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Semester 3: Algebra and Mathematical Methods
Introduction to Indian ancient Mathematics and Mathematicians
Introduction to Indian ancient Mathematics and Mathematicians
प्राचीन भारतीय गणित का इतिहास
प्राचीन भारत में गणित का इतिहास बहुत समृद्ध है। इसे वेदों, उपनिषदों और बौद्ध ग्रंथों में भी देखा जा सकता है। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने अंकगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आर्यभट्ट
आर्यभट्ट एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलज्ञ थे, जिन्होंने आर्किमिडीज़ और यूक्लिड के कामों को अपने समय में विस्तारित किया। उनकी प्रसिद्ध कृति 'आर्यभटीय' में गणित और खगोल विज्ञान के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।
ब्रह्मगुप्त
ब्रह्मगुप्त ने 7वीं शताब्दी में 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखा। उन्होंने शून्य का सही उपयोग किया और शून्य को गणित में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका काम अंकगणित और समीकरण हल करने के तरीकों में अद्वितीय था।
भास्कराचार्य
भास्कराचार्य को भास्कर II के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कृति 'लीलावती' और 'बीजगणिता' गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। उन्होंने विशेष रूप से कलन और त्रिकोणमिति में योगदान दिया।
गणित में स्त्री का योगदान
प्राचीन भारत में गणित में महिलाओं का भी योगदान रहा है। उदाहरण के लिए, वराहमिहिर की 'बृहत्संहिता' में महिलाओं को गणित में शिक्षित करने का उल्लेख मिलता है।
गणित की प्रगति और प्रभाव
प्राचीन भारतीय गणित ने दुनिया भर में गणित के अध्ययन पर गहरा प्रभाव डाला। इसके सिद्धांत और विधियाँ मध्यकालीन और आधुनिक गणित में अत्यधिक प्रासंगिक बनी हुई हैं।
Equivalence relations and partitions, Congruence modulo n, Definition of a group with examples and simple properties, Subgroups, Generators of a group, Cyclic groups
Algebra and Mathematical Methods
Equivalent Relations and Partitions
समानता संबंध एक सेट पर एक आत्मीयता को दर्शाते हैं। यदि रीलेशन एक समानता संबंध है, तो यह तीन गुणों को पूरा करता है: आत्मीयता, सिमेट्री और ट्रांजिटिविटी। समानता संबंध के परिणामस्वरूप विभिन्न हिस्सों या विभाजनों में सेट को बांटने का एक तरीका होता है। ये भाग सेट के तत्वों का एक ऐसा समूह होते हैं जो समान संबंध रखते हैं।
Congruence modulo n
किसी विन्यास में, हम कहते हैं कि दो पूर्णांक a और b, एक निश्चित पूर्णांक n के सापेक्ष समान हैं, यदि n द्वारा a-b का विभाजन बिना शेष के होता है। इसे a ≡ b (mod n) द्वारा लिखा जाता है। यह गणितीय सिद्धांत के प्रयोग में महत्वपूर्ण है, विशेषकर संख्या सिद्धांत में।
Definition of a Group
एक समूह एक सेट G और एक बाइनरी ऑपरेशन * है, जो G के तत्वों में से किसी दो तत्वों को जोड़ता है। यह चार विशेष गुणों के साथ आता है: एसोसिएटिविटी, पहचान तत्व, प्रतिकूल तत्व, और क्लोजर। उदाहरण के लिए, पूर्णांक शून्य से सापेक्ष जोड़ना एक समूह बनाता है।
Subgroups
एक उपसमूह एक समूह का एक हिस्सा होता है जो स्वयं भी एक समूह के गुणों को संतुष्ट करता है। किसी समूह H के लिए उपसमूह कहलाने के लिए, H में पहचान तत्व होना चाहिए, साथ ही असोसिएटिविटी और प्रतिकूल तत्व की गुण भी होनी चाहिए।
