य की जीत‘ खंडकाव्य के आधार पर ‘दु:शासन‘ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |
अथवा
‘सत्य की जीत‘ खंडकाव्य की कथा अपने शब्दों में लिखिए |
vi) ‘आलोकवृत‘ खंडकाव्य के नायक का चरित्र–चित्रण कीजिए |
अथवा
‘आलोकवृत‘ खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए |
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