Generators of a Group
एक जनरेटर एक ऐसा तत्व है जो समूह के सभी तत्वों को उत्पन्न कर सकता है। उदाहरण के लिए, कोई भी एक तत्व यदि समूह के सभी तत्वों को उसकी शक्ति या गुणन से उत्पन्न कर सकता है, तो उसे जनरेटर कहा जाता है।
Cyclic Groups
एक चक्रीय समूह वह होता है जो केवल एक जनरेटर द्वारा उत्पन्न होता है। जैसे कि सभी पूर्णांक, जो एक तत्व 1 के गुणन से उत्पन्न होते हैं। चक्रीय समूह एक सरल और महत्वपूर्ण समूह होते हैं।
Permutation groups, Even and odd permutations, The alternating group, Cayley’s theorem, Direct products, Coset decomposition, Lagrange’s theorem and its consequences, Fermat’s and Euler’s theorems
Algebra and Mathematical Methods
B.A./B.Sc. II
Mathematics
Third
Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith, Varanasi
Permutation groups
Permutation Groups
Permutation समूह ऐसे समूह हैं जो किसी सेट के तत्वों के पुनर्व्यवस्थित करने के तरीकों को दर्शाते हैं। यदि S एक नॉन-खाली सेट है, तो S के तत्वों के सभी संभावित पुनर्व्यवस्थाओं का समूह S के लिए एक परिमाण समूह बनाता है।
Even and Odd Permutations
Permutations को उनके विशेषताओं के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जाता है - सम (Even) और विषम (Odd)। सम permutation वह है जिसे सम संख्या के अदला-बदली के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, जबकि विषम permutation विषम संख्या के अदला-बदली से प्राप्त होता है।
The Alternating Group
Alternating group, जो A_n के रूप में प्रदर्शित होता है, सम permutations का समूह है। यह n तत्वों के लिए केवल उन permutations को शामिल करता है जो सम हैं।
Cayley's Theorem
Cayley's theorem के मुताबिक, हर समूह एक permutation group के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। इसका मतलब है कि किसी भी समूह G के लिए, G का वैकल्पिक समूह G के सभी तत्वों का एक permutation समूह है।
Direct Products
प्रत्यक्ष उत्पाद का अर्थ है दो या अधिक समूहों का संयोग, जिसमें प्रत्येक समूह के तत्वों को एक साथ लाया जाता है। यदि G और H दो समूह हैं, तो उनके प्रत्यक्ष उत्पाद G x H को एक नया समूह बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
Coset Decomposition
Coset decomposition एक समूह को सॉर्ट करने का एक तरीका है, जिसे एक उपसमूह H के सापेक्ष किया जाता है। इसे दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है - बाएं cosets और दाएं cosets।
Lagrange's Theorem and its Consequences
Lagrange का थ्योरम कहता है कि किसी समूह के उपसमूह का क्रम हमेशा मूल समूह के क्रम का विभाजक होता है। इसका मतलब है कि उपसमूहों के आकार की तुलना में मूल समूह में सभी इंटेगर के गुणनफल होते हैं।
Fermat's and Euler's Theorems
Fermat का अंतिम थ्योरम यह बताता है कि यदि p एक प्रमुख संख्या है और a एक पूर्णांक है जो p द्वारा विभाजित नहीं होता है, तो a^(p-1) ≡ 1 (mod p) होगा। Euler का थ्योरम इसके समान है और इसे सामान्यीकृत करता है।
Normal subgroups, Quotient groups, Homomorphisms and isomorphisms, Fundamental theorem of homomorphism, Theorems on isomorphism
Normal subgroups, Quotient groups, Homomorphisms and isomorphisms, Fundamental theorem of homomorphism, Theorems on isomorphism
Item
सामान्य उपसमुच्चय (Normal subgroup) किसी समूह G का ऐसा उपसमुच्चय H होता है जिसे G के सभी तत्वों के लिए इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि gHg^-1 = H, जहाँ g G का कोई तत्व है।
1. H सामान्य उपसमुच्चय है यदि और केवल यदि hg = g'h के लिए h H में है। 2. सामान्य उपसमुच्चय G के लिए G/H एक पूर्ण समूह होता है।
Item
कोटियंट समूह (Quotient group) G का उपसमुच्चय H का G/H के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ H एक सामान्य उपसमुच्चय है।
1. कोटियंट समूह के तत्व H के विशेष वर्ग होते हैं। 2. यदि G एक समूह हो और H एक सामान्य उपसमुच्चय हो, तो G/H का गुणनत्मक संरचना के साथ समूह के रूप में कार्य किया जा सकता है।
Item
समूहों के बीच का एक होमॉर्फिज्म (Homomorphism) एक कार्य है जो दो समूहों की संरचना को बनाए रखता है। इज़ोमॉर्फिज्म (Isomorphism) एक विशेष प्रकार का होमॉर्फिज्म है, जो दोनों समूहों के बीच एक-दूसरे का एक-दूसरे के समान संरचना प्रदर्शित करता है।
1. होमॉर्फिज्म: यदि φ: G → H एक होमॉर्फिज्म है, तो φ(g1 * g2) = φ(g1) * φ(g2) सभी g1, g2 G में। 2. इज़ोमॉर्फिज्म: यदि φ: G → H एक इज़ोमॉर्फिज्म है, तो φ एक बायिजेक्टिव (bijective) कार्य होता है।
Item
होमॉर्फिज्म के मौलिक धर्म (Fundamental theorem of homomorphism) का तर्क करता है कि यदि φ: G → H एक होमॉर्फिज्म है, तो G का आपके सामान्य उपसमुच्चय के साथ कोटियंट समूह G/ker(φ) H की संरचना के समान है।
इसका अर्थ है कि G की उपधारणा को एक सामान्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जा सकता है जो G और H के बीच संबंधित है।
Item
यदि G और H समूह हैं और φ: G → H एक इज़ोमॉर्फिज्म है, तो G और H समान समूह हैं।
यदि G एक समूह है और H एक सामान्य उपसमुच्चय है, तो G/H और G के गिरावट एक समान संरचना बनाए रखते हैं।
Rings, Subrings, Integral domains and fields, Characteristic of a ring, Ideal and quotient rings, Ring homomorphisms, Quotient field of an integral domain
Rings, Subrings, Integral domains and fields, Characteristic of a ring, Ideal and quotient rings, Ring homomorphisms, Quotient field of an integral domain
Rings
एक रिंग एक ऐसी एल्गेब्राईक संरचना है जिसमें दो ऑपरेशन होते हैं: जोड़ना और गुणा। रिंग में सभी तत्व एक साथ जोड़ने और गुणा करने के लिए नियमों का पालन करते हैं। रिंग में शून्य तत्व और युनिट तत्व भी होते हैं।
Subrings
एक सबरिंग, एक रिंग का उपसमुच्चय होता है, जो अपने आप में भी एक रिंग होती है। यह मूल रिंग के जोड़ने और गुणने की विशेषताओं को बनाए रखता है।
Integral Domains
एक इंटीग्रल डोमेन एक विशेष प्रकार की रिंग होती है जिसमें कोई शून्य-डिवाइडर नहीं होते हैं। इसका मतलब है कि अगर a, b ∈ D और a * b = 0 होता है, तो यह सही है कि a = 0 या b = 0।
Fields
एक फ़ील्ड एक रिंग होती है जिसमें हर गैर-शून्य तत्व का गुणा के लिए व्युत्क्रम होता है। इसके अलावा, एक फ़ील्ड में जोड़ने और गुणने दोनों के लिए एसोसिएटिव और कम्यूटेटिव गुण होते हैं।
Characteristic of a Ring
एक रिंग की विशेषता उस सबसे छोटे अदृश्यता नॉन-नैटिव इंटीजर n के रूप में परिभाषित की जाती है, जिसके लिए n * 1 = 0 होता है। अगर ऐसा n मौजूद नहीं है, तो इसकी विशेषता 0 होती है।
Ideal and Quotient Rings
एक आदर्श एक विशेष प्रकार का उपसमुच्चय होता है जो रिंग में उपस्थित तत्वों के गुणन के लिए समुचित होता है। एक क्वोटियंट रिंग मूल रिंग और आदर्श के बीच का भागफल है।
Ring Homomorphisms
रिंग होमोमोर्फिज्म एक संरचना होती है जो एक रिंग से दूसरी रिंग के बीच असमान वर्गों को बनाए रखती है। यह जोड़ने और गुणने के दोनों ऑपरेशन के लिए संगत होती है।
Quotient Field of an Integral Domain
एक इंटीग्रल डोमेन का क्वोटियंट फ़ील्ड, उस इंटीग्रल डोमेन के तत्वों से निर्मित एक फ़ील्ड है। यह तत्वों का योग और गुणा क्रियाएं परिभाषित कर सकता है।
Limit and Continuity of functions of two variables, Differentiation of function of two variables, Necessary and sufficient condition for differentiability of functions of two variables, Schwarz’s and Young’s theorem, Taylor's theorem for functions of two variables with examples, Maxima and minima for functions of two variables, Lagrange’s multiplier method, Jacobians
Limit and Continuity of Functions of Two Variables
Limit of Functions of Two Variables
दो चर वाले कार्यों की सीमा उस बिंदु पर कार्य के मान के संबंध में निर्धारित होती है जहाँ दोनों चर एक निर्दिष्ट बिंदु पर पहुँचते हैं। यदि f(x,y) सीमा L तक पहुँचता है जब (x,y) (a,b) के निकट पहुँचता है, तो हम लिखते हैं: \( \lim_{(x,y) \to (a,b)} f(x,y) = L \)।
Continuity of Functions of Two Variables
दो चर वाले कार्य की निरंतरता यह सुनिश्चित करती है कि कार्य का मान उसके निकटतम बिंदु पर लगातार न हो। एक कार्य f(x,y) को (a,b) पर निरंतर कहा जाता है यदि: 1. f(a,b) ज्ञात है 2. \( \lim_{(x,y) \to (a,b)} f(x,y) \) अस्तित्व में है 3. \( \lim_{(x,y) \to (a,b)} f(x,y) = f(a,b) \)।
Differentiation of Functions of Two Variables
दो चर वाले कार्य की अवकलन प्रक्रिया में आंशिक अवकलन की मदद से वस्तु के परिवर्तन की गति का निर्धारण होता है। यदि z = f(x,y), तो इसे इस प्रकार लिखा जा सकता है: \( \frac{\partial z}{\partial x} \) और \( \frac{\partial z}{\partial y} \)।
Necessary and Sufficient Condition for Differentiability
किसी कार्य की अवकलनीयता के लिए आवश्यक और पर्याप्त शर्तों में, यदि फ़ंक्शन f(x,y) को (a,b) पर अवकलनीयता की शर्तें पूर्ण होती हैं, तो यहां बाएं और दाएं दोनों ओर से आंशिक अवकलन प्राप्त करना आवश्यक है।
Schwarz's and Young's Theorem
Schwarz का प्रमेय और Young का प्रमेय अधोरेखा वाले कार्यों के संबंध मजबूत परिणाम प्रदान करते हैं। Schwarz का प्रमेय बताता है कि यदि \( \frac{\partial^2 f}{\partial x \partial y} \) और \( \frac{\partial^2 f}{\partial y \partial x} \) निरंतर हैं, तो वे बराबर हैं।
Taylor's Theorem for Functions of Two Variables
टेलर के प्रमेय का उपयोग दो चर वाले कार्यों के विस्तार में किया जाता है। एक कार्य f(x,y) को (a,b) के निकट Taylor श्रृंखला में माना जा सकता है। यह विस्तार इस प्रकार लिखा जा सकता है: \( f(a+h,b+k) = f(a,b) + \frac{\partial f}{\partial x}(a,b)h + \frac{\partial f}{\partial y}(a,b)k + ... \)।
Maxima and Minima for Functions of Two Variables
दो चर वाले कार्यों के लिए अधिकतम या न्यूनतम मानों का निर्धारण स्थानीय अधिकतम और न्यूनतम के अभ्यस्त बिंदुओं के माध्यम से किया जाता है। इसे आंशिक अवकलनों के सेट के समता द्वारा प्राप्त किया जाता है।
Lagrange's Multiplier Method
Lagrange का गुणांक विधि मौलिक अवकलनीय कार्यों के किसी सीमा पर अधिकतम या न्यूनतम अधिकतम मान प्राप्त करने के लिए उपयोगी है। इसे कई चर के कार्यों में कुछ बाधाओं के अधीन लागू किया जाता है।
Jacobians
दो चर वाले कार्यों के संदर्भ में, जेकबियन निर्धारणता और परिवर्तनों के विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। Jacobian का उपयोग कार्य की आंशिक अवकलन के आधार पर किया जाता है।
Existence theorems for Laplace transforms, Linearity of Laplace transform and their properties, Laplace transform of the derivatives and integrals of a function, Convolution theorem, Inverse Laplace transforms, Solution of the differential equations using Laplace Transforms
Existence theorems for Laplace transforms, Linearity of Laplace transform and their properties, Laplace transform of the derivatives and integrals of a function, Convolution theorem, Inverse Laplace transforms, Solution of the differential equations using Laplace Transforms
Laplace Transform की परिभाषा
Laplace Transform एक गणितीय उपकरण है जिसका उपयोग समय डोमेन से फ़्रीक्वेंसी डोमेन में रूपांतरण के लिए किया जाता है। यह मुख्य रूप से वास्तविक समय कार्यों को संभालने के लिए प्रयोग किया जाता है।
Laplace Transform के अस्तित्व के प्रमेय
Laplace Transform की अस्तित्व के लिए कुछ शर्तें आवश्यक होती हैं, जRemark्य एक फंक्शन की निरंतरता और इसकी मान्यता। यदि f(t) एक सही कार्य है, तो उसके लिए Laplace Transform का अस्तित्व होगा।
Laplace Transform की रेखीयता
Laplace Transform रेखीयता के नियम का पालन करता है। यदि f(t) और g(t) दो कार्य हैं, और a तथा b स्केलर हैं, तो L{a f(t) + b g(t)} = a L{f(t)} + b L{g(t)}।
Derivatives और Integrals का Laplace Transform
यदि f(t) का Laplace Transform F(s) है, तो f'(t) का Laplace Transform sF(s) - f(0) होगा, और ∫f(t) dt का Laplace Transform (1/s)F(s) होगा।
Convolution Theorem
Convolution Theorem कहता है कि यदि f(t) और g(t) के Laplace Transform F(s) और G(s) हैं, तो उनके convolution का Laplace Transform F(s)G(s) होगा।
Inverse Laplace Transform
Inverse Laplace Transform को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि युज़र या कंटूर इंटीग्रल। यह उस कार्य को प्राप्त करता है जो Laplace Transform के माध्यम से रूपांतरित किया गया था।
Differential Equations का समाधान
Laplace Transform का उपयोग करके विभेदन समीकरणों का समाधान किया जा सकता है। समीकरण को Laplace Transform में रूपांतरित करके, एक सरल algebraic समीकरण प्राप्त होता है। इसे हल करके, फिर से inverse transform का उपयोग करके मूल कार्य प्राप्त किया जा सकता है।
Fourier series, Fourier expansion of piecewise monotonic functions, Half and full range expansions, Fourier transforms (finite and infinite), Fourier integrals
Fourier series and related concepts
Fourier series
फूरियर श्रृंखला एक ऐसी श्रृंखला है जिसमें एक व्यावहारिक कार्य को साइन और कोसाइन कार्यों के अनंत योग के रूप में व्यक्त किया जाता है। यह संक्रिया विशेषकर आवर्ती कार्यों के लिए उपयोगी है।
Fourier expansion of piecewise monotonic functions
पीसवाइज मोनोटोनिक कार्यों के लिए फूरियर विस्तार का उपयोग किया जाता है, जहाँ कार्य में एक से अधिक फंक्शनल फॉम्स होती हैं। इन कार्यों का विस्तार साइन और कोसाइन के आधार पर किया जा सकता है।
Half range expansions
हाफ रेंज एक्सपैंशन्स फूरियर श्रृंखला के विशेष रूप हैं जहाँ कार्य केवल आधे सीमा में परिभाषित होता है। ये स्केलिंग और साइन व कोसाइन फंक्शनों के उपयोग से बनते हैं।
Full range expansions
फुल रेंज एक्सपैंशन्स में कार्य की पूरी सीमा पर ध्यान दिया जाता है। इसमें साइन और कोसाइन दोनों का योगदान होता है।
Fourier transforms (finite and infinite)
फूरियर ट्रांसफॉर्म एक ऐसा प्रक्रिया है जिसमें कोई कार्य के फूरियर स्पेक्ट्रम को ज्ञात किया जाता है। यह सीमित कार्यों और अनंत कार्यों दोनों के लिए लागू होता है।
Fourier integrals
फूरियर इंटेग्रल विधि का उपयोग निरंतर कार्यों के विस्तृत अध्ययन के लिए किया जाता है। ये कार्यों के फूरियर संयोजनों को समझने में मदद करते हैं, और ये वास्तविक और आवृत्ति डोमेन में उपयोगी होते हैं।
Calculus of variations: Variational problems with fixed boundaries - Euler's equation for functional containing first order derivative and one independent variable, Extremals, Functional dependent on higher order derivatives, Functional dependent on more than one independent variable, Variational problems in parametric form
Calculus of Variations
Variational Problems with Fixed Boundaries
वैरिएशनल समस्या एक गणितीय समस्या है जिसमें एक कार्य को अधिकतम या न्यूनतम किया जाता है। जब सीमाएँ निश्चित होती हैं, तो कार्य को सीमाओं के भीतर अधिकतम या न्यूनतम किया जाता है।
Euler's Equation for Functional Containing First Order Derivative
ओयलर का समीकरण वे समीकरण हैं जो वैरिएशनल समस्याओं को हल करने में उपयोग होते हैं। यह समीकरण उस कार्य के लिए लिखा जाता है जिसमें पहले क्रम के अवकलज होते हैं।
Extremals
एक्सट्रीमल्स वे समूह होते हैं जो कार्य के मूल्य को अधिकतम या न्यूनतम करते हैं। इसे सुलझाने के लिए ओयलर के समीकरण का उपयोग किया जाता है।
Functional Dependent on Higher Order Derivatives
इस प्रकार के कार्य में उच्च क्रम के अवकलज शामिल होते हैं। इसके लिए ओयलर का समीकरण विस्तारित रूप में लिखा जाता है।
Functional Dependent on More than One Independent Variable
जब कार्य में एक से अधिक स्वतंत्र चर होते हैं, तो ओयलर के समीकरण को उपयुक्त रूपांतरण के साथ लाया जाता है।
Variational Problems in Parametric Form
पैरामीट्रिक रूप में वैरिएशनल समस्याएँ तब आती हैं जब कार्य को पैरामीट्रिक समीकरण के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। इसके लिए विशेष गणनाएँ और समीकरणों की आवश्यकता होती है.
